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दस साल का जल प्रबंधन: क्या मु गामा कंसल्टेंट्स सिर्फ़ पर्यावरण बचा रहा है, या यह 'ग्रीन वॉशिंग' का नया चेहरा है?

By Anvi Khanna • December 7, 2025

हुक: क्या पर्यावरण सेवाएँ अब केवल एक और कॉर्पोरेट दिखावा हैं?

भारत के **जल प्रबंधन** क्षेत्र में एक दशक पूरा करने वाली मु गामा कंसल्टेंट्स (Mu Gamma Consultants) की कहानी सतह पर तो पर्यावरण **संरक्षण** की सफलता गाथा लगती है। लेकिन, क्या हम उस बड़े सच को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं जो इन दस सालों के पीछे छिपा है? जब कोई कंपनी एक दशक तक पर्यावरण और जल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बनी रहती है, तो सवाल सिर्फ़ उनके काम की गुणवत्ता पर नहीं, बल्कि उस राजनीतिक और आर्थिक तंत्र पर उठते हैं जो उन्हें फलने-फूलने देता है। यह केवल जश्न मनाने का समय नहीं है; यह **पर्यावरण प्रबंधन** की वास्तविक लागत और लाभ का विश्लेषण करने का समय है।

मांस का टुकड़ा: सतही सफलता के पीछे की कठोर वास्तविकता

मु गामा कंसल्टेंट्स ने अपने सफर में जल संसाधन मूल्यांकन और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) में विशेषज्ञता हासिल की है। यह अच्छा है। लेकिन, जब हम **जल प्रबंधन** पर गहराई से विचार करते हैं, तो हमें समझना होगा कि भारत में पानी की कमी एक प्रबंधन समस्या कम, और एक वितरण और राजनीतिक इच्छाशक्ति की विफलता ज़्यादा है। कंसल्टेंसी फर्मों का काम अक्सर सरकार और बड़े उद्योगों के बीच एक पुल का काम करना होता है। वे नियम-कानूनों की जटिलताओं को सुलझाते हैं, जिससे बड़े प्रोजेक्ट्स को 'हरी झंडी' मिल सके। **अनकहा सच:** असली विजेता वे औद्योगिक घराने होते हैं जिन्हें तेज़ी से मंज़ूरी मिलती है, न कि वह आम नागरिक जो भूजल स्तर गिरने से जूझ रहा है। ये कंसल्टेंसी फर्म, चाहे इरादा नेक हो या न हो, अंततः उस सिस्टम को सुचारू बनाने का काम करती हैं जो विकास की आड़ में संसाधनों का अत्यधिक दोहन करता है। यह 'ग्रीन वॉशिंग' का एक सूक्ष्म रूप है, जहाँ तकनीकी रिपोर्टें कागज़ पर पर्यावरण की रक्षा करती दिखती हैं, जबकि ज़मीन पर वास्तविक गिरावट जारी रहती है।

गहन विश्लेषण: विकास बनाम विनाश का संतुलन

दस वर्षों में, भारत में जल संकट और गहराया है। भूजल प्राधिकरणों (Central Ground Water Board) के आँकड़े बताते हैं कि कई क्षेत्रों में जल निकासी की दर चिंताजनक है। इस संदर्भ में, मु गामा जैसी फर्मों का 'सफलतापूर्वक' काम करते रहना क्या दर्शाता है? यह दर्शाता है कि **पर्यावरण प्रबंधन** की वर्तमान परिभाषाएँ उद्योग-अनुकूल हैं। वे प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय बताते हैं, लेकिन शायद ही कभी उन संरचनात्मक परिवर्तनों की वकालत करते हैं जो वास्तव में कॉर्पोरेट ज़िम्मेदारी को बढ़ाते हैं। हमें यह समझना होगा कि टिकाऊ विकास (Sustainable Development) केवल रिपोर्ट बनाने से नहीं आता। यह कठोर नियामक प्रवर्तन (Regulatory Enforcement) और राजनीतिक साहस से आता है। [विश्व बैंक की रिपोर्ट](https://www.worldbank.org/en/news/press-release/2023/03/23/india-s-water-challenge-is-immense-but-solutions-exist) अक्सर बताती है कि भारत को सिंचाई दक्षता पर ध्यान केंद्रित करना होगा। क्या ये कंसल्टेंसी फर्म इस दिशा में पर्याप्त दबाव बना रही हैं, या वे केवल मौजूदा नियमों के तहत सर्वश्रेष्ठ समाधान पेश कर रही हैं? हमारा मानना है कि संतुलन उद्योग के पक्ष में झुका हुआ है।

भविष्य की भविष्यवाणी: 'डिजिटल ट्विन' और अंतिम निजीकरण

अगले पांच वर्षों में, हम देखेंगे कि **जल प्रबंधन** में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और 'डिजिटल ट्विन' तकनीक का उपयोग बढ़ेगा। मु गामा जैसी फर्म इस क्षेत्र में निवेश करेंगी। वे जल स्रोतों की निगरानी को और अधिक सटीक बनाने का वादा करेंगे। **लेकिन यहाँ मेरा साहसिक अनुमान है:** यह सटीकता पारदर्शिता के लिए नहीं, बल्कि निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल होगी। सरकारें डेटा-संचालित दक्षता के नाम पर जल वितरण और उपचार प्रणालियों के बड़े हिस्से को निजी संस्थाओं को सौंपने का मार्ग प्रशस्त करेंगी। जो लोग डेटा और तकनीक को नियंत्रित करते हैं, वे भविष्य के जल संसाधनों को नियंत्रित करेंगे।

मुख्य बातें (TL;DR)