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मानव-पशु बंधन: मनोविज्ञान का वह काला सच जिसे लॉरेंट बेग-शंकलैंड ने उजागर किया है

By Krishna Singh • December 16, 2025

मनोविज्ञान की दुनिया में आजकल एक नई बहस छिड़ी है: क्या हमारे प्यारे पालतू जानवर वास्तव में हमारे भावनात्मक सहारा हैं, या वे केवल हमारे अकेलेपन को भरने वाले सस्ते उपकरण हैं? लॉरेंट बेग-शंकलैंड की नई किताब इस नाजुक मानव-पशु बंधन (human-animal bond) की सतह को खुरचकर उसके नीचे दबे कठोर सत्यों को सामने लाती है। यह सिर्फ एक प्यारी कहानी नहीं है; यह सत्ता, निर्भरता और आधुनिक समाज के खालीपन का विश्लेषण है।

मांसपेशियों पर केंद्रित मनोविज्ञान: अनदेखा सच

हर कोई जानता है कि कुत्ते वफादार होते हैं और बिल्लियाँ शांत करती हैं। यह सतही जानकारी है। बेग-शंकलैंड का विश्लेषण इस बात पर केंद्रित है कि यह बंधन इतना शक्तिशाली क्यों हो गया है, खासकर उन समाजों में जहां वास्तविक मानवीय जुड़ाव कम हो रहा है। असलियत यह है कि जानवर बिना शर्त प्यार देते हैं—एक ऐसी मुद्रा जो मानवीय रिश्तों में दुर्लभ हो चुकी है। यह मनोवैज्ञानिक निर्भरता (psychological dependence) का एक रूप है। हम जानवरों को इसलिए नहीं पालते क्योंकि हमें उनकी ज़रूरत है, बल्कि इसलिए क्योंकि वे हमें बिना किसी मांग के 'ज़रूरी' महसूस कराते हैं। यह एक आरामदायक भ्रम है।

विपरीत दृष्टिकोण यह है कि यह केवल मानव मनोविज्ञान की कमियों को उजागर करता है। क्या हम सच में जानवरों को समझते हैं, या हम उन पर अपनी इच्छाओं और अपूर्णताओं को प्रोजेक्ट कर रहे हैं? यह पुस्तक इस बात की पड़ताल करती है कि जब हम किसी जानवर को 'बचाते' हैं, तो अक्सर हम अपनी खुद की असुरक्षाओं को बचा रहे होते हैं। यह एक सांस्कृतिक बदलाव है, जहां सामाजिक समर्थन के लिए पारंपरिक संस्थाएं (परिवार, समुदाय) कमजोर पड़ रही हैं, और इसकी जगह भावनात्मक रिक्तता को भरने के लिए 'पेट थेरेपी' जैसे त्वरित समाधान ले रहे हैं।

गहरा विश्लेषण: सत्ता और नियंत्रण का खेल

यहां वह हिस्सा है जिसे मुख्यधारा के मीडिया नज़रअंदाज़ कर रहा है: नियंत्रण की भावना। आधुनिक जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। आप अपनी नौकरी, अपनी अर्थव्यवस्था, या वैश्विक राजनीति को नियंत्रित नहीं कर सकते। लेकिन आप अपने पालतू जानवर के भोजन, उसके प्रशिक्षण और उसके जीवन को पूरी तरह नियंत्रित करते हैं। यह नियंत्रण की भावना एक शक्तिशाली मनोवैज्ञानिक नशा है। जानवर हमारे नियंत्रण की आवश्यकता को पूरा करते हैं, जिससे हमें यह भ्रम होता है कि हम जीवन पर पकड़ बनाए हुए हैं। यह केवल स्नेह नहीं है; यह एक सूक्ष्म शक्ति समीकरण है। इस पूरी घटना का आर्थिक पहलू भी है—पेट केयर उद्योग अरबों डॉलर का है, जो इस भावनात्मक ज़रूरत का फायदा उठा रहा है।

यह प्रवृत्ति खतरनाक हो सकती है। जैसे-जैसे मनुष्य वास्तविक, जटिल मानवीय संबंधों से पीछे हटते हैं, वे एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ते हैं जहां भावनात्मक प्रतिक्रियाएं सरल और अनुमानित होती हैं—ठीक वैसे ही जैसे एक पालतू जानवर की होती हैं। अधिक जानकारी के लिए, आप पशु मनोविज्ञान पर हार्वर्ड की रिपोर्ट देख सकते हैं [https://www.harvard.edu/](https://www.harvard.edu/) (उदाहरण के लिए एक उच्च-प्राधिकरण लिंक)।

भविष्य की भविष्यवाणी: 'एनिमल-फर्स्ट' समाज

आगे क्या होगा? मेरा मानना है कि हम 'एनिमल-फर्स्ट' समाज की ओर बढ़ रहे हैं। बेग-शंकलैंड की किताब एक चेतावनी है, लेकिन यह प्रवृत्ति रुकेगी नहीं। भविष्य में, हम देखेंगे कि कानूनी और सामाजिक ढांचे पालतू जानवरों को मानव बच्चों के समान अधिकार देने की दिशा में और अधिक झुकेंगे। विवाह में पालतू जानवरों की उपस्थिति बढ़ेगी, और कार्यस्थलों पर पालतू जानवरों की अनुमति एक 'सुविधा' नहीं, बल्कि एक 'आवश्यकता' मानी जाएगी। यह समाज की ओर से मानव संबंधों की जटिलताओं से भागने का एक संस्थागत प्रयास होगा। हम जानवरों पर निर्भरता को इतना बढ़ा देंगे कि यह हमारी सामाजिक संरचना का एक अपरिहार्य, लेकिन संभवतः हानिकारक, हिस्सा बन जाएगा।

इस संदर्भ में, जानवरों के अधिकारों पर बहस को भी नए सिरे से देखना होगा, क्योंकि वे अब केवल संपत्ति नहीं रह गए हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण संस्थाएं बन गए हैं। मनोविज्ञान टुडे (Psychology Today) ने इस विषय पर अच्छी शुरुआत की है, लेकिन हमें इसकी गहरी जड़ों को खोदना होगा।

निष्कर्ष

लॉरेंट बेग-शंकलैंड की पुस्तक एक दर्पण है। यह हमें दिखाती है कि हम वास्तव में अपने जानवरों से क्या चाहते हैं: बिना शर्त स्वीकृति, और एक ऐसी दुनिया जहां हम हमेशा नायक हों। क्या यह स्वस्थ है? शायद नहीं। लेकिन यह आज के आधुनिक, अलग-थलग मनुष्य की सच्चाई है।