शिक्षा पर हमले का अंतर्राष्ट्रीय दिवस: एक खूनी नाटक जिसका पर्दाफाश होना बाकी है
हर साल 9 सितंबर को, दुनिया 'शिक्षा पर हमले से बचाव का अंतर्राष्ट्रीय दिवस' मनाती है। लेकिन रुकिए। क्या यह सिर्फ एक और संयुक्त राष्ट्र का विनम्र संकल्प है, या इसके पीछे एक गहरी, अधिक भयावह सच्चाई छिपी है? **शिक्षा की सुरक्षा** केवल बमबारी से स्कूलों को बचाने तक सीमित नहीं है; यह एक सांस्कृतिक और आर्थिक हथियार है जिसका उपयोग सत्ताधारी वर्ग नियंत्रण बनाए रखने के लिए करते हैं। हम इस दिन को क्यों मनाते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण सवाल—**शिक्षा का भविष्य**—वास्तव में कहाँ जा रहा है, इसका विश्लेषण आवश्यक है।
अनकहा सच: हमलावर कौन हैं?
जब हम 'शिक्षा पर हमला' सुनते हैं, तो हमारा ध्यान तुरंत युद्ध क्षेत्रों में बमबारी किए गए स्कूलों पर जाता है। यह आसान है। यह वह दृश्य है जो हमें भावुक करता है। लेकिन असली हमला अक्सर कहीं अधिक सूक्ष्म होता है। **शिक्षा का अधिकार** छीनने वाले केवल आतंकवादी नहीं हैं। वे वे सत्ताएं भी हैं जो पाठ्यक्रम को विकृत करती हैं, शिक्षकों को डराती हैं, और डिजिटल विभाजन को गहरा करती हैं।
असली विजेता? वे लोग जो सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। एक शिक्षित, आलोचनात्मक सोच वाला नागरिक शक्तिशाली संस्थानों के लिए खतरा है। इसलिए, शिक्षा को कमजोर करना, चाहे वह भौतिक रूप से हो या वैचारिक रूप से, हमेशा सत्ता के गलियारों में एक रणनीतिक प्राथमिकता रही है। यह एक वैश्विक षड्यंत्र नहीं है, बल्कि हितों का एक स्वाभाविक टकराव है: नियंत्रण बनाम मुक्ति।
गहन विश्लेषण: यह क्यों मायने रखता है?
यह मुद्दा सिर्फ अफगानिस्तान या यूक्रेन के बच्चों के बारे में नहीं है। यह भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक आर्थिक आपदा है जहाँ गुणवत्तापूर्ण **शिक्षा की कमी** प्रतिभा के पूल को नष्ट कर रही है। जब शिक्षा पर हमला होता है, तो देश की जीडीपी पर दसियों साल बाद असर पड़ता है। यह गरीबी के दुष्चक्र को मजबूत करता है।
शिक्षा को बाधित करने का सबसे बड़ा दीर्घकालिक परिणाम 'मानव पूंजी' का क्षरण है। एक बच्चा जो स्कूल नहीं जा पाता, वह कल का वैज्ञानिक, इंजीनियर या कुशल श्रमिक नहीं बन पाता। यह अंतरराष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को विफल करने की गारंटी है। हमें समझना होगा कि शिक्षा पर हमला राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमला है। अधिक जानकारी के लिए, आप शिक्षा के महत्व पर यूनेस्को की रिपोर्ट देख सकते हैं [https://www.unesco.org/en/education/attacks-education] ।
आगे क्या होगा? हमारा पूर्वानुमान
मेरा मानना है कि भविष्य में, भौतिक हमलों की तुलना में 'शैक्षणिक दिवालियेपन' (Academic Insolvency) का खतरा अधिक होगा। सरकारें और वैश्विक संगठन 'सुरक्षा' पर ध्यान केंद्रित करते रहेंगे, लेकिन असली लड़ाई शिक्षा की गुणवत्ता और प्रासंगिकता को लेकर होगी। हम देखेंगे कि निजी, ऑनलाइन, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) संचालित शिक्षा प्लेटफॉर्मों का उदय होगा, जो पारंपरिक प्रणालियों को दरकिनार कर देंगे। यह विभाजन पैदा करेगा: जिनके पास अत्याधुनिक डिजिटल शिक्षा होगी, और बाकी जो पीछे छूट जाएंगे। यह एक नया डिजिटल विभाजन होगा, जो मौजूदा सामाजिक असमानताओं को और बढ़ाएगा।
यदि हम शिक्षा को सुरक्षित नहीं करते हैं, तो हम केवल कक्षाओं को नहीं खो रहे हैं; हम अपनी सामूहिक भविष्य की समस्या-समाधान क्षमताओं को खो रहे हैं। यह एक ऐसी विफलता है जिसे हम वहन नहीं कर सकते। शिक्षा के वैश्विक रुझानों को समझने के लिए, आप विश्व बैंक के डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं [https://www.worldbank.org/en/topic/education] ।
एक विपरीत दृष्टिकोण
क्या यह सब विनाशकारी है? शायद नहीं। हर संकट एक अवसर लाता है। शिक्षा पर हमले सरकारों को यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि शिक्षा को लचीला कैसे बनाया जाए—ब्लॉकचेन-आधारित क्रेडेंशियल, दूरस्थ शिक्षण समाधान। यह एक कठोर लेकिन आवश्यक नवाचार को प्रेरित कर सकता है। लेकिन यह तभी होगा जब हम इसे एक 'प्रशासनिक समस्या' के बजाय 'अस्तित्वगत संकट' के रूप में देखें।