बेंगलुरु की धुंध: फ्लाइट देरी का असली कारण सिर्फ मौसम नहीं, यह इंफ्रास्ट्रक्चर का धोखा है!
क्या आप बेंगलुरु (Bangalore) की यात्रा कर रहे हैं? अगर हाँ, तो अपनी **फ्लाइट देरी** (Flight Delay) के लिए सिर्फ मौसम को दोष न दें। हाल ही में बेंगलुरु हवाई अड्डे पर घने कोहरे के कारण उड़ानों के संचालन पर **यात्रा सलाह** (Travel Advisory) जारी की गई है। यह खबर आपको समाचारों में मिल जाएगी, लेकिन एक पत्रकार के रूप में मेरा काम उस परत को हटाना है जो पर्दे के पीछे छिपी है। यह सिर्फ एक प्राकृतिक घटना नहीं है; यह भारत के 'सिलिकॉन वैली' की उस बुनियादी ढांचागत अक्षमता का लक्षण है जिसे हम नज़रअंदाज़ करते रहे हैं।मौसम नहीं, तकनीक पर सवाल
जब भी दृश्यता (Visibility) कम होती है, तो दुनिया के आधुनिक हवाई अड्डे अपनी उन्नत इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) पर निर्भर करते हैं। कैट-III (CAT-III) लैंडिंग क्षमता वाले हवाई अड्डे कम से कम 50 मीटर की दृश्यता में भी सुरक्षित रूप से संचालन कर सकते हैं। लेकिन जब बेंगलुरु जैसे हाई-प्रोफाइल एयरपोर्ट पर कोहरे की हल्की सी चादर भी पूरे संचालन को ठप कर देती है, तो सवाल उठता है: क्या हम वास्तव में 'विश्व स्तरीय' हैं? अधिकांश रिपोर्टें केवल 'कम दृश्यता' की बात करती हैं। **असली मुद्दा** यह है कि क्या एयरपोर्ट का ILS सिस्टम अत्याधुनिक मानकों पर पूरी तरह से कार्यरत और अपग्रेड किया गया है, या यह सिर्फ कागज़ों पर मौजूद है? यह केवल बेंगलुरु की **यात्रा** (Yatra) का मुद्दा नहीं है; यह भारत की आर्थिक विश्वसनीयता का प्रश्न है। हर घंटे की देरी का मतलब लाखों का नुकसान और व्यापारिक सौदों का टूटना है। यह दिखाता है कि हम कितनी जल्दी तकनीकी प्रगति का जश्न मनाते हैं, लेकिन उसकी नींव यानी आवश्यक **एयरपोर्ट संचालन** (Airport Operations) को मजबूत करने में विफल रहते हैं।विजेता और पराजित: पर्दे के पीछे का खेल
इस स्थिति में कौन जीतता है और कौन हारता है? यात्री हारते हैं, निश्चित रूप से। लेकिन बड़ा विजेता वे एयरलाइंस और लॉजिस्टिक्स कंपनियां हैं जो 'फॉग-प्रूफ' बैकअप योजनाएं रखती हैं, या वे जो इस अराजकता का फायदा उठाकर प्रीमियम किराए वसूलती हैं। हारने वाले वे छोटे व्यापार हैं जो समय पर माल नहीं पहुंचा पाते, और बेंगलुरु की 'दक्षता' की छवि। यह घटना एक कठोर सत्य को उजागर करती है: भारत का विकास 'जहाँ है वहाँ पहुँचने' की गति पर निर्भर करता है, न कि 'कितना तेज़ दौड़ सकते हैं' पर।भविष्य की भविष्यवाणी: क्या होगा आगे?
मेरी भविष्यवाणी स्पष्ट है: यह स्थिति अगले 5 वर्षों में और बिगड़ेगी, जब तक कि बड़े पैमाने पर निवेश नहीं होता। सरकारें और एयरपोर्ट अथॉरिटी सतही सुधार करेगी, जैसे 'धुंध से निपटने के लिए बेहतर प्रोटोकॉल'। लेकिन असली समाधान - ILS अपग्रेडेशन और रनवे विजिबिलिटी इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश - राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण टल जाएगा। अगली बार, यह सिर्फ कोहरा नहीं होगा; यह कोई अन्य मौसमी घटना होगी जो हमारी अपूर्ण तैयारी को उजागर करेगी। हम आपदाओं के प्रबंधन में अच्छे हैं, लेकिन रोकथाम में भयानक रूप से विफल। यह सिर्फ मौसम की चेतावनी नहीं है; यह भारत के बुनियादी ढांचे की आत्मा की जांच है। हमें 'मेक इन इंडिया' की बात करने से पहले 'रन ऑन टाइम इंडिया' सुनिश्चित करना होगा।बाहरी स्रोत: ILS तकनीक की कार्यप्रणाली को समझने के लिए, आप अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) की रिपोर्ट देख सकते हैं।