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एलिस वोंग की विरासत: क्यों मुख्यधारा मीडिया 'दिव्यांगता सक्रियता' की असली लड़ाई को अनदेखा कर रहा है?

By Arjun Chopra • December 8, 2025

आखिरी सलाम? या सिर्फ एक और फोटो-ऑप?

दिव्यांगता अधिकार आंदोलन की एक ध्रुवतारा, एलिस वोंग (Alice Wong) के निधन ने एक खालीपन छोड़ दिया है। लेकिन जब मीडिया उनकी 'प्रेरणादायक' कहानियों को दोहरा रहा है, तो असली सवाल अनसुलझा है: क्या उनके जाने से दिव्यांगता सक्रियता (Disability Activism) की धीमी गति वाली, कठोर राजनीतिक लड़ाई धीमी पड़ जाएगी, या यह केवल एक और क्षणिक सोशल मीडिया ट्रेंड बनकर रह जाएगी? यह सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं है; यह एक कठोर विश्लेषण है कि कैसे मुख्यधारा ने इस आंदोलन को 'स्वीकार्यता' के आरामदायक बुलबुले में कैद कर दिया है। एलिस वोंग: सिर्फ एक आवाज़ नहीं, एक राजनीतिक हथियार वोंग सिर्फ व्हीलचेयर पर बैठी एक दया की पात्र नहीं थीं; वह एक तीखी आलोचक थीं। उन्होंने लगातार इस मिथक को तोड़ा कि 'दिव्यांगता' केवल व्यक्तिगत त्रासदी है। उनका काम, विशेष रूप से उनकी पुस्तक 'Disability Visibility' और उनका लेखन, यह स्पष्ट करता है कि यह **संरचनात्मक बाधाओं (Structural Barriers)** की राजनीति है। उन्होंने यह नहीं कहा कि हमें 'समावेशी' बनाया जाए; उन्होंने मांग की कि सत्ता के गलियारों को हमारे लिए बदलना होगा। यह वह **सक्रियता की राजनीति (Politics of Activism)** है जिसे NPR और अन्य संस्थाएं श्रद्धांजलि देते समय अक्सर नरम कर देती हैं।

असली लड़ाई: 'सहनशीलता' बनाम 'अधिकार'

मीडिया अक्सर दिव्यांगता समुदाय को 'सहनशीलता' (Tolerance) के लेंस से दिखाता है—जैसे कि वे समाज के लिए एक दयालु कार्य कर रहे हों। यह सबसे बड़ा धोखा है। वोंग और उनके जैसे कार्यकर्ताओं का जोर हमेशा **नागरिक अधिकार (Civil Rights)** पर रहा है। जब हम 'एलिस वोंग' को याद करते हैं, तो हमें यह याद रखना होगा कि भारत जैसे देशों में, जहां बुनियादी पहुंच (Accessibility) अभी भी एक सपना है, उनकी विरासत का अर्थ है मूलभूत ढांचे में बदलाव की मांग करना। यह केवल रैंप बनाने की बात नहीं है; यह शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी में पूर्ण समानता की मांग है। यह वह हिस्सा है जिसे कॉर्पोरेट CSR फंड आसानी से पचा जाते हैं। विपरीत मत: कौन जीतता है और कौन हारता है? सतह पर, वोंग की यादें सभी को अच्छा महसूस कराती हैं। लेकिन गहरे विश्लेषण में, यह प्रणाली जीतती है जो बदलाव से डरती है। जब किसी क्रांतिकारी एक्टिविस्ट को 'आइकन' बना दिया जाता है, तो उनकी उग्र मांगों को ठंडा कर दिया जाता है। एलिस वोंग का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने आरामदेह बहस को तोड़ दिया। उनके जाने के बाद, यह देखना होगा कि क्या दिव्यांगता सक्रियता फिर से 'स्वीकार्य' और 'अपमानजनक' मुद्दों तक सीमित हो जाती है, या क्या यह उनके द्वारा स्थापित आक्रामक राजनीतिक रुख को बरकरार रखती है। अधिकांशतः, इतिहास बताता है कि महान नेताओं के जाने के बाद, आंदोलन बिखर जाते हैं या मुख्यधारा में समाहित हो जाते हैं।

आगे क्या होगा? भविष्य की भविष्यवाणी

अगले पांच वर्षों में, हम दो समानांतर रास्ते देखेंगे। पहला, सोशल मीडिया पर 'दिव्यांगता जागरूकता' अभियानों की बाढ़ आएगी, जो सतही समर्थन पर आधारित होंगे। दूसरा, और अधिक महत्वपूर्ण रूप से, भूमिगत स्तर पर, युवा कार्यकर्ता **डिजिटल एक्सेसिबिलिटी (Digital Accessibility)** और **सार्वजनिक परिवहन सुधारों** जैसे कठोर, कानूनी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। वोंग की विरासत उन्हें सिखाएगी कि ट्विटर पर रीट्वीट से ज्यादा महत्वपूर्ण कानून की किताबों को बदलना है। हम देखेंगे कि दिव्यांगता अधिकार अब केवल स्वास्थ्य सेवा तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि **आर्थिक न्याय (Economic Justice)** की केंद्रीय मांग बनेंगे। यह एक धीमी, कानूनी लड़ाई होगी, जिसमें ग्लैमर कम और कानूनी दस्तावेज़ ज्यादा होंगे।

यह समय है कि हम एलिस वोंग को सिर्फ एक प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि एक राजनीतिक चुनौती के रूप में देखें।