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₹1000 करोड़ का खेल: AIC-BIMTECH मीट में छिपी वो सच्चाई जो किसी स्टार्टअप फाउंडर को नहीं बताई जाएगी

By Myra Khanna • December 10, 2025

₹1000 करोड़ का खेल: AIC-BIMTECH मीट में छिपी वो सच्चाई जो किसी स्टार्टअप फाउंडर को नहीं बताई जाएगी

साल 2025 के अंत में, जब दिल्ली-एनसीआर के अकादमिक गलियारों में शोरगुल शांत हुआ, तब AIC-BIMTECH द्वारा आयोजित ‘Gen-Next Founder Connect’ इवेंट ने सुर्खियां बटोरीं। खबर यह है कि 70 से अधिक महत्वाकांक्षी स्टार्टअप्स को ₹1,000 करोड़ से अधिक के संभावित निवेशक नेटवर्क से मिलाया गया। लेकिन रुकिए। भीड़, उत्साह और बड़े आंकड़ों के पीछे की स्याही को कौन पढ़ेगा? यह सिर्फ एक सफल नेटवर्किंग इवेंट नहीं था; यह भारतीय वेंचर कैपिटल पारिस्थितिकी तंत्र की एक गहरी, और अक्सर अनदेखी की जाने वाली, वास्तविकता का प्रदर्शन था।

द अनस्पोकन ट्रुथ: फंडिंग का भ्रम और 'वैल्यू क्रिएशन' का नाटक

हर सफल 'कनेक्ट' इवेंट में, एक अनकहा नियम काम करता है: निवेशक हमेशा 'डील फ्लो' चाहते हैं, संस्थापक हमेशा 'फंडिंग' चाहते हैं। लेकिन इस ₹1000 करोड़ के आंकड़े का मतलब यह नहीं है कि ₹1000 करोड़ बांटे गए। इसका मतलब है कि उस राशि के निवेश की क्षमता मौजूद थी। यह एक मार्केटिंग हुक है। असली सवाल यह है: उन 70 स्टार्टअप्स में से कितने वास्तव में उस स्तर के थे कि वे 'सीड' से 'सीरीज़ ए' तक की छलांग लगा सकें? अधिकांश स्टार्टअप्स, विशेष रूप से जो अकादमिक इनक्यूबेटर से निकलते हैं, उत्पाद-बाजार फिट (Product-Market Fit) के प्रारंभिक चरण में संघर्ष करते हैं।

यह मीट उन शुरुआती दौर के फाउंडरों के लिए एक 'वर्चुअल ट्रेनिंग' थी कि बड़े निवेशक क्या देखना चाहते हैं। यह एक फ़िल्टर था। विजेता वे नहीं थे जिन्हें चेक मिला, बल्कि वे थे जिन्हें यह समझने का मौका मिला कि उनके बिजनेस मॉडल में क्या कमी है। हारने वाले वे थे जिन्होंने सोचा कि सिर्फ एक अच्छी पिच से उनका काम हो जाएगा। यह वेंचर कैपिटल संस्कृति का एक कठोर सबक है: प्रदर्शन (Traction) ही राजा है, केवल विचार नहीं। यह इवेंट एक तरह से 'पोटेंशियल' को प्रदर्शित करने का एक मंच था, न कि केवल 'सफलता' का उत्सव।

गहरा विश्लेषण: अकादमिक बनाम बाजार की कठोरता

AIC-BIMTECH जैसे संस्थान इनोवेशन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन अक्सर वे बाजार की क्रूरता से कटे हुए होते हैं। जब एक इनक्यूबेटर 70 कंपनियों को एक साथ लाता है, तो यह संसाधनों का बंटवारा भी होता है। क्या इन 70 में से 50 को वह गहन मेंटरशिप मिल पाई जिसकी उन्हें जरूरत थी, या वे बस भीड़ का हिस्सा बनकर रह गए? हमें यह समझना होगा कि भारत में यूनिकॉर्न बनने की दर अब धीमी हो रही है। पूंजी अब पहले से कहीं ज़्यादा चुनिंदा है। निवेशक अब केवल 'ग्रोथ एट ऑल कॉस्ट' के विचार पर पैसा नहीं लगा रहे हैं; वे लाभप्रदता (Profitability) और टिकाऊ बिजनेस मॉडल की मांग कर रहे हैं। यह शिफ्ट, जिसे कई फाउंडर नजरअंदाज कर रहे हैं, इस इवेंट की पृष्ठभूमि में सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक बदलाव है। अधिक जानकारी के लिए, आप रॉयटर्स पर वैश्विक फंडिंग ट्रेंड्स देख सकते हैं।

आगे क्या होगा? भविष्यवाणी: 'द ग्रेट कंसोलिडेशन'

अगले 18 महीनों में, हम 'द ग्रेट कंसोलिडेशन' देखेंगे। जिन स्टार्टअप्स ने इस इवेंट में भाग लिया, उनमें से 80% को शायद बड़ा निवेश नहीं मिलेगा। इसके बजाय, हम देखेंगे कि बड़े, स्थापित फंड्स छोटे, मजबूत टेक्नोलॉजी वाले स्टार्टअप्स का अधिग्रहण करेंगे—यानी 'एक्विजिशन' फंडिंग का नया चलन बनेगा। जिन फाउंडरों ने इस इवेंट में केवल नेटवर्किंग की, वे पीछे छूट जाएंगे। भविष्य उन लोगों का है जो टेक्नोलॉजी को समझते हैं, न कि केवल पिच डेक को। यह बाजार अब 'जनरेशन नेक्स्ट' को नहीं, बल्कि 'जनरेशन सस्टेनेबल' को इनाम देगा।

यह इवेंट भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के विकास का एक स्नैपशॉट है—रोमांचक, लेकिन अंतर्निहित जोखिमों से भरा हुआ। असली सफलता तब होगी जब ये दावे केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि वास्तविक बाजार मूल्यांकन में बदलेंगे।