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पंचकुला में शुरू हुआ विज्ञान महाकुंभ: क्या यह सिर्फ एक शो है, या भारत के भविष्य की गुप्त नींव?

By Pari Banerjee • December 7, 2025

हुक: विज्ञान का उत्सव या शक्ति का प्रदर्शन?

पंचकुला में भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (IISF) का शुभारंभ हो चुका है। मीडिया इसे 'विज्ञान के प्रति उत्साह' और 'युवाओं को प्रेरणा' देने वाली घटना बता रहा है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, हमें सतह के नीचे झाँकना होगा। यह महज़ एक वार्षिक कार्यक्रम नहीं है; यह भारत की महत्वाकांक्षाओं का एक सावधानीपूर्वक क्यूरेट किया गया प्रदर्शन है, जिसका सीधा संबंध विज्ञान और प्रौद्योगिकी में वैश्विक प्रभुत्व हासिल करने की दौड़ से है। असली सवाल यह है: इस भव्य प्रदर्शन के पीछे कौन सी आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति काम कर रही है?

'मीट': उत्सव के पीछे की राजनीति

IISF, जिसे अक्सर एक शैक्षिक मेले के रूप में देखा जाता है, वास्तव में भारत के विज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र का एक शक्तिशाली राजनीतिक उपकरण है। जब हम भारतीय नवाचार की बात करते हैं, तो यह मंच उन सफलताओं को उजागर करने का काम करता है जो शायद प्रयोगशाला की चारदीवारी से बाहर न निकल पातीं। इस वर्ष, फोकस 'विज्ञान के माध्यम से अमृत काल की नींव' पर है। यह महज़ एक नारा नहीं है; यह एक स्पष्ट संकेत है कि सरकार अनुसंधान और विकास (R&D) को राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता के केंद्र में रख रही है। लेकिन यहाँ विरोधाभास यह है: क्या जमीनी स्तर के शोधकर्ताओं को वास्तव में वह फंडिंग मिल रही है जिसकी उन्हें ज़रूरत है, या यह केवल बड़े, दिखने वाले प्रोजेक्ट्स को महिमामंडित करने का एक अवसर है?

गहन विश्लेषण: कौन जीतता है और कौन हारता है?

इस उत्सव का सबसे बड़ा विजेता वह सरकारी तंत्र है जो 'विज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था' की कथा को मजबूत करता है। यह जनता के विश्वास को मजबूत करता है कि भारत सही रास्ते पर है। हारने वाले कौन हैं? वे छोटे, स्वतंत्र शोधकर्ता और विश्वविद्यालय जिनकी फंडिंग अक्सर नौकरशाही की लालफीताशाही में दब जाती है। यह मंच एक 'पब्लिसिटी ऑप्टिमाइज़ेशन' इवेंट है। यह दिखाता है कि भारत अंतरिक्ष (ISRO) और रक्षा अनुसंधान में मजबूत है, लेकिन क्या यह उतनी ही मजबूती से मूलभूत भौतिकी या जैव प्रौद्योगिकी के छोटे, जोखिम भरे क्षेत्रों का समर्थन करता है? मेरा मानना है कि यह एक संतुलनकारी कार्य है जहाँ राजनीतिक लाभ अक्सर दीर्घकालिक, धीमी गति वाले वैज्ञानिक विकास पर हावी हो जाता है। विज्ञान नीति की सफलता केवल बड़े लॉन्चों से नहीं मापी जाती, बल्कि उस बुनियादी ढांचे से मापी जाती है जो कल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं को तैयार करता है।

भविष्य की भविष्यवाणी: 'डेटा संप्रभुता' ही अगला युद्धक्षेत्र होगा

अगले पाँच वर्षों में, IISF का फोकस स्पष्ट रूप से 'विज्ञान' से हटकर 'डेटा और AI संप्रभुता' की ओर बढ़ेगा। जिस तरह हमने परमाणु तकनीक और अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है, अगली बड़ी लड़ाई एल्गोरिदम और बड़े डेटासेट पर नियंत्रण की होगी। भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी डेटा सुरक्षा क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए इस मंच का उपयोग करेगा। मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि अगले महोत्सव में, क्वांटम कंप्यूटिंग से ज़्यादा, स्वदेशी AI मॉडल और साइबर सुरक्षा समाधानों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। जो देश अपने डेटा का मालिक होगा, वही 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करेगा। यह केवल उपकरण बनाने के बारे में नहीं है; यह उन उपकरणों को चलाने वाले कोड को नियंत्रित करने के बारे में है।

निष्कर्ष: आगे की राह

पंचकुला का यह आयोजन एक शक्तिशाली संकेत है: भारत विज्ञान को गंभीरता से ले रहा है। लेकिन असली क्रांति तब होगी जब यह उत्सव केवल दिल्ली के गलियारों तक सीमित न रहकर, देश के हर छोटे शहर की प्रयोगशाला तक पहुँचेगा। हमें केवल प्रदर्शनियों की नहीं, बल्कि स्थायी वैज्ञानिक संस्कृति की आवश्यकता है।

बाहरी संदर्भ के लिए: