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रेलवे का 'त्योहार स्पेशल' सच: कौन कमा रहा है और यात्री क्यों ठगे जा रहे हैं?

रेलवे का 'त्योहार स्पेशल' सच: कौन कमा रहा है और यात्री क्यों ठगे जा रहे हैं?

क्रिसमस और नए साल पर रेलवे की 'स्पेशल ट्रेन' घोषणाओं के पीछे का अनदेखा सच और **भारतीय रेल यात्रा** की कड़वी हकीकत।

मुख्य बिंदु

  • स्पेशल ट्रेनों में किराया 15-30% तक अधिक होता है, जो पीक सीजन का फायदा उठाता है।
  • यह घोषणा स्थायी बुनियादी ढांचा सुधारों की विफलता को छिपाने का एक अस्थायी उपाय है।
  • असली विजेता रेलवे है, जो बिना बड़े निवेश के राजस्व बढ़ा रहा है; यात्री हार रहा है।
  • भविष्य में निजी भागीदारी बढ़ने की संभावना है, जिससे यात्रा और महंगी हो सकती है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

त्योहार स्पेशल ट्रेनों का किराया सामान्य ट्रेनों से ज़्यादा क्यों होता है?

रेलवे इन ट्रेनों को 'स्पेशल' करार देकर मांग और आपूर्ति के नियम का उपयोग करता है। चूंकि मांग चरम पर होती है और आपूर्ति सीमित होती है, इसलिए रेलवे अस्थायी रूप से 15% से 30% तक अतिरिक्त फ्लेक्सी किराया वसूलता है।

क्या ये स्पेशल ट्रेनें वास्तव में भीड़ को कम करने में मदद करती हैं?

ये आंशिक रूप से मदद करती हैं, लेकिन चूंकि ये अक्सर मौजूदा मार्गों पर अतिरिक्त फेरे होते हैं, ये केवल दबाव को कुछ हद तक स्थानांतरित करते हैं। स्थायी समाधान के अभाव में, ये केवल तात्कालिक राहत देते हैं, जिससे <strong>भारतीय रेल यात्रा</strong> की मूल समस्या बनी रहती है।

यात्री त्योहारों पर सस्ती टिकट कैसे पा सकते हैं?

सबसे अच्छा तरीका है कि टिकटों की घोषणा होते ही (या उससे पहले) तत्काल बुकिंग स्लॉट के लिए तैयार रहें। यदि तत्काल बुकिंग विफल हो जाती है, तो लंबी अवधि की यात्राओं के लिए वैकल्पिक दिनों में यात्रा करने का प्रयास करें, या निजी बस सेवाओं की तुलना करें, हालांकि वे भी त्योहारी सीजन में महंगी हो सकती हैं।

क्या रेलवे स्थायी रूप से ट्रेनों की संख्या बढ़ा सकता है?

तकनीकी रूप से हाँ, लेकिन इसके लिए ट्रैक क्षमता, रोलिंग स्टॉक और परिचालन स्टाफ में बड़े स्थायी निवेश की आवश्यकता होती है। रेलवे अक्सर अस्थायी 'स्पेशल' समाधानों को प्राथमिकता देता है क्योंकि वे तत्काल राजस्व प्रदान करते हैं और बड़े पूंजीगत व्यय से बचते हैं।