WorldNews.Forum

भारत AI टैलेंट का 'मज़दूर' बन रहा है? असली खेल मंत्रियों के दावों के पीछे छिपा है!

By Shaurya Bhatia • December 20, 2025

हुक: क्या भारत AI क्रांति का इंजन है या सिर्फ सस्ता ईंधन?

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के दावे जोर-शोर से गूंज रहे हैं: भारत **एआई टैलेंट अधिग्रहण** (AI Talent Acquisition) में दुनिया का नेतृत्व कर रहा है और एआई कौशल पैठ (AI Skill Penetration) में शीर्ष देशों में है। यह सुनकर अच्छा लगता है, लेकिन एक **जांचकर्ता** के तौर पर, हमें पूछना होगा: इस चमक-दमक के पीछे कौन सी स्याह हकीकत छिपी है? क्या भारत वास्तव में नवाचार (Innovation) कर रहा है, या हम वैश्विक तकनीकी दिग्गजों के लिए सिर्फ एक विशाल, सस्ता आउटसोर्सिंग हब बनने की ओर बढ़ रहे हैं? यह सिर्फ कौशल की बात नहीं है; यह **आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस** (Artificial Intelligence) के भविष्य पर नियंत्रण की लड़ाई है।

मांस: दावे बनाम डेटा का कड़वा घूंट

वैष्णव जी का बयान उत्साहजनक है, खासकर जब हम वैश्विक **एआई प्रतिभा** (AI Talent) के बाजार को देखते हैं। हाँ, भारत में इंजीनियरों की संख्या बड़ी है, और अंग्रेजी पर पकड़ उन्हें वैश्विक कंपनियों के लिए आकर्षक बनाती है। लेकिन 'कौशल पैठ' और 'मूल्य निर्माण' में ज़मीन-आसमान का अंतर है। अधिकांश भारतीय एआई पेशेवर बड़े पैमाने पर डेटा लेबलिंग, मॉडल फाइन-ट्यूनिंग, या मौजूदा पश्चिमी मॉडलों को लागू करने का काम कर रहे हैं। **असली खतरा** यह है कि हम 'उपयोगकर्ता' (User) बन रहे हैं, 'निर्माता' (Creator) नहीं।

वह अनकहा सच यह है कि बड़ी वैश्विक टेक कंपनियाँ भारत को इसलिए पसंद कर रही हैं क्योंकि यहाँ श्रम की लागत कम है और प्रतिभा की आपूर्ति असीमित। यह एक 'टैलेंट माइग्रेशन' है, न कि 'टैलेंट इनोवेशन'। जब तक हम मौलिक एआई रिसर्च और अगली पीढ़ी के फाउंडेशन मॉडल विकसित नहीं करते, यह नेतृत्व केवल एक भ्रम बना रहेगा। यह वैसा ही है जैसे कोई देश कहे कि वह दुनिया में सबसे ज़्यादा स्टील बेच रहा है, लेकिन वह स्टील केवल विदेशी डिजाइनों के लिए ढाला जा रहा हो।

यह क्यों मायने रखता है: भू-राजनीतिक दांव

एआई केवल एक तकनीक नहीं है; यह 21वीं सदी की शक्ति का नया पैमाना है। जिस देश के पास एआई का मौलिक ज्ञान और प्रतिभा होगी, वह भू-राजनीतिक और आर्थिक रूप से हावी होगा। भारत की वर्तमान स्थिति – बड़ी संख्या में कुशल श्रमिक प्रदान करना – हमें एक खतरनाक स्थिति में डालती है। हम उन देशों पर निर्भर हो जाते हैं जो कोर **आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस** तकनीक विकसित कर रहे हैं (जैसे अमेरिका और चीन)।

यह 'डिजिटल उपनिवेशवाद' का नया रूप है। यदि अमेरिका या यूरोप अपनी एआई नीतियों को कड़ा करते हैं, तो भारत की यह 'नेतृत्व' की स्थिति एक झटके में ध्वस्त हो सकती है। हमारा ध्यान केवल नौकरी सृजन पर नहीं, बल्कि 'आईपी स्वामित्व' (IP Ownership) और घरेलू एआई पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को मजबूत करने पर होना चाहिए। हमें केवल 'हाथ' नहीं, बल्कि 'दिमाग' बेचना होगा।

आगे क्या होगा? भविष्य की भविष्यवाणी

अगले पांच वर्षों में, हम दो समानांतर रुझान देखेंगे। पहला, भारत वैश्विक कंपनियों के लिए एआई सेवा वितरण का निर्विवाद केंद्र बना रहेगा, जिससे देश के भीतर रोजगार बढ़ेगा। दूसरा, सरकार के दबाव और निजी क्षेत्र के निवेश के बावजूद, मौलिक एआई नवाचार में भारत की हिस्सेदारी 5% से अधिक नहीं होगी, जब तक कि शिक्षा और अनुसंधान फंडिंग में क्रांतिकारी बदलाव नहीं किए जाते। **एआई टैलेंट अधिग्रहण** का यह उछाल हमें एक महत्वपूर्ण मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगा: या तो हम केवल सेवा प्रदाता बनकर रह जाएंगे, या हम अपनी प्रतिभा का उपयोग करके खुद के वैश्विक एआई उत्पाद बनाएंगे। यह निर्णायक दशक है।

अधिक जानकारी के लिए, आप वैश्विक एआई अनुसंधान रुझानों पर अंतर्राष्ट्रीय डेटा देख सकते हैं (उदाहरण के लिए, Reuters)।