NEET विवाद: भारत की मनोविज्ञान शिक्षा का ढोंग, और असली विजेता कौन?

NEET विवाद ने भारत की **मनोविज्ञान शिक्षा** की नींव हिला दी है। जानिए क्यों यह केवल परीक्षा नहीं, बल्कि एक गहरा संरचनात्मक संकट है।
मुख्य बिंदु
- •NEET विवाद केवल परीक्षा का नहीं, बल्कि मनोविज्ञान शिक्षा के नियामक ढांचे की दशकों पुरानी विफलता का परिणाम है।
- •भारत में 'योग्य मनोवैज्ञानिक' की कोई स्पष्ट, एकीकृत परिभाषा मौजूद नहीं है, जिससे रोगियों को खतरा है।
- •असली विजेता वे स्थापित हित हैं जो क्षेत्र को अस्पष्ट रखकर अपनी अनियंत्रित स्थिति बनाए रखना चाहते हैं।
- •भविष्य में एक पंजीकरण अधिनियम आएगा, लेकिन यह धीमी गति से होगा और उच्च योग्यता प्राप्त पेशेवरों की फीस बढ़ाएगा।
NEET विवाद: भारत की मनोविज्ञान शिक्षा का ढोंग, और असली विजेता कौन?
भारत में मनोविज्ञान शिक्षा का क्षेत्र इन दिनों एक ऐसे भूचाल के केंद्र में है जिसे ऊपर से भले ही 'NEET या नॉट' की मामूली बहस लग रही हो, लेकिन हकीकत में यह हमारे स्वास्थ्य सेवा ढांचे की उस गहरी सड़ी हुई नींव को उजागर करता है, जिसे दशकों से अनदेखा किया गया है। यह सिर्फ एक परीक्षा का मामला नहीं है; यह योग्यता, विनियमन और सबसे बढ़कर, मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा का एक विस्तृत अध्ययन है।
हुक: वह झूठ जिसे हम सच मानते रहे
हम यह मानकर चलते रहे हैं कि भारत में योग्य मनोवैज्ञानिकों की संख्या पर्याप्त है। हमने यह भी मान लिया कि जो डॉक्टर नहीं बन पाए, वे मनोविज्ञान में करियर बना लेंगे। **मनोवैज्ञानिक पात्रता** को लेकर चल रहा यह भ्रम, भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) और अब NMC के दायरे से बाहर रहने की दशकों पुरानी विसंगति का सीधा परिणाम है। जब तक मनोविज्ञान को एक 'सहायक' या 'कला' स्ट्रीम माना जाता रहा, तब तक इस पर कोई सख्त नियामक नियंत्रण नहीं था। NEET का हस्तक्षेप इस शांति भंग करता है, क्योंकि यह पहली बार औपचारिक रूप से मनोविज्ञान को चिकित्सा ढांचे के करीब लाने की कोशिश कर रहा है, और सिस्टम चीख उठा है।
असली विजेता कौन है? इस खेल का असली विजेता वह अदृश्य नौकरशाही है जो दशकों से इस क्षेत्र को अस्पष्टता में रखकर अपनी शक्ति बनाए रखती आई है। यदि मनोविज्ञान स्पष्ट रूप से विनियमित हो जाता, तो अनगिनत 'डिप्लोमा धारक' और अपात्र परामर्शदाता बाजार से बाहर हो जाते। यह संघर्ष योग्यता बनाम स्थापित हितों का है।
गहन विश्लेषण: संरचनात्मक विफलता का प्रमाण
NEET विवाद का मूल कारण यह है कि भारत में 'मनोवैज्ञानिक' शब्द का कोई एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मानक नहीं है। आपके पास क्लिनिकल साइकोलॉजी में M.Phil डिग्री वाले विशेषज्ञ हैं, जिन्हें वर्षों के कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है, और दूसरी तरफ, कुछ महीनों का सर्टिफिकेट कोर्स करके खुद को 'काउंसलर' बताने वाले लोग हैं। यह एक खतरनाक विसंगति है, खासकर तब जब देश में मानसिक स्वास्थ्य संकट चरम पर है।
हम मानसिक स्वास्थ्य पर बात तो करते हैं, लेकिन भारत में मनोविज्ञान पाठ्यक्रम की गुणवत्ता पर कभी गंभीर चर्चा नहीं करते। जब तक मनोविज्ञान को चिकित्सा पाठ्यक्रम (MBBS/BDS) के बराबर नहीं लाया जाता, तब तक यह भ्रम बना रहेगा। इस पूरे विवाद में आम जनता सबसे बड़ी हारने वाली है, क्योंकि वे यह तय नहीं कर पाते कि वे एक योग्य पेशेवर से सलाह ले रहे हैं या किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति से। यह स्थिति विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रचारित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता के बिल्कुल विपरीत है।
भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरा मानना है कि यह विवाद एक **मनोवैज्ञानिक पंजीकरण अधिनियम** (Psychological Registration Act) की ओर ले जाएगा, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी और अत्यंत विवादास्पद होगी। सरकार दबाव में आकर एक 'मध्यम मार्ग' अपनाएगी, जिससे कुछ हद तक भ्रम बना रहेगा। हम एक ऐसी स्थिति देखेंगे जहां उच्च योग्य क्लिनिकल मनोवैज्ञानिकों की मांग बढ़ेगी, लेकिन उनकी संख्या सीमित रहने के कारण फीस आसमान छू जाएगी। बाजार में 'क्वालिफाइड' और 'अनक्वालिफाइड' परामर्शदाताओं के बीच एक स्पष्ट विभाजन होगा। जो संस्थान आज **मनोविज्ञान में करियर** बनाने वालों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दे रहे हैं, वे अंततः बंद हो जाएंगे या कठोर मानकों के तहत आने को मजबूर होंगे। यह बदलाव अनिवार्य है, भले ही राजनीतिक इच्छाशक्ति कमजोर हो।
यह भारत में मनोविज्ञान शिक्षा के लिए एक कठोर लेकिन आवश्यक आत्म-सफाई प्रक्रिया है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
मनोविज्ञान शिक्षा को NEET के दायरे में क्यों लाया जा रहा है?
इसे इसलिए लाया जा रहा है ताकि क्लिनिकल मनोविज्ञान को चिकित्सा पेशे के करीब लाकर इसकी गुणवत्ता और मानकों को विनियमित किया जा सके, जो वर्तमान में अपर्याप्त हैं।
भारत में योग्य मनोवैज्ञानिक बनने के लिए न्यूनतम योग्यता क्या है?
क्लिनिकल मनोविज्ञान के क्षेत्र में, RCI द्वारा मान्यता प्राप्त M.Phil. (क्लिनिकल साइकोलॉजी) डिग्री आमतौर पर आवश्यक मानी जाती है, हालांकि विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग मानक मौजूद हैं।
NEET विवाद का आम जनता पर क्या असर पड़ेगा?
यह विवाद अंततः मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की गुणवत्ता को स्पष्ट करने में मदद करेगा, हालांकि संक्रमण काल में भ्रम बढ़ सकता है। योग्य पेशेवरों की फीस बढ़ सकती है।
भारत में मनोविज्ञान पाठ्यक्रम की वर्तमान स्थिति क्या है?
यह अत्यधिक खंडित है। कई विश्वविद्यालय डिग्री प्रदान करते हैं, लेकिन नैदानिक प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण की गुणवत्ता में भारी अंतर है, जैसा कि <a href="https://www.wikipedia.org/wiki/Psychology">मनोविज्ञान (Wikipedia)</a> के वैश्विक मानकों से तुलना करने पर स्पष्ट होता है।