खेल जगत का नया शोर: SSI राष्ट्रीय पुरस्कार और अनकहा सच
हाल ही में सुर्खियों में आया **SSI राष्ट्रीय खेल पुरस्कार** समारोह, जिसका बखान किया जा रहा है कि यह 'नए एथलीटों, दिग्गजों और वर्तमान खिलाड़ियों' को प्रेरित करेगा। सतह पर, यह भारत में खेल संस्कृति को बढ़ावा देने का एक सराहनीय प्रयास लगता है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के तौर पर, हमें केवल सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। असली सवाल यह है: **क्या यह पुरस्कार वास्तव में जमीनी स्तर पर भागीदारी को बढ़ाएगा, या यह केवल उच्च-स्तरीय ग्लैमर का एक और प्रदर्शन है जो देश की बुनियादी खेल समस्याओं से ध्यान भटकाता है?**
भारत में खेल भागीदारी (sports participation) का आंकड़ा हमेशा चिंताजनक रहा है। हम क्रिकेट को छोड़कर अन्य खेलों में विश्व मंच पर लगातार संघर्ष करते हैं। इस पुरस्कार का मुख्य लक्ष्य 'प्रेरणा' देना है। लेकिन प्रेरणा क्या है? क्या एक युवा एथलीट को तब प्रेरणा मिलती है जब वह टेलीविजन पर किसी को पुरस्कार पाते देखता है, या तब मिलती है जब उसे अपने गांव या कस्बे में एक बुनियादी ढांचा, एक योग्य कोच, और नियमित फंडिंग मिलती है? मेरा मानना है कि यह पहल उन चुनिंदा लोगों को सम्मानित करने पर अधिक केंद्रित है जो पहले से ही सिस्टम में स्थापित हैं, बजाय इसके कि यह उन लाखों गुमनाम प्रतिभाओं को जोड़े जो संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। यह एक सतही समाधान है।
विश्लेषण: असली विजेता और छिपे हुए नुकसान
इस तरह के राष्ट्रीय पुरस्कारों का सबसे बड़ा लाभार्थी अक्सर सरकारी प्रचार तंत्र होता है। यह दर्शाता है कि 'कुछ किया जा रहा है'। लेकिन **खेलों में निवेश** (investment in sports) के नजरिए से देखें, तो इन आयोजनों का बजट यदि जमीनी स्तर के खेल विकास कार्यक्रमों में लगाया जाता, तो उसका प्रभाव कहीं अधिक स्थायी होता।
विपरीत दृष्टिकोण (Contrarian View): यह पुरस्कार पुरानी पीढ़ी के खिलाड़ियों को सम्मान देकर उन्हें 'सक्रिय' रखने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन यह नए खिलाड़ियों के लिए वास्तविक बाधाओं—जैसे प्रायोजन की कमी, जाति-आधारित या वर्ग-आधारित चयन प्रक्रियाएं, और खराब पोषण—को संबोधित नहीं करता है। यह केवल एक 'सामाजिक सुरक्षा जाल' प्रदान करता है, वास्तविक विकास नहीं। यदि हम वास्तव में भागीदारी बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें जमीनी स्तर पर **खेल बुनियादी ढांचा** (sports infrastructure) विकसित करने की आवश्यकता है, न कि केवल चमकदार शामें आयोजित करने की।
भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरा अनुमान है कि अगले पांच वर्षों में, ये पुरस्कार मौजूदा सितारों को चमकते रहेंगे। हालांकि, जमीनी स्तर पर भागीदारी में कोई महत्वपूर्ण उछाल देखने को नहीं मिलेगा, जब तक कि सरकारें खेल बजट का एक बड़ा हिस्सा स्थानीय क्लबों और स्कूल-स्तरीय प्रतियोगिताओं को आवंटित नहीं करतीं। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो भारत की एथलेटिक क्षमता का एक बड़ा हिस्सा अप्रयुक्त ही रह जाएगा, और हम ओलंपिक या विश्व चैंपियनशिप में केवल 'कुछ पदक' जीतने की उम्मीद करते रहेंगे, न कि एक स्थायी खेल महाशक्ति बनने की। वास्तविक क्रांति तब होगी जब पुरस्कार समारोह के बजाय, हर जिले में एक विश्व स्तरीय प्रशिक्षण केंद्र होगा।
हमें समझना होगा कि असली खेल नेतृत्व यह नहीं है कि किसे सम्मानित किया गया, बल्कि यह है कि कितने नए बच्चे हर दिन खेल रहे हैं। (अधिक जानकारी के लिए, आप खेल संस्कृति पर प्रतिष्ठित अकादमिक विश्लेषण देख सकते हैं, उदाहरण के लिए, खेल अर्थशास्त्र पर कुछ लेखों को खंगाल सकते हैं)।