तमिलनाडु का 4,500 उद्यमियों का 'सपना': क्या यह जमीनी हकीकत है या सिर्फ चुनावी लॉलीपॉप?
तमिलनाडु में 4,500 माइक्रो-उद्यमियों को सशक्त बनाने का कार्यक्रम – असली विजेता कौन? जानिए पर्दे के पीछे की कहानी।
मुख्य बिंदु
- •कार्यक्रम का मुख्य जोखिम प्रशिक्षण के बाद बाजार में बने रहने की क्षमता और ऋण तक पहुंच की कमी है।
- •असली विजेता वे बिचौलिए होंगे जिन्हें ठेका मिला है, न कि सभी 4,500 उद्यमी।
- •दीर्घकालिक सफलता के लिए डिजिटल जुड़ाव और मजबूत सप्लाई चेन लिंकेज आवश्यक हैं।
- •भविष्य में, इन उद्यमों के जीवित रहने की दर पर सरकार के डेटा की पारदर्शिता महत्वपूर्ण होगी।
तमिलनाडु का 4,500 उद्यमियों का 'सपना': क्या यह जमीनी हकीकत है या सिर्फ चुनावी लॉलीपॉप?
जब भी सरकारें बड़े पैमाने पर सूक्ष्म उद्यम विकास की घोषणा करती हैं, तो शोर मचता है। तमिलनाडु में 4,500 महत्वाकांक्षी माइक्रो-उद्यमियों को सशक्त बनाने का हालिया कार्यक्रम भी इसी शोर का हिस्सा है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, मेरा काम सिर्फ घोषणाओं को दोहराना नहीं है, बल्कि उसकी स्याही को खुरचना है। सवाल यह है: क्या यह वास्तव में जमीनी स्तर पर वास्तविक आर्थिक क्रांति लाएगा, या यह केवल आगामी चुनावों से पहले एक और राजनीतिक 'इवेंट' है?
यह कार्यक्रम 'उद्यमिता' (Entrepreneurship) को बढ़ावा देने के सरकारी वादे का एक ताजा उदाहरण है, लेकिन इसकी सफलता का पैमाना केवल संख्या नहीं है। असली चुनौती प्रशिक्षण के बाद इन 4,500 लोगों को बाजार में टिके रहने लायक बनाना है। मौजूदा आर्थिक माहौल में, जहां बड़े कॉर्पोरेट खिलाड़ियों का दबदबा है, छोटे खिलाड़ी अक्सर पहले छह महीनों में ही दम तोड़ देते हैं। तमिलनाडु में रोजगार सृजन के लिए यह पहल सराहनीय है, लेकिन इसकी 'सस्टेनेबिलिटी' पर गंभीर संदेह है।
अनकहा सच: किसे मिलता है असली फायदा?
हमेशा की तरह, सरकारी योजनाओं में 'विजेता' और 'पराजित' होते हैं। विजेता वे बिचौलिए और कंसल्टेंसी फर्म होंगी जिन्हें प्रशिक्षण और रिपोर्टिंग का ठेका मिला है। वे शायद लक्ष्य पूरा करने के नाम पर कागजी घोड़े दौड़ा देंगे। पराजित वे नवोदित उद्यमी होंगे जिन्हें शायद केवल एक प्रमाण पत्र मिलेगा, लेकिन पूंजी की कमी, जटिल सरकारी प्रक्रियाओं और बाजार की समझ न होने के कारण वे कभी सफल नहीं हो पाएंगे। यह कार्यक्रम 'मेक इन इंडिया' की भावना को मजबूत करता है, लेकिन क्या सरकार ने वास्तव में 'मेक इट सस्टेन' पर ध्यान दिया है?
हम भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम की बात करते हैं, लेकिन यह कार्यक्रम उस विशाल पिरामिड के केवल आधार को छूता है। माइक्रो-उद्यमियों को केवल सब्सिडी या प्रशिक्षण नहीं चाहिए; उन्हें आसान ऋण (Easy Credit), मजबूत सप्लाई चेन लिंकेज और सरकारी खरीद में प्राथमिकता चाहिए। क्या इस 4,500 लोगों के समूह को यह सब मिलेगा, या वे सरकारी योजनाओं के आंकड़ों में खो जाएंगे?
