लिंग-आधारित हिंसा (Gender-Based Violence) के खिलाफ 16 दिनों का अभियान शुरू हो चुका है, और हर साल की तरह, दुनिया भर के मंचों पर भावनापूर्ण भाषणों की बौछार होगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस शोर के बीच एक खामोश, जानलेवा संगम को क्यों नजरअंदाज किया जाता है? यूरोपीय एड्स उपचार समूह (European AIDS Treatment Group) ने इस पर रोशनी डाली है: इंटरपर्सनल वायलेंस और एचआईवी (Interpersonal Violence and HIV) का घातक समीकरण। यह सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट नहीं है; यह शक्ति, नियंत्रण और सामाजिक ढांचे का विफलता है।
अनकहा सच: कौन जीतता है और कौन हारता है?
जब हम लैंगिक हिंसा की बात करते हैं, तो ध्यान शारीरिक आघात पर केंद्रित होता है। लेकिन जब हिंसा यौन स्वास्थ्य और एचआईवी की स्थिति पर हावी होती है, तो यह एक अलग स्तर पर पहुंच जाती है। जिन महिलाओं और कमजोर समुदायों को लगातार दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, उन्हें जबरन असुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। यह 'जबरन सहमति' (coerced consent) सीधे तौर पर एचआईवी संक्रमण का प्रवेश द्वार बनती है। एचआईवी सक्रियता (HIV Activism) अक्सर चिकित्सा पहुंच पर केंद्रित होती है, लेकिन यह भूल जाती है कि यदि कोई महिला अपने साथी के डर से परीक्षण कराने या दवा लेने से इनकार करती है, तो दवाएं बेकार हैं।
असली विजेता? पितृसत्तात्मक संरचनाएं और वे सामाजिक मानदंड जो महिलाओं को मौन रहने के लिए मजबूर करते हैं। वे संगठन जो केवल 'चेतना' फैलाने तक सीमित रहते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कानूनी और आर्थिक सशक्तिकरण में विफल रहते हैं। हारने वाले स्पष्ट हैं: हाशिए पर रहने वाले लोग, जिनकी आवाज हिंसा के डर से दब जाती है। यह एक ऐसा चक्र है जिसे तोड़ने के लिए केवल जागरूकता अभियान पर्याप्त नहीं हैं। हमें कठोर, विघटनकारी सक्रियता (Disruptive Activism) की आवश्यकता है।
गहन विश्लेषण: यह सिर्फ एक स्वास्थ्य आंकड़ा क्यों नहीं है?
यह मुद्दा केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हिंसा और एचआईवी के बीच एक मजबूत सहसंबंध है। लेकिन विश्लेषण यह कहता है कि कई विकासशील देशों में, महिलाओं के आर्थिक नियंत्रण की कमी उन्हें हिंसक भागीदारों के साथ रहने के लिए मजबूर करती है, भले ही वे एचआईवी पॉजिटिव हों। यह आर्थिक निर्भरता ही हिंसा को कायम रखने वाली 'जंजीर' है। एचआईवी रोकथाम (HIV Prevention) के सभी प्रयास विफल हो जाएंगे जब तक कि महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता नहीं मिलती। यह एक आर्थिक मुद्दा है जिसे स्वास्थ्य का मुखौटा पहनाया गया है।
इस जटिलता को समझने के लिए, हमें देखना होगा कि कैसे कलंक (stigma) काम करता है। एक महिला यदि अपने पार्टनर द्वारा संक्रमित होने की बात स्वीकार करती है, तो उसे समाज द्वारा 'बदनाम' किया जा सकता है। यह डर उसे चुप कराता है, जिससे समुदाय में वायरस फैलता रहता है। यह एक जहरीला सामाजिक समझौता है। अधिक जानकारी के लिए, आप मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट देख सकते हैं (उदाहरण के लिए, OHCHR पर हिंसा पर डेटा)।
आगे क्या होगा? हमारा भविष्य का पूर्वानुमान
मेरा पूर्वानुमान है कि अगले पांच वर्षों में, यदि मौजूदा नीतियां जारी रहीं, तो एचआईवी ट्रांसमिशन दर उन क्षेत्रों में स्थिर रहेगी जहाँ लैंगिक असमानता सबसे अधिक है। 16 दिवसीय अभियान एक वार्षिक प्रदर्शन बन कर रह जाएगा, जिसमें केवल धन का आवंटन होगा, वास्तविक परिवर्तन नहीं। असली बदलाव तब आएगा जब एचआईवी/एड्स कार्यशालाएं अनिवार्य रूप से घरेलू हिंसा और आर्थिक साक्षरता को एकीकृत करेंगी। हमें 'पीड़ितों' को नहीं, बल्कि 'उत्तरजीवियों' को सशक्त बनाना होगा। सरकारें और एनजीओ डेटा संग्रहण पर ध्यान केंद्रित करते रहेंगे, जबकि जमीनी स्तर पर महिलाओं को सुरक्षित आश्रय और कानूनी सहायता की सख्त जरूरत होगी। हमें एक ऐसी प्रणाली चाहिए जो हिंसा करने वाले को दंडित करे, न कि पीड़ित को चुप कराए।
एक साहसी कदम की आवश्यकता है: एचआईवी उपचार केंद्रों को हिंसा पीड़ितों के लिए वन-स्टॉप सेंटर बनना होगा। यह सिर्फ एक सिफारिश नहीं है; यह जीवित रहने की अनिवार्यता है। एचआईवी/एड्स के वैश्विक प्रयासों पर अधिक डेटा के लिए आप UNAIDS की आधिकारिक वेबसाइट देख सकते हैं।
यह केवल चिकित्सा की लड़ाई नहीं है; यह सत्ता की लड़ाई है। और जब तक हम हिंसा के इस अदृश्य लिंक को स्वीकार नहीं करते, तब तक लैंगिक हिंसा के खिलाफ हमारी लड़ाई हमेशा अधूरी रहेगी।