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सोमवार, 15 दिसंबर: स्कूल बंद होने के पीछे की 'अदृश्य राजनीति' और ई-लर्निंग का असली सच

By Kiara Banerjee • December 15, 2025

सोमवार, 15 दिसंबर: स्कूल बंद होने के पीछे की 'अदृश्य राजनीति' और ई-लर्निंग का असली सच

सवाल यह नहीं है कि मौसम खराब था, सवाल यह है कि हमने इससे क्या सीखा? सोमवार, 15 दिसंबर को देशभर में कई शिक्षण संस्थानों के बंद होने और 'ई-लर्निंग' की घोषणा ने माता-पिता और छात्रों को एक बार फिर पुरानी बहस में धकेल दिया है। IPM न्यूज़ रूम ने क्लोजिंग की सूचना दी, लेकिन इस खबर की सतह के नीचे एक गहरा सच छिपा है जिसे कोई नहीं बता रहा: यह सिर्फ बर्फ या बारिश का मामला नहीं है, यह है **शिक्षा प्रणाली** की अस्थिरता और डिजिटल निर्भरता का एक सूक्ष्म परीक्षण है।

हमारा विश्लेषण बताता है कि इस तरह की अचानक बंदी से सबसे ज़्यादा नुकसान उन छात्रों को होता है जो पहले से ही शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं। जबकि अमीर तबके के बच्चे आसानी से लैपटॉप पर स्विच कर जाते हैं, वंचित वर्ग के लिए 'ई-लर्निंग' केवल एक भ्रम है। यह **शिक्षा की निरंतरता** बनाए रखने की आड़ में असमानता को और गहरा करने का एक नया तरीका बन गया है।

'ई-लर्निंग' का भ्रम: डिजिटल डिवाइड का नया चेहरा

जब स्कूल बंद होते हैं, तो प्रशासन राहत की सांस लेता है—कोई बुनियादी ढांचागत समस्या नहीं, कोई शिकायत नहीं। लेकिन असली संकट तब आता है जब हम डेटा देखते हैं। क्या हर छात्र के पास स्थिर इंटरनेट कनेक्शन और उपयुक्त उपकरण हैं? जवाब है, बिल्कुल नहीं। 'ई-लर्निंग' एक शानदार समाधान लगता है, लेकिन यह केवल उन लोगों के लिए काम करता है जिनके पास पहले से ही संसाधन मौजूद हैं। यह एक ऐसा 'समाधान' है जो समस्या को हल करने के बजाय उसे छिपा देता है। यह दिखाता है कि हमारी **स्कूल क्लोजिंग** नीतियां अभी भी 20वीं सदी के संकट प्रबंधन पर टिकी हैं, 21वीं सदी के डिजिटल समाधान पर नहीं।

विपरीत राय यह है कि ये बंद स्कूल प्रशासन को आपातकालीन प्रतिक्रिया समय के लिए प्रशिक्षित करते हैं। लेकिन क्या यह प्रशिक्षण वास्तविक आपदा के लिए है, या केवल कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए? मेरा मानना है कि यह सुविधा का मामला है। यह एक ऐसा सिस्टम है जो लचीला होने के बजाय भंगुर (fragile) है।

विश्लेषण: किसे फायदा?

इस पूरी प्रक्रिया में, शिक्षा-प्रौद्योगिकी (EdTech) कंपनियाँ और दूरसंचार प्रदाता सबसे बड़े विजेता बनकर उभरते हैं। हर बार जब मौसम के कारण स्कूल बंद होते हैं, तो वे डेटा उपयोग और सब्सक्रिप्शन की बिक्री में वृद्धि देखते हैं। यह संयोग नहीं है; यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो व्यवधान पर पनपती है।

भविष्यवाणी: अगले पांच वर्षों में क्या होगा?

मेरा बोल्ड अनुमान है कि अगले पांच वर्षों में, हम 'हाइब्रिड क्लोजर' मॉडल को संस्थागत रूप लेते देखेंगे। मौसम की मामूली चेतावनी पर भी स्कूल पूरी तरह बंद करने के बजाय, प्रशासन एक 'आंशिक ई-लर्निंग डे' घोषित करेगा। यह सरकार और स्कूलों को यह दिखाने की अनुमति देगा कि वे सक्रिय हैं, जबकि वास्तव में वे केवल अपनी अक्षमता को डिजिटल पर्दे के पीछे छिपा रहे होंगे। यह **शिक्षा का डिजिटलीकरण** एक आवश्यकता के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक बचाव के रूप में स्थापित हो जाएगा। हमें यह समझना होगा कि भौतिक उपस्थिति का कोई विकल्प नहीं है, खासकर शुरुआती शिक्षा के लिए।

हमें ऐसे बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता है जो खराब मौसम का सामना कर सके, न कि ऐसे सॉफ्टवेयर में जो केवल कागजों पर 'शिक्षा' प्रदान करता हो। यह एक ऐसा **लर्निंग** संकट है जो मौसम की रिपोर्ट से कहीं ज़्यादा गहरा है।

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और पढ़ें: शिक्षा प्रणाली में डिजिटल असमानता पर अधिक जानने के लिए, आप अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थानों के डेटा देख सकते हैं (जैसे यूनेस्को रिपोर्ट)।