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पुतिन का अर्थव्यवस्था पर 'गुप्त संदेश': क्या पश्चिमी प्रतिबंध सिर्फ एक भ्रम थे?

By Aarohi Joshi • December 19, 2025

पुतिन का अर्थव्यवस्था पर 'गुप्त संदेश': क्या पश्चिमी प्रतिबंध सिर्फ एक भ्रम थे?

व्लादिमीर पुतिन की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाजी नहीं थी; यह एक सूक्ष्म, लेकिन शक्तिशाली आर्थिक घोषणा थी। दुनिया इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रही थी कि उन्होंने शांति वार्ता या यूक्रेन पर क्या कहा, लेकिन असली कहानी उस अर्थव्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमती रही जिसे पश्चिमी देशों ने 'पतन की कगार पर' घोषित कर दिया था। **रूसी अर्थव्यवस्था** के बारे में उनका आत्मविश्वास, जबकि पश्चिमी मीडिया में निराशा व्याप्त है, एक गहरा विरोधाभास प्रस्तुत करता है जिसे नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है।

द अनस्पोकन ट्रुथ: प्रतिबंधों का उलटा असर

अधिकांश विश्लेषकों ने पश्चिमी प्रतिबंधों को रूस की जीवनरेखा काटने के रूप में देखा। लेकिन पुतिन ने जो संकेत दिए, वे इसके विपरीत थे। उनका दावा है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ रहा है, बेरोजगारी ऐतिहासिक रूप से कम है, और बजट अधिशेष में है। यह डेटा चौंकाने वाला है, खासकर तब जब ऊर्जा राजस्व पर भारी दबाव है। आर्थिक स्थिरता की यह धारणा कहाँ से आ रही है? इसका उत्तर है - 'युद्ध अर्थव्यवस्था' (War Economy) का सफल कार्यान्वयन और एशिया (विशेषकर चीन और भारत) की ओर व्यापार का तीव्र पुनर्निर्देशन।

यहाँ वह बात है जिस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा: रूस ने सफलतापूर्वक अपने व्यापारिक साझेदारों को पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित कर दिया है। वे अब डॉलर पर कम निर्भर हैं और अपनी आंतरिक उत्पादन क्षमताओं को अभूतपूर्व गति से बढ़ा रहे हैं। यह एक कठोर, लेकिन प्रभावी वि-पश्चिमीकरण (de-Westernization) प्रक्रिया है। वैश्विक व्यापार अब केवल पश्चिमी मानकों पर नहीं चलेगा; यह एक बहुध्रुवीय वास्तविकता है जिसे पुतिन ने सफलतापूर्वक भुनाया है।

गहन विश्लेषण: कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है?

संकीर्ण दृष्टिकोण से, रूस ने पश्चिमी दबाव को झेल लिया है। लेकिन बड़े पैमाने पर, यह एक लंबी, थकाऊ लड़ाई है। असली विजेता वह नहीं है जिसके पास अधिक जीडीपी है, बल्कि वह है जो लंबी अवधि तक उच्च लागत सहन कर सकता है। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं, विशेष रूप से यूरोपीय संघ, उच्च मुद्रास्फीति और ऊर्जा संकट से जूझ रही हैं। उनका नुकसान रूस के सैन्य खर्च को वित्तपोषित करने की उनकी इच्छा की तुलना में अधिक स्पष्ट है।

पुतिन की रणनीति स्पष्ट है: पश्चिम को थकाओ, जबकि आंतरिक उत्पादन को मजबूत करो। यह 'दबाव में आत्मनिर्भरता' की क्लासिक रणनीति है। (अधिक जानकारी के लिए, आप रॉयटर्स पर वैश्विक ऊर्जा बाजार के रुझानों की जांच कर सकते हैं)।

भविष्य की भविष्यवाणी: 'स्थिर गतिरोध' का युग

मेरा बोल्ड अनुमान यह है: अगले 18 महीनों में, हम एक 'स्थिर आर्थिक गतिरोध' देखेंगे। रूस की अर्थव्यवस्था पश्चिमी दबाव के बावजूद 1-2% की मामूली वृद्धि दर्ज करती रहेगी, लेकिन यह वृद्धि पूरी तरह से सैन्य-औद्योगिक परिसर द्वारा संचालित होगी। पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव कम होता जाएगा क्योंकि रूस समानांतर आयात मार्गों और वैकल्पिक मुद्राओं के उपयोग में महारत हासिल कर लेगा।

शांति वार्ता की बात महज एक राजनीतिक दिखावा होगी। असली वार्ता 'आर्थिक सहनशक्ति' की होगी। जो पक्ष सबसे लंबे समय तक अपनी आबादी को बिना बड़े विद्रोह के उच्च लागत वहन करने के लिए मजबूर कर सकता है, वही अंततः मेज पर अधिक मजबूत स्थिति में होगा। पश्चिम के लिए, यह एक लंबी और महंगी लड़ाई साबित होने वाली है, जिसकी कीमत उनके अपने नागरिकों को चुकानी पड़ेगी।

मुख्य बातें (TL;DR)