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जनसांख्यिकीय लाभांश का भ्रम: क्यों राज्यों के भरोसे हायर एजुकेशन सुधार भारत को डुबो सकते हैं?

जनसांख्यिकीय लाभांश का भ्रम: क्यों राज्यों के भरोसे हायर एजुकेशन सुधार भारत को डुबो सकते हैं?

मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) नागेश्वरन ने राज्य-नेतृत्व वाले शिक्षा सुधारों की वकालत की है, लेकिन पर्दे के पीछे का सच क्या है? क्या यह केंद्र की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना है?

मुख्य बिंदु

  • CEA का राज्य-नेतृत्व वाले सुधारों पर जोर केंद्र की फंडिंग जिम्मेदारी से बचने का प्रयास हो सकता है।
  • राज्य-स्तरीय पाठ्यक्रम से शिक्षा की गुणवत्ता में राष्ट्रीय स्तर पर असंगति आएगी।
  • असफल सुधारों का खामियाजा ग्रामीण और निम्न-आय वर्ग के छात्रों को भुगतना पड़ेगा।
  • यदि मानकीकरण नहीं हुआ, तो भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक आर्थिक संकट बन सकता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) का भारत के लिए क्या मतलब है?

जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ है जब किसी देश की कामकाजी आयु वाली आबादी (15-64 वर्ष) आश्रित आबादी (बच्चों और बुजुर्गों) की तुलना में बहुत अधिक होती है। यह आर्थिक विकास के लिए एक बड़ी खिड़की प्रदान करता है, बशर्ते कार्यबल शिक्षित और उत्पादक हो।

शिक्षा सुधारों में राज्य-नेतृत्व दृष्टिकोण का मुख्य जोखिम क्या है?

मुख्य जोखिम यह है कि इससे पूरे देश में शिक्षा की गुणवत्ता और मानकों में भारी असमानता पैदा होगी। कुछ राज्य आगे बढ़ सकते हैं, जबकि अन्य पिछड़ जाएंगे, जिससे राष्ट्रीय श्रम शक्ति की समग्र योग्यता प्रभावित होगी।

उच्च शिक्षा में केंद्र सरकार की क्या भूमिका होनी चाहिए?

उच्च शिक्षा में केंद्र की भूमिका मानक निर्धारित करने, प्रमुख संस्थानों (जैसे IITs, केंद्रीय विश्वविद्यालय) को वित्तपोषित करने, और अनुसंधान एवं विकास के लिए बड़े पैमाने पर धन आवंटित करने की होनी चाहिए, भले ही कार्यान्वयन राज्यों द्वारा किया जाए। यह एक साझा जिम्मेदारी है।

CEA नागेश्वरन की मांग का आधार क्या है?

CEA नागेश्वरन का आधार यह है कि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में है, और राज्यों को स्थानीय उद्योगों और आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम को अनुकूलित करने के लिए अधिक स्वायत्तता लेनी चाहिए ताकि रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।