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डिजिटल शिक्षा की गुणवत्ता: सरकारी कार्यशालाएं नहीं, बल्कि 'असली' समस्या क्या है?

By Aditya Patel • December 20, 2025

डिजिटल शिक्षा की गुणवत्ता: सरकारी कार्यशालाएं नहीं, बल्कि 'असली' समस्या क्या है?

भारत में डिजिटल शिक्षा (Digital Shiksha) की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कार्यशालाओं का आयोजन हो रहा है। सतह पर, यह प्रगति का प्रतीक लगता है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के तौर पर, हमें पूछना होगा: ये कार्यशालाएं वास्तव में किस समस्या का समाधान कर रही हैं? क्या वे केवल कागजी कार्रवाई हैं, जबकि असली संकट – पहुँच, प्रासंगिकता और शिक्षक प्रशिक्षण का अभाव – अनदेखा किया जा रहा है?

हालिया रिपोर्टों के अनुसार, सरकारें 'गुणवत्ता' बढ़ाने पर जोर दे रही हैं। यह एक सुरक्षित शब्द है। लेकिन असली खेल हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच है। देश के दूरदराज के इलाकों में, जहाँ विश्वसनीय इंटरनेट और बिजली भी एक विलासिता है, वहाँ 'उच्च गुणवत्ता वाले डिजिटल कंटेंट' का क्या मोल है? ऑनलाइन लर्निंग (Online Learning) की बहस अक्सर शहरी अभिजात वर्ग के अनुभवों पर केंद्रित होती है, जो ग्रामीण भारत के विशाल डिजिटल डिवाइड को नजरअंदाज कर देती है। यह 'गुणवत्ता' का एजेंडा दरअसल एक राजनीतिक बयानबाजी है, जो जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।

असली विजेता और हारने वाले: सत्ता का खेल

इन कार्यशालाओं का असली विजेता कौन है? शिक्षा प्रौद्योगिकी (EdTech) कंपनियाँ और सरकारी विक्रेता। वे ऐसे समाधान बेचते हैं जिनकी शायद स्कूलों को जरूरत नहीं है, लेकिन जो बजट खर्च करने के लिए आकर्षक दिखते हैं। वे 'डिजिटल परिवर्तन' के नाम पर भारी मुनाफा कमाते हैं। हारने वाले? वे छात्र हैं जिन्हें अभी भी बुनियादी साक्षरता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, और वे शिक्षक हैं जिन्हें बिना पर्याप्त प्रशिक्षण के अचानक खुद को तकनीकी गुरु बनना पड़ा है। गुणवत्ता में सुधार का मतलब सिर्फ बेहतर वीडियो नहीं है; इसका मतलब है शिक्षकों को सशक्त बनाना। लेकिन क्या कार्यशालाएं शिक्षकों को सशक्त कर रही हैं, या उन्हें केवल नए सॉफ्टवेयर का उपयोग करने के लिए मजबूर कर रही हैं?

भारत की शिक्षा प्रणाली (Shiksha Pranali) में यह एक पुराना पैटर्न है: समाधान को समस्या से अधिक जटिल बना देना। हम मानते हैं कि तकनीक अपने आप में जादू की छड़ी है। उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए आवश्यक है - आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान कौशल, और मानवीय जुड़ाव। ये चीजें किसी एल्गोरिथम या पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन से नहीं सीखी जा सकतीं। [उदाहरण के लिए, यूनेस्को (UNESCO) भी डिजिटल शिक्षा के सामाजिक पहलुओं पर जोर देता है](https://www.unesco.org)।

भविष्य की भविष्यवाणी: 'हाइब्रिड' भ्रम

आगे क्या होगा? मेरा मानना है कि हम एक 'हाइब्रिड' भ्रम की ओर बढ़ रहे हैं। सरकारें डिजिटल पहल को बढ़ावा देंगी, लेकिन जमीनी स्तर पर, शिक्षक पुरानी विधियों पर ही टिके रहेंगे क्योंकि वे प्रभावी हैं। यह एक दोहरी शिक्षा प्रणाली को जन्म देगा: एक उच्च तकनीक वाली शहरी प्रणाली और एक बुनियादी, अपर्याप्त ग्रामीण प्रणाली। यह असमानता को और बढ़ाएगा। असली क्रांति तब आएगी जब हम यह स्वीकार करेंगे कि डिजिटल उपकरण केवल सहायक हैं, शिक्षक नहीं।

एक कड़वा सच यह है कि जब तक हम शिक्षकों को पर्याप्त वेतन, सम्मान और निरंतर, व्यावहारिक प्रशिक्षण नहीं देते, तब तक कोई भी राष्ट्रीय कार्यशाला भारत की शिक्षा की गुणवत्ता को नहीं बदल सकती। यह नवाचार की कमी नहीं है; यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है जो कठोर बदलावों को लागू करे, न कि केवल आकर्षक सुर्खियों को।