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AI-संचालित साइबर सुरक्षा: यह तकनीक नहीं, बल्कि सत्ता का नया खेल है जिसका सच कोई नहीं बताएगा

By Arjun Chopra • December 18, 2025

हुक: क्या AI आपकी डिजिटल ढाल है, या आपकी निगरानी का नया हथियार?

आजकल हर तरफ एक ही शोर है: **आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)** संचालित **साइबर सुरक्षा** (Cybersecurity) हमारी डिजिटल दुनिया को बचाएगी। दुनिया भर के देश और बड़ी कंपनियाँ इस 'बुद्धिमान' सुरक्षा प्रणाली में खरबों डॉलर झोंक रही हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस चमक-दमक के पीछे की स्याह सच्चाई क्या है? यह सिर्फ़ डेटा बचाने की लड़ाई नहीं है; यह **डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर** (Digital Infrastructure) पर नियंत्रण की अंतिम लड़ाई है।

मांस (The Meat): AI सुरक्षा का भ्रम और छिपा हुआ विजेता

जब हम AI सुरक्षा की बात करते हैं, तो हम एक ऐसे शिकारी की कल्पना करते हैं जो खतरों को इंसानों से तेज़ी से पहचानता है। यह सच है। AI/ML मॉडल अब ज़ीरो-डे हमलों को पकड़ सकते हैं, जो पारंपरिक फ़ायरवॉल के लिए असंभव था। लेकिन यहाँ असली सवाल आता है: **इस AI को कौन नियंत्रित करता है?** जो कंपनियाँ इन अत्याधुनिक AI सुरक्षा समाधानों का निर्माण कर रही हैं—मुख्य रूप से पश्चिमी तकनीकी दिग्गज—वही असल में विजेता हैं। वे न केवल सुरक्षा बेच रहे हैं, बल्कि वे आपके सिस्टम की *हर गतिविधि* का ब्लूप्रिंट भी खरीद रहे हैं। यह एक ऐसा विरोधाभास है जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है: अपनी सुरक्षा के लिए, आपको अपनी गोपनीयता का एक बड़ा हिस्सा उन कंपनियों को सौंपना पड़ रहा है जिन्हें आप पूरी तरह नहीं जानते। यह साइबर सुरक्षा नहीं, यह **डेटा प्रभुत्व** (Data Sovereignty) का हस्तांतरण है। (संदर्भ के लिए, डेटा सुरक्षा कानूनों की जटिलताएँ देखें: [https://www.reuters.com/technology/](https://www.reuters.com/technology/))

गहराई से विश्लेषण: क्यों यह केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक हथियार है

**साइबर सुरक्षा** अब केवल आईटी विभाग की चिंता नहीं रही; यह राष्ट्रीय सुरक्षा का पर्याय बन गई है। जब हम AI सुरक्षा को अपनाते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से अपनी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्तियों—पावर ग्रिड, बैंकिंग सिस्टम, स्वास्थ्य सेवा—को एक ऐसे एल्गोरिथम के हाथों में सौंप देते हैं जो एक कॉर्पोरेट बोर्डरूम में लिखे गए कोड पर आधारित है। यदि कोई AI मॉडल पक्षपाती (biased) है, या उसमें कोई गुप्त बैकडोर है, तो यह एक विशाल राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम बन जाता है। यह एक ऐसा हथियार है जिसे दुश्मन को घुसपैठ करने की ज़रूरत नहीं है; वे बस AI के अपडेट को नियंत्रित कर सकते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, जो तेजी से डिजिटलीकरण कर रहे हैं, यह दोहरी तलवार है। हमें सुरक्षा चाहिए, लेकिन हम अपनी **डिजिटल स्वतंत्रता** (Digital Freedom) को दांव पर लगा रहे हैं। यह उस पुराने डर की तरह है: क्या आप अपने घर को सुरक्षित रखने के लिए एक ऐसे गार्ड को नियुक्त करेंगे जो आपके हर रहस्य को जानता हो?

भविष्य की भविष्यवाणी: क्या होगा आगे?

अगले पाँच वर्षों में, हम 'AI बनाम AI' की एक नई शीत युद्ध देखेंगे। हैकर्स भी AI का उपयोग करेंगे, जिससे सुरक्षा प्रतिक्रियाएँ लगभग तात्कालिक (instantaneous) हो जाएंगी। लेकिन असली मोड़ तब आएगा जब सरकारें इन निजी AI सुरक्षा प्लेटफार्मों पर भरोसा करना बंद कर देंगी और **'राष्ट्रीय संप्रभु AI'** (Sovereign National AI) की मांग करेंगी। जो देश अपनी खुद की AI सुरक्षा स्टैक विकसित नहीं कर पाएंगे, वे हमेशा वैश्विक तकनीकी शक्तियों पर निर्भर रहेंगे, जो एक नई प्रकार की तकनीकी उपनिवेशवाद को जन्म देगा। (अधिक जानकारी के लिए: [https://www.wikipedia.org/wiki/Cyber_warfare](https://www.wikipedia.org/wiki/Cyber_warfare)) इस दौड़ में, केवल वे ही बचेंगे जो AI पर निर्भरता कम करने और 'मानव-इन-द-लूप' (Human-in-the-Loop) की मजबूत प्रणालियों को बनाए रखने का साहस दिखाएंगे। यह तकनीकी श्रेष्ठता की नहीं, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता की लड़ाई है। (एक और दृष्टिकोण: [https://www.nytimes.com/](https://www.nytimes.com/))