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IIT रोपड़ का '100 स्टार्टअप्स, 100 दिन': क्या यह सिर्फ एक इवेंट है, या भारत की 'असली' तकनीकी क्रांति का पर्दाफाश?

By Ishaan Kapoor • December 14, 2025

हूक: क्या भारत की 'नवाचार' की परिभाषा बदल रही है?

जब IIT रोपड़ (IIT Ropar) ने '100 स्टार्टअप्स 100 दिन' (100 Startups 100 Days) अभियान की घोषणा की, तो इसे एक और अकादमिक पहल मानकर नज़रअंदाज़ करना सबसे बड़ी भूल होगी। यह सिर्फ एक **तकनीकी नवाचार** (Technical Innovation) का प्रदर्शन नहीं है; यह भारत के **उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र** (Entrepreneurship Ecosystem) में गहरे संरचनात्मक बदलाव का संकेत है। लेकिन, इस शोर-शराबे के बीच, वह अनकहा सच क्या है जिसे कोई नहीं बता रहा है? असली विजेता कौन है? और क्या यह वास्तव में 'एआई इनोवेशन' (AI Innovation) की दिशा तय करेगा?

'मीट' का विश्लेषण: डेटा के पीछे की कहानी

इस पहल का मुख्य आकर्षण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर केंद्रित है। 100 दिनों में 100 स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, खासकर जब हम इसे एक छोटे शहर के IIT से होते हुए देखते हैं। यह दिखाता है कि अब टियर-1 शहरों का एकाधिकार टूट रहा है। लेकिन, **नवाचार** (Innovation) केवल विचारों की संख्या से नहीं मापा जाता। सवाल यह है: इन 100 में से कितने स्टार्टअप्स वास्तव में स्केलेबल (Scalable) हैं? कितने केवल सरकारी अनुदान पाने के लिए बनाए गए 'प्रोजेक्ट' हैं?

सच्चाई यह है कि यह कार्यक्रम आईआईटी रोपड़ के लिए एक शक्तिशाली ब्रांडिंग उपकरण है। यह संस्थान को तुरंत भारत के शीर्ष नवाचार केंद्रों जैसे आईआईटी बॉम्बे या दिल्ली के बराबर लाकर खड़ा कर देता है। यह एक रणनीतिक कदम है ताकि उच्च-गुणवत्ता वाले छात्रों और फंडिंग को आकर्षित किया जा सके। फंडिंग की बात करें तो, यह पहल संभावित रूप से स्थानीय निवेशकों और वेंचर कैपिटलिस्ट्स (VCs) को आकर्षित करने का एक फ़िल्टर बन सकती है। यह **उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र** (Entrepreneurship Ecosystem) को मजबूत करने का एक शानदार तरीका है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि कितने स्टार्टअप्स अगले 12 महीनों में फंडिंग जुटा पाते हैं, न कि केवल प्री-सम्मिट पिच डे पर क्या हुआ। वैश्विक प्रौद्योगिकी रुझान लगातार बदल रहे हैं, और केवल AI पर ध्यान केंद्रित करना अल्पकालिक हो सकता है।

'क्यों मायने रखता है': विकेंद्रीकृत शक्ति का उदय

यह पहल भारत की 'विकेंद्रीकृत नवाचार' की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती है। अब तक, बंगलुरु और दिल्ली-एनसीआर ही स्टार्टअप हब थे। जब चंडीगढ़/रोपड़ क्षेत्र का कोई संस्थान इतनी बड़ी पहल करता है, तो इसका मतलब है कि 'टैलेंट' अब भौगोलिक सीमाओं से बंधा नहीं है। यह क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा अवसर है, लेकिन यह मौजूदा टेक हब के लिए खतरा भी है। यदि फंडिंग और प्रतिभा का यह प्रवाह सफलतापूर्वक स्थानीय स्तर पर बना रहता है, तो यह भारत के तकनीकी विकास को अधिक लचीला (Resilient) बना देगा।

हालांकि, मेरा मानना है कि इस पहल का सबसे बड़ा लाभार्थी सरकार की 'आत्मनिर्भर भारत' की कहानी होगी। यह एक सिद्ध केस स्टडी प्रदान करता है कि कैसे अकादमिक संस्थान जमीनी स्तर पर **तकनीकी नवाचार** (Technical Innovation) को बढ़ावा दे सकते हैं। **उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र** (Entrepreneurship Ecosystem) को मजबूत करने के लिए यह एक आवश्यक कदम है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह केवल कागजी सफलता बनकर न रह जाए।

भविष्य का अनुमान: अगला कदम क्या होगा?

मेरा बोल्ड अनुमान है: अगले 18 महीनों में, IIT रोपड़ द्वारा समर्थित कम से कम तीन स्टार्टअप्स को राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण सीड फंडिंग मिलेगी, जिससे यह मॉडल पूरे भारत के अन्य टियर-2 IITs द्वारा अपनाया जाएगा। हालांकि, AI नवाचार में एक बड़ी चुनौती आएगी: 'जनरेटिव एआई' (Generative AI) के आसपास की अत्यधिक फंडिंग जल्द ही संतृप्ति (Saturation) की ओर बढ़ेगी। सफल होने वाले स्टार्टअप वे होंगे जो AI को किसी विशिष्ट, अनसुलझी औद्योगिक समस्या (जैसे कृषि या जल प्रबंधन) पर लागू करेंगे, न कि केवल चैटबॉट्स बनाएंगे। यह **नवाचार** (Innovation) की असली परीक्षा होगी। वेंचर कैपिटल की दुनिया अब 'चमक' के बजाय 'वास्तविक उपयोगिता' की मांग कर रही है।

मुख्य निष्कर्ष (TL;DR)