भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर: क्या यह सिर्फ़ एक रेल लाइन है, या चीन को घेरने का गुप्त हथियार?
हम सबने सुना है कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) एक क्रांतिकारी बुनियादी ढांचा परियोजना है। यह मुंबई से यूरोप तक माल पहुंचाने की गति को 40% तक कम करने का वादा करता है। लेकिन रुकिए। क्या यह सिर्फ़ व्यापार का एक नया मार्ग है? या यह एक ऐसा भू-राजनीतिक दांव है जिसकी चर्चा कोई खुलकर नहीं कर रहा है? असलियत यह है कि IMEC सिर्फ़ रेल और शिपिंग की कहानी नहीं है; यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्संतुलित करने और चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के एकाधिकार को तोड़ने का एक साहसिक प्रयास है।
खोदा गया सच: ऊर्जा और भू-राजनीति का गठजोड़
जो चीज़ इस गलियारे को 'वन बेल्ट वन रोड' से अलग करती है, वह है इसका फोकस। BRI मुख्य रूप से चीन की मांग को पूरा करने के लिए बनाया गया था। इसके विपरीत, IMEC पश्चिमी शक्तियों—विशेषकर अमेरिका—की भागीदारी से डिज़ाइन किया गया है। यह कॉरिडोर ऊर्जा प्रवाह को कैसे बदलेगा? यह महत्वपूर्ण है। यह मध्य पूर्व के तेल और गैस भंडारों को यूरोप तक अधिक तेज़ी से और सुरक्षित रूप से पहुंचाने का एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जो पारंपरिक समुद्री मार्गों पर निर्भरता कम करता है। यह ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक जबरदस्त कदम है।
असली विजेता कौन है? सतह पर, भारत, सऊदी अरब, यूएई और यूरोपीय संघ को लाभ होगा। लेकिन पर्दे के पीछे, असली विजेता वह शक्ति है जो इस नेटवर्क को नियंत्रित करती है और मानकीकृत करती है—यानी पश्चिमी गठबंधन। यह गलियारा एक 'एंटी-चाइना' ब्लॉक बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है।
कौन गंवाएगा? बीजिंग की चिंता
चीन के लिए, यह एक सीधी चुनौती है। BRI की सफलता ने बीजिंग को एशिया और अफ्रीका में अपार राजनीतिक लाभ दिया है। IMEC इस लाभ को सीधे चुनौती देता है। जिन मध्य एशियाई और मध्य पूर्वी देशों को चीन अपने प्रभाव क्षेत्र में खींच रहा था, अब उनके पास एक आकर्षक पश्चिमी विकल्प मौजूद है। यह कॉरिडोर **वैश्विक व्यापार** मार्गों को विभाजित करने की क्षमता रखता है, जिससे चीन की आर्थिक घेराबंदी शुरू हो सकती है। यदि यह सफल होता है, तो BRI की प्रासंगिकता कम हो जाएगी, और चीन को अपने निवेश पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा नहीं है; यह एक आर्थिक शीत युद्ध का नया मोर्चा है।
भविष्य की भविष्यवाणी: धीमा विकास और राजनीतिक बाधाएँ
लोग सोचते हैं कि यह गलियारा अगले पांच वर्षों में चालू हो जाएगा। मेरी भविष्यवाणी अलग है। हाँ, कागज़ पर यह शानदार है, लेकिन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की हकीकत जटिल होती है। इस परियोजना की सफलता कई अस्थिर राजनीतिक समीकरणों पर टिकी है। ईरान को दरकिनार करना एक बड़ी चुनौती है, और गाजा संघर्ष जैसे क्षेत्रीय तनाव किसी भी समय निर्माण कार्य को रोक सकते हैं।
मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि IMEC अगले दशक तक केवल आंशिक रूप से ही काम करेगा। पूर्ण क्षमता तक पहुंचने से पहले, हमें इज़राइल-सऊदी संबंधों में बड़े बदलाव, ईरान की क्षेत्रीय भूमिका में कमी, और अफगानिस्तान/पाकिस्तान सीमा विवादों के स्थायी समाधान देखने होंगे। यह एक मैराथन है, स्प्रिंट नहीं। जो देश स्थिरता और सहयोग सुनिश्चित करेंगे, वही अंततः इस नए आर्थिक तंत्र से सबसे ज़्यादा लाभान्वित होंगे।
यह गलियारा केवल जहाजों और ट्रेनों के बारे में नहीं है; यह भविष्य के शक्ति संतुलन को फिर से लिखने का प्रयास है। क्या भारत इस नई धुरी का नेतृत्व करने के लिए तैयार है, या यह केवल एक पश्चिमी उपकरण बनकर रह जाएगा? समय बताएगा।
अधिक जानकारी के लिए, आप अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर प्रतिष्ठित थिंक टैंक की रिपोर्ट देख सकते हैं: Council on Foreign Relations।