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सर्दियों का अंत? हिम-आधारित पर्यटन का वो काला सच जो स्की रिसॉर्ट्स छिपा रहे हैं

By Aarav Kumar • December 15, 2025

सर्दियों का अंत? हिम-आधारित पर्यटन का वो काला सच जो स्की रिसॉर्ट्स छिपा रहे हैं

क्या आपका पसंदीदा स्की डेस्टिनेशन अब सिर्फ यादें बनकर रह जाएगा? यह सवाल अब सिर्फ भविष्यवाणियों तक सीमित नहीं रहा। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की तपिश ने दुनिया भर के अल्पाइन रिसॉर्ट्स की नींव हिला दी है। यह सिर्फ बर्फ कम होने की कहानी नहीं है; यह अरबों डॉलर के उद्योग, हज़ारों नौकरियों और सदियों पुरानी शीतकालीन संस्कृति के ढहने की कहानी है। हम बात कर रहे हैं उस 'अनकही सच्चाई' की जिसे बड़े ब्रांड और स्थानीय सरकारें छिपाने की कोशिश कर रही हैं: सर्दियों के खेल (Winter Sports) एक ऐसी धीमी मौत मर रहे हैं जिसकी भरपाई आर्टिफिशियल स्नो से नहीं हो सकती।

वह विरोधाभासी वास्तविकता जो स्की रिसॉर्ट्स नहीं बताते

हर साल, जब तापमान बढ़ता है और प्राकृतिक बर्फ पिघलती है, तो मीडिया का ध्यान कृत्रिम बर्फ बनाने की तकनीक पर केंद्रित होता है। यह एक सुंदर झूठ है। मशीन से बनी बर्फ प्राकृतिक बर्फ जितनी टिकाऊ नहीं होती, उसे बनाने में भारी मात्रा में पानी और ऊर्जा खर्च होती है, और सबसे महत्वपूर्ण—यह केवल तभी काम करती है जब रात का तापमान शून्य से नीचे हो। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्म दिनों की संख्या बढ़ रही है, ये मशीनें भी बेकार हो रही हैं।

असली विजेता कौन है? जो लोग 'ऑल-सीज़न' पर्यटन की ओर तेज़ी से मुड़ रहे हैं। जो रिसॉर्ट्स केवल स्कीइंग पर निर्भर थे, वे दिवालिया होने की कगार पर हैं। दूसरी ओर, वे स्थान जो माउंटेन बाइकिंग, लंबी पैदल यात्रा (Hiking), और समर एडवेंचर को बढ़ावा दे रहे हैं, वे अपनी आय को विविधता प्रदान कर रहे हैं। यह एक आर्थिक पुनर्गठन है जिसे 'जलवायु अनुकूलन' कहा जा रहा है, लेकिन वास्तव में यह 'अस्तित्व की लड़ाई' है। रॉयटर्स की रिपोर्ट बताती है कि ऊंचाई वाले क्षेत्र भी अब सुरक्षित नहीं हैं।

गहरा विश्लेषण: संस्कृति बनाम पूंजी

शीतकालीन खेल सिर्फ मनोरंजन नहीं हैं; वे आल्प्स, रॉकीज़ और हिमालयी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान हैं। जब बर्फ गायब होती है, तो स्थानीय अर्थव्यवस्था, पारंपरिक वास्तुकला और पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित कौशल सब कुछ खतरे में पड़ जाता है। यह सिर्फ स्की लिफ्ट बंद करने का मामला नहीं है; यह उन समुदायों को विस्थापित करने का मामला है जो सदियों से पहाड़ों पर निर्भर रहे हैं।

विपरीत विचार यह है कि कुछ कंपनियां इस संकट से मुनाफा कमा रही हैं। कृत्रिम बर्फ बनाने वाले उपकरण बनाने वाली कंपनियां, या उच्च ऊंचाई वाले, अधिक बर्फीले क्षेत्रों (जैसे उत्तरी कनाडा या स्कैंडिनेविया के कुछ हिस्से) में नए रिसॉर्ट्स विकसित करने वाले निवेशक—वे ही असली लाभार्थी हैं। वे 'जलवायु जोखिम' को 'निवेश अवसर' में बदल रहे हैं। यह पूंजीवाद का सबसे क्रूर रूप है: संकट का मुद्रीकरण।

भविष्य की भविष्यवाणी: 2040 तक क्या होगा?

मेरी बोल्ड भविष्यवाणी है: 2040 तक, पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के 50% से अधिक मध्यम ऊंचाई वाले स्की रिसॉर्ट्स स्थायी रूप से बंद हो जाएंगे या केवल दिसंबर के मध्य से फरवरी के मध्य तक ही काम कर पाएंगे। स्कीइंग एक 'लक्जरी दुर्लभता' बन जाएगी, जो केवल दुनिया के सबसे ऊंचे और सबसे ठंडे स्थानों तक सीमित होगी। जो क्षेत्र अनुकूलन नहीं कर पाएंगे, वे 'घोस्ट टाउन' बन जाएंगे, जिनकी शानदार लॉज और लिफ्टें बर्फ के पिघलने का मूक गवाह बनेंगी। यह एक आर्थिक पतन होगा जिसे सरकारें भारी सब्सिडी के साथ छिपाने की कोशिश करेंगी, जैसा कि न्यूयॉर्क टाइम्स अक्सर रिपोर्ट करता है।

भारत के लिए निहितार्थ

भारत में, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग को तत्काल खतरा है। भले ही हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की दर अलग हो, लेकिन अनियमित मौसम पैटर्न (अचानक भारी बारिश या अप्रत्याशित गर्मी) स्कीइंग सीजन को गंभीर रूप से छोटा कर रहा है। यदि हम जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लेते हैं, तो गुलमर्ग या औली जैसे स्थल केवल इतिहास की किताबों में बचे रहेंगे।

यह समय है कि हम शीतकालीन खेलों की परिभाषा बदलें। यदि हम बर्फ को बचाने की लड़ाई हार रहे हैं, तो हमें पहाड़ों को बचाने की लड़ाई जीतनी होगी।