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शिक्षा का महा-विलय: UGC, AICTE खत्म, लेकिन असली खेल किसके पाले में? जानिए छिपी सच्चाई

By Krishna Singh • December 13, 2025

शिक्षा का महा-विलय: UGC, AICTE खत्म, लेकिन असली खेल किसके पाले में? जानिए छिपी सच्चाई

भारत की **उच्च शिक्षा** व्यवस्था एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। केंद्र सरकार ने **शिक्षा सुधार** की दिशा में एक ऐसा कदम उठाया है, जिसकी गूंज दशकों तक सुनाई देगी: **UGC** (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग), **AICTE** (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद), और **NCTE** (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद) जैसे दिग्गजों को खत्म कर एक एकल नियामक संस्था का गठन। मंत्रिमंडल ने बिल को मंजूरी दे दी है, लेकिन सवाल यह नहीं है कि क्या हुआ, बल्कि यह है कि **शिक्षा का यह नया ढांचा** वास्तव में किसे सशक्त बनाएगा? ### वो सच जो कम बोला जा रहा है: सत्ता का केंद्रीकरण आधिकारिक बयानों में इसे 'सरलीकरण' और 'बाधाओं को दूर करने' का कदम बताया जा रहा है। यह सच है कि भारत में उच्च शिक्षा नियामक संस्थाओं का जाल इतना जटिल हो चुका था कि संस्थानों के लिए अनुपालन (compliance) एक दुःस्वप्न बन गया था। लेकिन **शिक्षा सुधार** का यह नया मॉडल, जिसे **नई शिक्षा नीति (NEP) 2020** की आत्मा माना जा रहा है, असल में **सत्ता के केंद्रीकरण** की ओर एक बड़ा कदम है। जब कई नियामक होते हैं, तो शक्ति विभाजित होती है। एक एकल नियामक, भले ही वह 'सुविधाप्रदाता' बनने का दावा करे, अंततः केंद्र सरकार के दृष्टिकोण को शिक्षा के हर कोने तक पहुंचाने का सबसे सीधा और प्रभावी माध्यम बन जाता है। क्या यह संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देगा, जैसा कि दावा किया जा रहा है? या यह केवल आदेशों को ऊपर से नीचे तक तेजी से पहुंचाने का एक नया पाइपलाइन बनाएगा? **उच्च शिक्षा** के क्षेत्र में, स्वायत्तता हमेशा एक नाजुक संतुलन रही है। इस कदम से, संतुलन की डोर पूरी तरह से केंद्र के हाथ में चली गई है। ### कौन जीतेगा और कौन हारेगा? **विजेता:** सबसे पहले, केंद्र सरकार। नीतियों का कार्यान्वयन अब अभूतपूर्व गति से होगा। दूसरा, वे निजी संस्थान जो लालफीताशाही से थक चुके थे और अब जानते हैं कि उन्हें किसे खुश करना है। **शिक्षा सुधार** का लाभ उन्हें मिलेगा जो नियमों का पालन करने के बजाय 'सहयोग' करने को तैयार होंगे। **हारने वाले:** सबसे बड़ा नुकसान उन विश्वविद्यालयों को होगा जो अकादमिक स्वतंत्रता के लिए खड़े होते थे। जब एक ही संस्था सभी नियम बनाएगी, तो विरोध की आवाजें कमजोर पड़ जाएंगी। इसके अलावा, विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे तकनीकी या शिक्षक शिक्षा) के विशेषज्ञ नियामक निकायों की समाप्ति से उस क्षेत्र की बारीकियों को समझने की क्षमता कम हो सकती है। विशेषज्ञता का बलिदान सरलीकरण के नाम पर किया जा रहा है। यह भारत के **उच्च शिक्षा** परिदृश्य के लिए एक बड़ा जोखिम है। ### भविष्य की भविष्यवाणी: 'आत्मनिर्भर' बनाम 'नियंत्रित' शिक्षा मेरा मानना है कि अगले पांच वर्षों में, हम दो समानांतर प्रणालियाँ देखेंगे। एक तरफ, सरकार द्वारा समर्थित 'विश्व स्तरीय' संस्थानों को तेजी से मंजूरी और फंडिंग मिलेगी, क्योंकि वे नए नियामक ढांचे के साथ पूरी तरह तालमेल बिठाएंगे। दूसरी ओर, छोटे और क्षेत्रीय विश्वविद्यालय, जो पहले विभिन्न नियामकों के बीच संतुलन साधते थे, अब नए, अधिक कठोर मानकों के तहत दबाव महसूस करेंगे। यदि वे डिजिटल या ऑनलाइन शिक्षा में तेजी से बदलाव नहीं लाते हैं, तो वे अप्रासंगिक हो सकते हैं। यह **शिक्षा का नया ढांचा** नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि यह नवाचार सरकार के विजन के अनुरूप हो। **शिक्षा सुधार** की यह लहर नियंत्रण की लहर भी है। यह बिल एक दूरगामी कदम है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि 'नया नियामक' नियमों को लागू करने वाला बनता है या वास्तव में संस्थानों को सशक्त बनाने वाला मार्गदर्शक। इतिहास गवाह है कि शक्ति का केंद्रीकरण अक्सर अकादमिक विमर्श की कीमत पर होता है।

अधिक जानकारी के लिए, आप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मूल दस्तावेजों को देख सकते हैं। (स्रोत: [भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट](https://www.education.gov.in/))