WorldNews.Forum

यूरोपीय 'तकनीकी स्वतंत्रता' का भ्रम: अमेरिका को पछाड़ने की दौड़ में कौन सा बड़ा दांव लगा रहा है यूरोप?

By Aarav Gupta • December 13, 2025

यूरोपीय 'तकनीकी स्वतंत्रता' का भ्रम: अमेरिका को पछाड़ने की दौड़ में कौन सा बड़ा दांव लगा रहा है यूरोप?

क्या आपने कभी सोचा है कि जब दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियाँ - अमेरिका और चीन - तकनीकी वर्चस्व के लिए लड़ रही हैं, तो यूरोप कहाँ खड़ा है? हाल ही में, यूरोपीय परिषद ऑन फॉरेन रिलेशंस (ECFR) की एक रिपोर्ट ने यूरोप की उस पुरानी महत्वाकांक्षा को फिर से हवा दी है: **अमेरिकी प्रौद्योगिकी** पर निर्भरता से मुक्ति। लेकिन यह 'तकनीकी स्वतंत्रता' की बात उतनी सीधी नहीं है जितनी दिखती है। यह वास्तव में एक महंगा, शायद आत्मघाती, राजनीतिक नाटक है।

असली कहानी: आत्मनिर्भरता नहीं, अलगाव की ओर?

यूरोप हमेशा से खुद को एक 'तीसरे ध्रुव' के रूप में देखना चाहता है, जो अमेरिकी पूंजीवाद और चीनी राज्य-पूंजीवाद के बीच संतुलन बनाए। लेकिन जब बात डिजिटल प्रौद्योगिकी की आती है, तो यह संतुलन बिगड़ चुका है। क्लाउड कंप्यूटिंग से लेकर सेमीकंडक्टर डिज़ाइन तक, हर स्तर पर यूरोप अमेरिकी दिग्गजों (जैसे अमेज़ॅन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट) पर भारी रूप से निर्भर है। ECFR की रिपोर्ट इसी निर्भरता को कम करने की बात करती है।

लेकिन यहाँ वह अनकहा सच है: यूरोप का यह कदम शुद्ध रूप से रणनीतिक नहीं है; यह **प्रभुत्व** की नहीं, बल्कि **नियंत्रण खोने के डर** की प्रतिक्रिया है। यूरोप को डर है कि अमेरिकी डेटा संप्रभुता और निगरानी कानून (जैसे CLOUD Act) उनकी नागरिक स्वतंत्रता को खतरे में डालते हैं। यह डर जायज है, लेकिन इसका समाधान क्या है? क्या अपने छोटे बाजारों को एक साथ लाकर विशाल अमेरिकी कंपनियों से मुकाबला किया जा सकता है? इतिहास बताता है कि यह असंभव है।

गहरा विश्लेषण: कौन जीतता है, कौन हारता है?

इस 'तकनीकी स्वतंत्रता' की दौड़ में असली विजेता शायद कोई नहीं होगा, सिवाय उन यूरोपीय सरकारों के जो अपने नागरिकों को यह भ्रम बेच सकती हैं कि वे 'नियंत्रण वापस ले रहे हैं'।

हारने वाले: यूरोपीय स्टार्टअप्स। उन्हें विशाल अमेरिकी निवेश और वैश्विक मंच तक पहुंच से वंचित किया जा सकता है यदि वे यूरोपीय मानकों पर 'सुरक्षित' होने के चक्कर में वैश्विक मानकों से पीछे रह जाते हैं। डिजिटल प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, गति ही जीवन है। नियम-कानूनों की जटिलता यूरोपीय नवाचार को धीमा कर देगी।

जीतने वाले: पुराने यूरोपीय औद्योगिक दिग्गज और सरकारी नौकरशाह। यह पहल उन्हें सब्सिडी और एकाधिकारवादी संरक्षण प्रदान करेगी, जिससे वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बच सकेंगे। यह स्वतंत्रता नहीं, बल्कि संरक्षणवाद है। उदाहरण के लिए, यूरोपीय चिप पहल (IPCEI) में भारी सार्वजनिक धन झोंका जा रहा है, लेकिन क्या यह वैश्विक स्तर पर TSMC या सैमसंग को चुनौती दे पाएगा? शायद नहीं। यह केवल कुछ यूरोपीय कंपनियों को जीवित रखने का तरीका है। यह एक राजनीतिक आवश्यकता है, न कि आर्थिक अनिवार्यता।

भविष्य की भविष्यवाणी: 'डिजिटल लौह परदा'

अगले पांच वर्षों में, हम एक **'डिजिटल लौह परदा'** देखेंगे। यूरोप अमेरिकी और चीनी तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र से खुद को अलग करने की कोशिश करेगा, जिससे एक उच्च लागत वाला, कम नवाचार वाला 'यूरोपीय इंटरनेट' बनेगा। यह इंटरनेट सुरक्षित हो सकता है, लेकिन यह धीमा और महंगा होगा। अमेरिकी कंपनियाँ शायद पूरी तरह बाहर न हों, लेकिन वे अपने उत्पादों को स्थानीयकृत करने के लिए भारी कीमत वसूलेंगी, जिसका बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। अंततः, यह अलगाव यूरोपीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक तकनीकी प्रगति की मुख्यधारा से काट देगा।

यूरोप को यह समझना होगा कि **तकनीकी आत्मनिर्भरता** केवल पैसा लगाने से नहीं आती; इसके लिए एक ऐसी संस्कृति की आवश्यकता होती है जो जोखिम लेने, विफल होने और तेजी से आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करे। जब तक यह सांस्कृतिक बदलाव नहीं आता, तब तक यह स्वतंत्रता एक महंगा सपना ही रहेगी।