हुक: क्या हम वास्तव में 'AI महाशक्ति' बनने के करीब हैं?
जब भी कोई प्रतिष्ठित संस्थान, जैसे IIT रोपड़, एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा करता है—जैसे '100 स्टार्टअप्स 100 दिन'—तो मीडिया तुरंत तालियां बजाना शुरू कर देता है। यह इवेंट, जो 2026 के इंडिया AI इम्पैक्ट समिट से पहले हो रहा है, सतही तौर पर **स्टार्टअप इकोसिस्टम** में एक बड़ा कदम लगता है। लेकिन रुकिए। क्या यह वास्तव में जमीनी हकीकत को बदलने वाला है, या यह सिर्फ एक और 'शोकेस' है जिसका मकसद निवेश आकर्षित करना और सरकारी लक्ष्यों को पूरा करना है? असली सवाल यह है: क्या हम सच में नवाचार (Innovation) को बढ़ावा दे रहे हैं, या सिर्फ संख्याएं बढ़ा रहे हैं?
मांस: सतही रिपोर्टिंग से परे की सच्चाई
IIT रोपड़ का यह कार्यक्रम स्पष्ट रूप से **भारत में स्टार्टअप्स** की संख्या बढ़ाने पर केंद्रित है, विशेष रूप से AI क्षेत्र में। यह एक अच्छा कदम है, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन इस '100 दिन' की दौड़ का असली विजेता कौन होगा? अक्सर, ऐसे त्वरित कार्यक्रमों में, गुणवत्ता पर गति को प्राथमिकता दी जाती है। क्या इन 100 कंपनियों के पास स्थायी व्यापार मॉडल होंगे, या वे केवल समिट के लिए आकर्षक पिच डेक तैयार करेंगे? यह एक 'हॉट मनी' का खेल हो सकता है, जहां शुरुआती फंडिंग जल्दी मिल जाती है, लेकिन बाजार की कठोरता उन्हें जल्दी ही बाहर फेंक देगी। हमें यह समझना होगा कि IIT टैग मिलना अब उतना दुर्लभ नहीं है जितना पहले हुआ करता था। असली चुनौती यह है कि क्या ये **तकनीकी स्टार्टअप** वास्तविक समस्याओं का समाधान कर रहे हैं या सिर्फ मौजूदा समाधानों को 'AI-लेपित' कर रहे हैं।
गहन विश्लेषण: सत्ता का खेल और छिपी हुई लागत
इस पहल का सबसे अनदेखा पहलू है 'एकाधिकार की ओर झुकाव'। जब शीर्ष संस्थान एक साथ आकर एक विशिष्ट क्षेत्र (AI) पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह अक्सर उन छोटे, दूरदराज के नवाचारों को हाशिये पर धकेल देता है जो शायद उतने 'चमकदार' न हों लेकिन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए अधिक प्रासंगिक हों। यह एक प्रकार का 'सेंट्रलाइज़्ड इनोवेशन' है। भारत की विशाल विविधता को देखते हुए, क्या रोपड़ का मॉडल टियर-2 या टियर-3 शहरों के उद्यमियों के लिए दोहराया जा सकता है? शायद नहीं। यह पहल वास्तव में बड़े कॉर्पोरेट निवेशकों और स्थापित VCs के लिए 'प्री-स्क्रीनिंग' का काम करती है। वे जानते हैं कि IIT टैग वाली कंपनियों में जोखिम कम है। इसलिए, यह पहल जमीनी स्तर पर क्रांति लाने के बजाय, मौजूदा फंडिंग संरचना को और मजबूत करने का काम कर सकती है। (अधिक जानकारी के लिए, भारत के VC परिदृश्य पर हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के विश्लेषण देखें)।
भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरी भविष्यवाणी है कि इन 100 में से, केवल 10-15 स्टार्टअप ही अगले तीन वर्षों में महत्वपूर्ण फंडिंग जुटा पाएंगे और शायद 5 ही वास्तव में बाजार में टिक पाएंगे। बाकी 'सफल' स्टार्टअप्स को शायद बड़े कॉर्पोरेशनों द्वारा सस्ते में अधिग्रहित (Acquire) कर लिया जाएगा, जहां उनके IP को उनके मूल मिशन से दूर ले जाया जाएगा। 2026 का इंडिया AI इम्पैक्ट समिट एक शानदार इवेंट होगा, लेकिन असली प्रभाव 2028 में दिखेगा, जब यह पता चलेगा कि कितने उद्यम वास्तव में रोजगार सृजित कर पाए। **भारत में स्टार्टअप्स** की संख्या बढ़ना अच्छी बात है, लेकिन उनकी 'जीवन-अवधि' (Survival Rate) पर ध्यान देना अधिक महत्वपूर्ण है।
यह केवल एक लॉन्च नहीं है; यह भारत की महत्वाकांक्षाओं का एक प्रदर्शन है। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि हर शानदार लॉन्च के पीछे एक कठोर बाजार वास्तविकता छिपी होती है।