गहराई से विश्लेषण: यह सिर्फ एक संख्या क्यों नहीं है?
तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था विनिर्माण (Manufacturing) और सेवाओं का एक शक्तिशाली मिश्रण है। इस तरह के छोटे उद्यमों को सफलतापूर्वक बढ़ावा देने के लिए, सरकार को डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy) और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म (E-commerce Platform) तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। केवल 4,500 लोगों को प्रशिक्षित करना एक अच्छा PR मूव है, लेकिन वास्तविक प्रभाव तब दिखेगा जब ये उद्यम अगली तिमाही में भी जीवित रहें और कम से कम 10,000 और लोगों को रोजगार दें। तमिलनाडु में आर्थिक विकास की कुंजी इन छोटे प्रयासों को बड़े बाजार से जोड़ने में है। प्रशिक्षण के बाद, इन उद्यमियों को एक समर्पित मेंटरशिप नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जो अक्सर इन कार्यक्रमों में अनुपस्थित रहता है।
भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरा मानना है कि अगले 18 महीनों में, इनमें से 60% से अधिक उद्यम या तो बंद हो जाएंगे या अपनी मूल स्थिति में वापस लौट जाएंगे। शेष 40% वे होंगे जिनके पास पहले से ही पारिवारिक समर्थन था या जो संयोग से सही समय पर सही बाजार अवसर को पकड़ लेंगे। सरकार को डेटा जारी करना चाहिए कि कितने उद्यमियों ने एक साल बाद भी परिचालन जारी रखा। यदि यह डेटा सार्वजनिक नहीं किया जाता है, तो यह स्पष्ट संकेत होगा कि यह कार्यक्रम केवल एक अल्पकालिक राजनीतिक जीत के लिए डिज़ाइन किया गया था, न कि दीर्घकालिक आर्थिक परिवर्तन के लिए। असली सफलता तब होगी जब ये 4,500 लोग अगले 5 वर्षों में 45,000 लोगों को प्रेरित करेंगे।
यह पहल एक बीज बोने जैसी है, लेकिन अगर मिट्टी (बाजार की नीतियां) बंजर है, तो फसल नहीं उगेगी।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
तमिलनाडु में माइक्रो-उद्यमियों को सशक्त बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
मुख्य उद्देश्य 4,500 महत्वाकांक्षी व्यक्तियों को आवश्यक कौशल, प्रशिक्षण और प्रारंभिक सहायता प्रदान करके उन्हें छोटे व्यवसायों को शुरू करने और चलाने में सक्षम बनाना है, जिससे स्थानीय रोजगार सृजन हो सके।
क्या इस तरह के सरकारी कार्यक्रम वास्तव में सफल होते हैं?
सफलता दर अक्सर भिन्न होती है। जबकि ये कार्यक्रम जागरूकता बढ़ाते हैं, कई अध्ययन बताते हैं कि पूंजी तक पहुंच और बाजार की अस्थिरता के कारण कई छोटे उद्यम पहले कुछ वर्षों में विफल हो जाते हैं, खासकर यदि निरंतर मेंटरशिप प्रदान नहीं की जाती है।
उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था कैसी है?
तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था विनिर्माण और सेवाओं में मजबूत है, जो इसे उद्यमशीलता के लिए एक उपजाऊ जमीन बनाती है। हालांकि, बड़े कॉर्पोरेट प्रतिस्पर्धा और ऋण उपलब्धता प्रमुख चुनौतियां बनी हुई हैं।
माइक्रो-उद्यमियों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
माइक्रो-उद्यमियों को फंडिंग की कमी, जटिल नियामक प्रक्रियाएं, बाजार में पैठ बनाने में कठिनाई और कुशल श्रम को बनाए रखने जैसी प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।