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Huddle Global ’25: नवाचार का शोर या सिर्फ एक और इवेंट? असली खिलाड़ी कौन हैं?

By Aditya Patel • December 13, 2025

नवाचार का उत्सव या पूंजी का सर्कस?

हाल ही में शुरू हुए हडल ग्लोबल ’25 इवेंट ने एक बार फिर भारतीय स्टार्टअप परिदृश्य पर ध्यान केंद्रित किया है। सुर्खियां कह रही हैं कि यह 'नवाचार' (Innovation) और 'उद्यमिता' का मंच है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के तौर पर, हमें शोर से परे देखना होगा। क्या यह सच में ज़मीनी हकीकत बदलने वाला कोई शिखर सम्मेलन है, या यह सिर्फ बड़े निवेशकों और स्थापित खिलाड़ियों द्वारा अपनी पकड़ मजबूत करने का एक और दिखावा है? हमारा विश्लेषण बताता है कि असली खेल 'इनोवेशन' नहीं, बल्कि 'एक्सेलेरेशन' है।

जब हम भारत में स्टार्टअप्स की बात करते हैं, तो हम अक्सर यूनिकॉर्न्स की कहानियों से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। लेकिन हडल ग्लोबल जैसे मंचों का मुख्य उद्देश्य शायद नए विचारों को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि उन विचारों को पूंजी के गलियारों तक पहुंचाना है जो पहले से ही वीसी (Venture Capital) की दुनिया को नियंत्रित करते हैं। यह एक ऐसा इकोसिस्टम है जो तेजी से 'ओपन सोर्स' से हटकर 'क्लोज्ड लूप' की ओर बढ़ रहा है।

असली विजेता और छिपे हुए नुकसान

इस तरह के आयोजनों के सबसे बड़े विजेता वे निवेशक और स्थापित कॉर्पोरेट घरानों के प्रतिनिधि होते हैं जो 'अगले बड़े मौके' की तलाश में होते हैं। वे नए स्टार्टअप्स को सस्ते में अधिग्रहण (Acquisition) करने या उनके शुरुआती चरणों में भारी हिस्सेदारी हासिल करने के अवसर तलाशते हैं। नए उद्यमियों के लिए, यह एक दोधारी तलवार है। उन्हें मंच मिलता है, लेकिन अक्सर वे अपनी बौद्धिक संपदा (IP) पर नियंत्रण खो देते हैं।

'स्टार्टअप इंडिया' की कहानी में एक अनकहा अध्याय है: 'फंडिंग का केंद्रीकरण'। अधिकांश फंडिंग अब टियर-1 शहरों और विशिष्ट क्षेत्रों (FinTech, SaaS) पर केंद्रित हो रही है। टियर-2 और टियर-3 शहरों के वास्तविक जमीनी नवाचार, जो शायद भारत की 80% समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, वे इन हाई-प्रोफाइल मंचों की चमक-दमक से दूर रह जाते हैं। यह आयोजन उस खाई को पाटने के बजाय, उसे और गहरा कर सकता है।

वास्तविक नवाचार अक्सर तब होता है जब सरकारें या बड़े संस्थान फंडिंग के बजाय बुनियादी ढाँचा (Infrastructure) और नियामक सरलता (Regulatory Ease) प्रदान करते हैं। क्या हडल ग्लोबल इस पर पर्याप्त ध्यान दे रहा है? शायद नहीं। यह 'चमक' पर अधिक केंद्रित है, न कि 'स्थायित्व' पर। अधिक जानकारी के लिए, आप भारत के उद्यम पूंजी रुझानों पर रॉयटर्स (Reuters) की रिपोर्ट देख सकते हैं।

भविष्य की भविष्यवाणी: द ग्रेट कंसोलिडेशन

मेरा बोल्ड अनुमान है कि अगले 18 महीनों में, हम भारत में 'द ग्रेट कंसोलिडेशन' देखेंगे। फंडिंग की धीमी गति के कारण, हजारों छोटे स्टार्टअप्स जो केवल 'फंडिंग के नशे' पर चल रहे थे, वे या तो बंद हो जाएंगे या बड़े खिलाड़ियों द्वारा सस्ते में अवशोषित कर लिए जाएंगे। हडल ग्लोबल जैसे इवेंट्स इस समेकन (Consolidation) की प्रक्रिया को तेज करने वाले उत्प्रेरक (Catalyst) के रूप में कार्य करेंगे।

भविष्य उन स्टार्टअप्स का है जो 'राजस्व-केंद्रित' (Revenue-focused) हैं, न कि केवल 'मूल्यांकन-केंद्रित' (Valuation-focused)। जो कंपनियां अब 'स्केलिंग' के बजाय 'सस्टेनेबिलिटी' पर ध्यान केंद्रित करेंगी, वे ही टिकेंगी। यह वह समय है जब 'हाइप' खत्म होती है और वास्तविक इंजीनियरिंग शुरू होती है। यह इवेंट शायद उस बदलाव का शुरुआती संकेत है।

इस पूरे परिदृश्य को समझने के लिए, हमें यह देखना होगा कि वैश्विक स्तर पर पूंजी प्रवाह कैसे बदल रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर रिपोर्टें इस दबाव को स्पष्ट करती हैं।

निष्कर्ष: शोर से परे

हडल ग्लोबल ’25 निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण नेटवर्किंग अवसर है। लेकिन इसे भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए 'अंतिम समाधान' मानना एक बड़ी भूल होगी। असली प्रगति तब होगी जब नवाचार की परिभाषा व्यापक होगी और पूंजी कुछ चुनिंदा हाथों से निकलकर देश के हर कोने तक पहुंचेगी। तब तक, यह केवल एक भव्य वार्षिक प्रदर्शन है।