32 'स्वच्छ-टेक' स्टार्टअप्स: क्या यह क्रांति है या सिर्फ सरकारी अनुदान का नया खेल?
भारत में 'स्वच्छता' अब सिर्फ एक सरकारी नारा नहीं रहा, यह एक अरबों डॉलर का बाज़ार बन चुका है। हाल ही में, आवास और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) और IIT कानपुर ने मिलकर क्लीन-टेक स्टार्टअप्स के दूसरे समूह की घोषणा की है, जिसमें 32 नवाचारी कंपनियां शामिल हैं। सतह पर यह 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' की सफलता लगती है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, हमें पूछना होगा: यह पहल वास्तव में किसे लाभ पहुंचाएगी? क्या ये स्टार्टअप्स ज़मीनी हकीकत बदलेंगे, या यह केवल फंडिंग के एक और चक्र का प्रदर्शन है?
सतह के नीचे की हकीकत: असली विजेता कौन?
इस घोषणा का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि यह तकनीकी हस्तक्षेप के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य और अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याओं को हल करने का वादा करता है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन की सफलता हमेशा बुनियादी ढांचे, नागरिक व्यवहार और स्थानीय निकाय की इच्छाशक्ति पर टिकी रही है, न कि केवल फैंसी ऐप या सेंसर पर। ये 32 स्टार्टअप्स, जो शायद IoT, AI-आधारित कचरा छँटाई, या जल शोधन पर काम कर रहे हैं, उन्हें विशाल, अक्षम सरकारी मशीनरी के साथ तालमेल बिठाना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है।
असली विजेता शायद ये स्टार्टअप्स नहीं हैं, बल्कि वे अकादमिक संस्थान और सलाहकार एजेंसियां हैं जो इस तरह के 'इनक्यूबेशन' कार्यक्रमों का प्रबंधन करती हैं। वे सरकारी धन का प्रवाह सुनिश्चित करते हैं। असली हारने वाले वे छोटे, स्थानीय, अनौपचारिक कचरा बीनने वाले हो सकते हैं, जिनकी आजीविका अत्याधुनिक तकनीक के सामने खतरे में पड़ सकती है, बशर्ते उन्हें मुख्यधारा में एकीकृत न किया जाए।
विश्लेषण: तकनीक बनाम व्यवहार
भारत की स्वच्छता की कहानी हमेशा 'तकनीक बनाम व्यवहार' की रही है। हमने शौचालय बनाए, लेकिन लोगों को उनका उपयोग करने के लिए प्रेरित करना कठिन था। इसी तरह, अगर ये क्लीन-टेक स्टार्टअप्स केवल बड़े शहरों के प्रीमियम क्षेत्रों के लिए समाधान प्रदान करते हैं, तो वे ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत की विशाल कचरा समस्या को हल करने में विफल रहेंगे। यह सिर्फ एक तकनीकी अपग्रेड नहीं है; यह एक सांस्कृतिक बदलाव की मांग करता है। क्या इन स्टार्टअप्स के पास वह मॉडल है जो छोटे नगरपालिकाओं के लिए किफायती और स्केलेबल हो?
हमें यह भी देखना होगा कि फंडिंग का फोकस कहां है। क्या यह नवाचार को बढ़ावा दे रहा है या यह केवल उन समाधानों को बढ़ावा दे रहा है जो मौजूदा राजनीतिक प्राथमिकताओं के साथ संरेखित होते हैं? यह पहल एक अच्छा संकेत है, लेकिन इसका प्रभाव तब तक शून्य रहेगा जब तक कि MoHUA इन तकनीकों को अनिवार्य रूप से अपनाने के लिए मजबूत नियामक ढांचा नहीं बनाता। अधिक जानकारी के लिए, भारत की अपशिष्ट प्रबंधन चुनौतियों पर विश्व बैंक की रिपोर्ट देखना उपयोगी हो सकता है: World Bank Infrastructure Data.
भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरी भविष्यवाणी यह है: अगले 18 महीनों में, हम देखेंगे कि इनमें से 50% स्टार्टअप्स या तो फंडिंग की कमी के कारण बंद हो जाएंगे, या वे पूरी तरह से सरकारी अनुबंधों पर निर्भर हो जाएंगे, जिससे उनकी 'स्टार्टअप' वाली भावना मर जाएगी। बाकी बचे हुए 50% केवल तभी सफल होंगे जब वे बड़े निजी निगमों (जैसे FMCG कंपनियां जो विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी - EPR के तहत आती हैं) के साथ गठजोड़ करेंगे, न कि सीधे नगर पालिकाओं के साथ। स्वच्छता स्टार्टअप्स का भविष्य सरकार के समर्थन से ज़्यादा कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी पर निर्भर करेगा।
इस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर ढंग से समझने के लिए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) के नवाचार मॉडल को समझना महत्वपूर्ण है: IITs on Wikipedia.
यह केवल प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन नहीं है; यह शासन (Governance) और पैमाने (Scale) की परीक्षा है। क्या ये 32 कंपनियां भारत की 1.4 अरब आबादी के लिए 'स्वच्छता' को स्थायी रूप से बदल सकती हैं? संदेह है।