COP30 का पर्दाफाश: अफ़्रीका की 'ग्रेट ग्रीन वॉल' के पीछे का असली खेल और कौन हो रहा है मालामाल?
क्या अफ़्रीका का 'ग्रेट ग्रीन वॉल' प्रोजेक्ट (Great Green Wall Initiative) वास्तव में जलवायु परिवर्तन से लड़ने का एक ईमानदार प्रयास है, या यह पश्चिमी देशों के लिए कार्बन क्रेडिट और भू-राजनीतिक नियंत्रण हासिल करने का एक भव्य मंच है? COP30 में अफ़्रीकी विकास बैंक (AfDB) और उसके सहयोगियों द्वारा भारी वित्तपोषण की मांग ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींचा है। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे, 'जलवायु वित्तपोषण' (Climate Financing) की जटिलताओं और 'सतत विकास' (Sustainable Development) के दावों की गहरी पड़ताल ज़रूरी है।सिर्फ़ पेड़ लगाना नहीं, यह भू-राजनीति है
खबर यह है कि COP30 में अफ़्रीकी नेताओं ने सहारा रेगिस्तान के किनारे 8,000 किलोमीटर लंबी दीवार बनाने के लिए बड़े फंड की मांग की है। यह पहल, जो दिखने में सराहनीय लगती है, वास्तव में एक बहु-अरब डॉलर का निवेश है। लेकिन यहाँ सवाल उठता है: इस पैसे का वास्तविक लाभार्थी कौन होगा? स्थानीय समुदायों को शायद कुछ पेड़ मिलें, लेकिन **जलवायु परिवर्तन** के इस बड़े खेल में असली विजेता वे बहुराष्ट्रीय निगम और पश्चिमी विकास बैंक हैं जो इस पूरी परियोजना को वित्तपोषित कर रहे हैं। वे कार्बन ऑफसेट खरीद रहे हैं, जिससे उन्हें अपने घरेलू प्रदूषण को जारी रखने का लाइसेंस मिल जाता है। यह एक तरह से 'प्रदूषण का निर्यात' है।अफ़्रीकी संप्रभुता पर सवाल
विश्लेषण बताता है कि जब बाहरी संस्थाएं बड़े पैमाने पर भूमि-आधारित समाधानों को वित्तपोषित करती हैं, तो स्थानीय संप्रभुता अक्सर दांव पर लग जाती है। यह 'ग्रेट ग्रीन वॉल' केवल हरियाली नहीं है; यह भूमि उपयोग, कृषि पद्धतियों और यहां तक कि विस्थापन को भी प्रभावित करती है। क्या यह परियोजना अफ़्रीकी देशों को उनकी अपनी जलवायु नीतियों पर नियंत्रण दे रही है, या यह उन्हें पश्चिमी एजेंडे के तहत बांध रही है? **जलवायु परिवर्तन** से निपटने के लिए बाहरी धन की आवश्यकता निर्विवाद है, लेकिन इसकी शर्तें अक्सर उपनिवेशवाद की नई परतें बुनती हैं। यह परियोजना अफ़्रीका की आंतरिक खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के बजाय, वैश्विक कार्बन लेखांकन की जरूरतों को पूरा करने पर अधिक केंद्रित दिखती है।भविष्य की भविष्यवाणी: क्या होगा अगले 5 वर्षों में?
मेरा मानना है कि अगले पांच वर्षों में, इस परियोजना की धीमी प्रगति और स्थानीय विरोध के कारण गंभीर फंडिंग संकट उत्पन्न होगा। पश्चिमी दाता देश अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहेंगे, जिसका दोष अफ़्रीकी सरकारों पर मढ़ा जाएगा। इसके समानांतर, चीन और अन्य उभरती शक्तियां वैकल्पिक, अधिक लचीली हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करके इस अंतर को भरने की कोशिश करेंगी, जिससे अफ़्रीका में पश्चिमी प्रभाव कम होगा। **जलवायु वित्तपोषण** की यह दौड़ अंततः अफ़्रीका को भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात पर एक नया केंद्र बनाएगी। यह परियोजना सफल नहीं होगी जब तक कि यह स्थानीय, छोटे किसानों को सशक्त बनाने पर केंद्रित न हो, न कि विशाल कॉर्पोरेट ग्रीनवॉशिंग पर।निष्कर्ष: एक आवश्यक मगर दोषपूर्ण पहल
ग्रेट ग्रीन वॉल एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, लेकिन इसकी वर्तमान संरचना इसे केवल एक महंगा 'ग्रीनवॉश' बनाती है। असली सफलता तब मिलेगी जब फंडिंग की शर्तें पारदर्शी होंगी और स्थानीय समुदायों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका मिलेगी। फिलहाल, यह एक ऐसी परियोजना है जिसे दुनिया देख रही है, लेकिन जिसके पीछे के आर्थिक दांवों पर शायद ही कोई बात कर रहा है।अधिक जानकारी के लिए, आप रॉयटर्स (Reuters) या विकिपीडिया पर जलवायु वित्तपोषण के बारे में पढ़ सकते हैं।