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नीलम दत्ता को पुरस्कार: क्या यह सिर्फ सम्मान है, या असम के 'उद्यमिता' संकट का छिपा हुआ संदेश?

By Myra Khanna • December 17, 2025

असम की 'उद्यमिता' का नया प्रतीक: अवॉर्ड या विडंबना?

जब अखिल আসাম छात्र संघ (AASU) जैसा प्रतिष्ठित संगठन किसी उद्यमी को 'अंबिकगिरी राय चौधरी मेमोरियल अवार्ड' से सम्मानित करता है, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का सम्मान नहीं होता; यह एक पूरे क्षेत्र के लिए एक बयान होता है। उद्यमी नीलम दत्ता को यह पुरस्कार मिलना निश्चित रूप से प्रशंसा का पात्र है, लेकिन एक विश्लेषणात्मक पत्रकार के रूप में, हमें सतह के नीचे देखना होगा। क्या यह पुरस्कार वास्तव में जमीनी स्तर पर 'उद्यमिता' को बढ़ावा दे रहा है, या यह केवल शक्तिशाली हलकों के बीच एक सांकेतिक स्वीकृति है?

हम इस खबर को केवल एक 'सकारात्मक समाचार' के रूप में नहीं देख सकते। हमें पूछना होगा: इस पुरस्कार की घोषणा के पीछे का वास्तविक एजेंडा क्या है? क्या यह राज्य में युवा उद्यमियों के लिए वास्तविक प्रेरणा है, या यह एक ऐसा प्रयास है जो यह दिखाता है कि 'स्थापित' सफलता को ही मान्यता दी जाएगी?

असली विजेता कौन है? 'उद्यमिता' की परिभाषा पर सवाल

इस घटना का सबसे अनदेखा पहलू यह है कि यह पुरस्कार किस तरह की 'सफलता' को महिमामंडित करता है। जब हम 'उद्यमिता' (Entrepreneurship) की बात करते हैं, तो हम अक्सर स्टार्टअप्स, डिजिटल नवाचार और जोखिम लेने वाले युवाओं की कल्पना करते हैं। लेकिन जब एक स्थापित और सम्मानित व्यक्ति को यह सम्मान मिलता है, तो यह एक सूक्ष्म संदेश देता है: **स्थिरता ही सफलता है, क्रांति नहीं।**

यह उन हजारों छोटे उद्यमियों के लिए एक विडंबना हो सकती है जो आज भी बुनियादी ढांचे की कमी और सरकारी लालफीताशाही से जूझ रहे हैं। AASU का यह कदम, भले ही इरादे नेक हों, मौजूदा आर्थिक ढांचे को मजबूत करता है। यह उन लोगों के लिए एक संदेश है जो पारंपरिक रास्ते से हटकर कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं – कि असली मान्यता तब मिलेगी जब आप पहले से स्थापित हो जाएंगे। यह 'उद्यमिता' के आदर्श को कमजोर करता है। बाहरी दुनिया में, बड़े निवेशक और नीति निर्माता अक्सर ऐसे पुरस्कारों को सफलता के प्रमाण के रूप में देखते हैं। इसका सीधा असर भविष्य के फंडिंग और राज्य की आर्थिक नीति पर पड़ सकता है।

गहराई से विश्लेषण: सांस्कृतिक पूंजी बनाम आर्थिक पूंजी

यह पुरस्कार सिर्फ आर्थिक सफलता का जश्न नहीं है; यह सांस्कृतिक पूंजी का हस्तांतरण है। अंबिकगिरी राय चौधरी जैसे दिग्गज नाम का उपयोग करके, AASU यह सुनिश्चित कर रहा है कि दत्ता की सफलता को केवल व्यावसायिक सफलता के रूप में नहीं, बल्कि असम की सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में देखा जाए। यह एक शक्तिशाली राजनीतिक और सामाजिक कदम है। यह दिखाता है कि असम में, व्यावसायिक सफलता को स्थानीय पहचान और विरासत से जोड़ा जाना कितना महत्वपूर्ण है। यदि आप इस पहचान से दूर हैं, तो शायद आपको वह मान्यता कभी नहीं मिलेगी, भले ही आपका व्यापारिक मॉडल कितना भी क्रांतिकारी क्यों न हो। यह क्षेत्र की 'उद्यमिता' पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक चेतावनी है। विश्व आर्थिक मंच भी क्षेत्रीय असमानताओं पर प्रकाश डालता है, और यह पुरस्कार उस स्थानीय संतुलन को साधने का एक प्रयास प्रतीत होता है।

भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?

मेरा मानना है कि इस पुरस्कार के बाद, नीलम दत्ता की सार्वजनिक प्रोफ़ाइल बढ़ेगी, जिससे उन्हें और अधिक सरकारी परियोजनाओं या सलाहकार भूमिकाओं में शामिल होने का अवसर मिलेगा। यह चक्र को मजबूत करेगा: मान्यता से शक्ति, शक्ति से और अधिक मान्यता।

बोल्ड भविष्यवाणी: अगले दो वर्षों के भीतर, राज्य सरकार या प्रमुख उद्योग निकाय एक 'एंटरप्रेन्योरशिप समिट' आयोजित करेंगे, और दत्ता मुख्य वक्ता होंगे, जहाँ वे 'स्थिर विकास' पर ध्यान केंद्रित करेंगे, न कि विघटनकारी नवाचार पर। यह क्षेत्रीय 'उद्यमिता' की दिशा को और अधिक रूढ़िवादी बना देगा, जिससे वास्तव में जोखिम लेने वाले नए स्टार्टअप्स के लिए जगह कम हो जाएगी। हमें यह देखना होगा कि क्या यह मॉडल भारत के तेजी से बदलते स्टार्टअप परिदृश्य के साथ तालमेल बिठा पाएगा। Investopedia के अनुसार, उद्यमिता जोखिम पर आधारित है, और यह पुरस्कार जोखिम को कम आंकने का संकेत देता है।

निष्कर्ष: सावधानी के साथ जश्न

नीलम दत्ता को बधाई, लेकिन हमें इस क्षण का उपयोग असम की संपूर्ण 'उद्यमिता' कहानी पर सवाल उठाने के लिए करना चाहिए। क्या हम केवल उन लोगों को सम्मानित कर रहे हैं जो पहले से सफल हैं, या हम वास्तव में अगली पीढ़ी के विघटनकारियों को सशक्त बना रहे हैं? असली टेस्ट यह होगा कि क्या यह सम्मान जमीनी स्तर पर बदलाव लाएगा या यह केवल एक शानदार अलंकरण बनकर रह जाएगा।