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इंडिगो विवाद: 'भ्रष्ट प्रबंधन' के पीछे छिपी वो सच्चाई जिसे सरकार छिपा रही है!

By Aadhya Singh • December 8, 2025

**हुक: क्या भारत का आसमान सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों के लिए आरक्षित है?**

जब शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने **इंडिगो प्रबंधन** को 'भ्रष्ट' करार दिया और इसके लिए सीधे केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया, तो यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं था; यह भारतीय विमानन क्षेत्र की गहरी सड़न पर पड़ा एक पर्दा था। यह विवाद सिर्फ उड़ान देरी या ग्राहक सेवा की शिकायतों तक सीमित नहीं है। यह उस **सरकारी हस्तक्षेप** की कहानी है जिसने एक निजी एकाधिकार को पोषित किया है। हम इस पर बात करेंगे कि क्यों यह केवल एक एयरलाइन का मामला नहीं है, बल्कि 'मेक इन इंडिया' और नागरिक उड्डयन क्षेत्र की विश्वसनीयता का सवाल है।

**गोश्त: आरोप और जमीनी हकीकत**

सावंत का सीधा आरोप है कि इंडिगो का प्रबंधन 'टेढ़ा' है और सरकार की नीतियों ने उन्हें यह छूट दी है। लेकिन विडंबना यह है कि इंडिगो भारत की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन है, जो बाजार का एक बड़ा हिस्सा नियंत्रित करती है। **विमानन क्षेत्र** में यह प्रभुत्व रातोंरात नहीं आया। यह तब मजबूत हुआ जब प्रतिस्पर्धी एयरलाइंस संघर्ष कर रही थीं या बंद हो गईं। विश्लेषकों का मानना है कि नियामक निर्णय, जैसे कि स्लॉट आवंटन और प्रतिस्पर्धा नियमों की ढीली पकड़, एक खास खिलाड़ी के पक्ष में काम करती रही है। यह केवल एक एयरलाइन की विफलता नहीं है, यह एक ऐसी नियामक प्रणाली की विफलता है जो **भारतीय अर्थव्यवस्था** के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विफल रही है।

**'क्यों मायने रखता है': सत्ता का अदृश्य हाथ**

जो बात कोई नहीं बता रहा, वह है 'विजेता कौन' का समीकरण। जब एक एयरलाइन प्रभावी रूप से बाजार पर हावी हो जाती है, तो इसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है—टिकट की कीमतें बढ़ती हैं, सेवा गिरती है, और नवाचार रुक जाता है। सावंत का गुस्सा जायज हो सकता है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि सरकार की भूमिका क्या है। क्या वे जानबूझकर प्रतिस्पर्धा को कम होने दे रहे हैं ताकि एक मजबूत घरेलू 'राष्ट्रीय वाहक' (भले ही वह निजी हो) बन सके, या क्या यह केवल अक्षमता और राजनीतिक पक्षपात का परिणाम है? यह मुद्दा **सरकारी नीतियों** की गहराई में झांकता है—क्या वे बाजार को मुक्त करते हैं या उसे नियंत्रित करते हैं? यदि आरोप सही हैं, तो यह सीधे तौर पर 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के दावों पर सवाल खड़ा करता है। (आप नागरिक उड्डयन क्षेत्र की नियामक संरचना के बारे में अधिक जान सकते हैं [यहां] - उदाहरण के लिए, एएआई की भूमिका पर एक रिपोर्ट)।

**भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?**

मेरी **भविष्यवाणी** स्पष्ट है: यह विवाद जल्द ही शांत हो जाएगा, लेकिन समस्या बनी रहेगी। सरकार एक मामूली जांच या नियामक समीक्षा का आदेश दे सकती है—एक 'प्रक्रियात्मक शोर'—लेकिन संरचनात्मक बदलाव की संभावना कम है। इंडिगो की बाजार स्थिति इतनी मजबूत है कि उसे गिराना राजनीतिक रूप से मुश्किल होगा। अगले 18 महीनों में, हम उच्च टिकट कीमतों और बढ़ती यात्री शिकायतों का एक और चरण देखेंगे, जिसके बाद सरकार एक और सब्सिडी या कर राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है जो अप्रत्यक्ष रूप से बाजार के प्रमुख खिलाड़ियों को लाभ पहुंचाएगा। असली विजेता वे निवेशक और अधिकारी होंगे जो इस अपारदर्शी प्रणाली से लाभान्वित हो रहे हैं।

**निष्कर्ष: जनता की जेब पर असर**

इंडिगो पर लगे आरोप, चाहे वे पूरी तरह सच हों या राजनीतिक रूप से प्रेरित, एक बड़े सत्य को उजागर करते हैं: जब **सरकारी निगरानी** कमजोर होती है, तो बाजार की शक्ति भ्रष्ट हो जाती है। जब तक नियामक निकाय स्वतंत्र और कठोर नहीं होंगे, भारतीय यात्री हमेशा एकाधिकार की दया पर रहेंगे।