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मोटापा और ग्लोबल हीटिंग: ये दो संकट नहीं, एक ही राक्षस के दो सिर हैं – और आप शिकार हैं!

मोटापा और ग्लोबल हीटिंग: ये दो संकट नहीं, एक ही राक्षस के दो सिर हैं – और आप शिकार हैं!

वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ मोटापे और जलवायु परिवर्तन को कैसे बढ़ावा दे रही हैं? जानिए पर्दे के पीछे की चौंकाने वाली सच्चाई।

मुख्य बिंदु

  • वैश्विक खाद्य प्रणालियाँ मोटापे और जलवायु परिवर्तन दोनों के लिए प्राथमिक चालक हैं।
  • औद्योगिक कृषि सब्सिडी सस्ते, अस्वस्थ भोजन को बढ़ावा देती है, जिससे कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ता है।
  • जलवायु कार्रवाई के लिए केवल ऊर्जा परिवर्तन पर्याप्त नहीं है; हमें 'प्लेट परिवर्तन' की आवश्यकता है।
  • भविष्य में, 'खाद्य संप्रभुता' और उच्च कार्बन वाले खाद्य पदार्थों पर कर लगने की संभावना है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

खाद्य प्रणाली जलवायु परिवर्तन में कैसे योगदान करती है?

यह बड़े पैमाने पर पशुधन उत्पादन (मीथेन), वनों की कटाई (जमीन के उपयोग में बदलाव), उर्वरकों का उपयोग (नाइट्रस ऑक्साइड), और लंबी दूरी के परिवहन और पैकेजिंग के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है।

मोटापा और जलवायु परिवर्तन के बीच अप्रत्यक्ष संबंध क्या है?

दोनों ही अत्यधिक प्रसंस्कृत, सस्ते खाद्य पदार्थों पर अत्यधिक निर्भरता से प्रेरित हैं, जिन्हें औद्योगिक कृषि सब्सिडी द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। यह प्रणाली अत्यधिक कैलोरी प्रदान करती है जबकि ग्रह को नुकसान पहुंचाती है।

इस दोहरे संकट को हल करने के लिए सबसे बड़ा बदलाव क्या होना चाहिए?

संरचनात्मक बदलाव आवश्यक है: स्वस्थ, टिकाऊ खाद्य पदार्थों को आर्थिक रूप से अधिक आकर्षक बनाना और औद्योगिक खाद्य उत्पादन को बाहरी लागतों (जैसे कार्बन उत्सर्जन और स्वास्थ्य लागत) के लिए जवाबदेह ठहराना।

क्या शाकाहारी बनना इस समस्या का समाधान है?

हाँ, मांस की खपत कम करना एक बड़ा कदम है, लेकिन यह एकमात्र समाधान नहीं है। स्थानीय, कम अपशिष्ट वाली, और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, भले ही आहार शाकाहारी न हो।