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कोयंबटूर का KRUU समिट: प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा का मायाजाल या भारत के भविष्य का एकमात्र रास्ता?

By Pari Banerjee • December 17, 2025

शिक्षा का नया नाटक: क्या 'प्रोजेक्ट-लेड लर्निंग' सिर्फ एक कॉर्पोरेट नारा है?

कोयंबटूर में हाल ही में संपन्न हुआ **KRUU स्टूडेंट समिट** सुर्खियों में है। चर्चा का केंद्र बिंदु? **प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा (Project-Led Learning)** की ओर बढ़ता रुझान। हर कोई इसे 'भविष्य की शिक्षा' बता रहा है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, मेरा सवाल यह है: **इस शोर के पीछे की सच्चाई क्या है?** क्या यह वास्तव में शिक्षा प्रणाली में मौलिक बदलाव है, या केवल पुरानी थ्योरी को एक नए, आकर्षक पैकेजिंग में बेचने का प्रयास है, ताकि कॉर्पोरेट जगत को संतुष्ट किया जा सके? यह **लर्निंग** की दुनिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसकी गहराई से पड़ताल जरूरी है।

अनकहा सच: कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है?

सतह पर, छात्र जीत रहे हैं क्योंकि उन्हें 'करके सीखने' का मौका मिल रहा है। लेकिन असली विजेता वे संस्थान और वे कंपनियाँ हैं जो इस नई शिक्षा पद्धति को बढ़ावा दे रही हैं। **शिक्षा क्षेत्र में निवेश** तेजी से बढ़ रहा है, और जो कंपनियाँ इस 'स्किल गैप' को भरने का दावा करती हैं, वे भारी मुनाफा कमा रही हैं। पर हार कौन रहा है? **पारंपरिक अकादमिक गहराई** हार रही है। जब ध्यान केवल 'प्रोजेक्ट पूरा करने' पर केंद्रित होता है, तो मौलिक सिद्धांतों, सैद्धांतिक ज्ञान और आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking) की नींव कमजोर हो जाती है। हम ऐसे इंजीनियर और डिजाइनर बना सकते हैं जो एक ऐप बना सकते हैं, लेकिन क्या वे उस ऐप के पीछे के गणितीय सिद्धांतों को समझ पाएंगे? यह एक खतरनाक संतुलन है। भारत जैसे देश में जहाँ प्रतिस्पर्धा चरम पर है, **छात्रों का भविष्य** दांव पर है। (अधिक जानकारी के लिए, आप शिक्षा में कौशल अंतर पर विकिपीडिया लेख देख सकते हैं)।

गहराई से विश्लेषण: क्यों यह बदलाव ऐतिहासिक है?

यह बदलाव सिर्फ पाठ्यक्रम बदलने तक सीमित नहीं है; यह भारतीय कार्यबल की मानसिकता को बदल रहा है। दशकों से, भारतीय शिक्षा प्रणाली रटने और परीक्षा पास करने पर आधारित थी—एक ऐसी प्रणाली जो ब्रिटिश राज की नौकरशाही आवश्यकताओं के लिए डिज़ाइन की गई थी। **प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा** इस औपनिवेशिक विरासत को तोड़ने का प्रयास है। यह छात्रों को आत्मनिर्भर बनने और पारंपरिक 'जॉब सीकर' से 'जॉब क्रिएटर' बनने के लिए मजबूर करता है। यह वैश्वीकरण और चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) की सीधी प्रतिक्रिया है। यदि हम इन बदलावों को नहीं अपनाते हैं, तो हमारी युवा आबादी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएगी। (इस बारे में अधिक वैश्विक दृष्टिकोण के लिए, विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्टें देखें)।

भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?

मेरा मानना है कि अगले पाँच वर्षों में, हम एक **'प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा' का बुलबुला** देखेंगे। शुरुआती उत्साह के बाद, उच्च शिक्षा संस्थान दो हिस्सों में बँट जाएँगे। एक तरफ, शीर्ष संस्थान मौलिक ज्ञान और प्रोजेक्ट-वर्क का बेहतरीन मिश्रण पेश करेंगे। दूसरी तरफ, सस्ते संस्थान केवल सतही प्रोजेक्ट्स बेचेंगे। इसका नतीजा यह होगा कि नियोक्ता फिर से **मूलभूत ज्ञान (Fundamental Knowledge)** के महत्व को पहचानेंगे। हम एक 'हाइब्रिड मॉडल' की ओर बढ़ेंगे, जहाँ प्रोजेक्ट-वर्क अनिवार्य होगा, लेकिन उसके लिए सैद्धांतिक परीक्षाएँ और कठोर मूल्यांकन भी अनिवार्य होंगे। **शिक्षा प्रणाली** अंततः संतुलन खोजेगी, लेकिन इस प्रक्रिया में कई संस्थान विफल होंगे। (वैश्विक शैक्षणिक सुधारों के रुझानों पर न्यूयॉर्क टाइम्स का विश्लेषण देखें)।

असली चुनौती: शिक्षकों का प्रशिक्षण

सबसे बड़ी अनदेखी की गई चुनौती शिक्षकों का प्रशिक्षण है। एक प्रोफेसर जो 20 साल तक लेक्चर देता रहा है, उसे अचानक मेंटर और फैसिलिटेटर बनना होगा। क्या हमारे पास इतने प्रशिक्षित शिक्षक हैं? शायद नहीं। जब तक शिक्षकों को **सार्थक शिक्षण** के लिए तैयार नहीं किया जाता, तब तक ये प्रोजेक्ट केवल कागजी कार्यवाही बनकर रह जाएंगे।

KRUU समिट एक संकेत है, मंजिल नहीं। असली क्रांति तब होगी जब हम न केवल 'क्या पढ़ाना है' बदलेंगे, बल्कि 'कैसे पढ़ाना है' को पूरी तरह से बदल देंगे।