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अंतरिक्ष युद्ध का नया अध्याय: स्पेस फोर्स के 'स्पेस-आधारित इंटरसेप्टर' का अनदेखा सच और चीन का डर

अंतरिक्ष युद्ध का नया अध्याय: स्पेस फोर्स के 'स्पेस-आधारित इंटरसेप्टर' का अनदेखा सच और चीन का डर

स्पेस फोर्स की नई उन्नत तकनीक की मांग: क्या यह सिर्फ़ चीन को रोकने का बहाना है? जानिए अंतरिक्ष हथियारों की असली दौड़।

मुख्य बिंदु

  • स्पेस फोर्स के इंटरसेप्टर का लक्ष्य चीन के उन्नत मिसाइल खतरों को अंतरिक्ष में ही बेअसर करना है।
  • यह कदम अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को तेज करेगा, जिससे वैश्विक अस्थिरता बढ़ेगी।
  • तकनीकी रूप से, यह कार्यक्रम बेहद जटिल और महंगा साबित हो सकता है, लेकिन राजनीतिक रूप से अनिवार्य है।
  • भविष्य में, पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) सैन्य प्रतिस्पर्धा का मुख्य क्षेत्र बनेगी।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

स्पेस-आधारित इंटरसेप्टर क्या होते हैं?

ये ऐसे हथियार प्लेटफॉर्म हैं जिन्हें पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाता है, जिनका प्राथमिक कार्य दुश्मन की बैलिस्टिक या हाइपरसोनिक मिसाइलों को उनके प्रक्षेपण के प्रारंभिक चरणों में ही नष्ट करना होता है।

यह कदम अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संधियों का उल्लंघन क्यों नहीं है?

वर्तमान अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) परमाणु हथियारों को कक्षा में रखने पर रोक लगाती है, लेकिन यह पारंपरिक या गैर-विनाशकारी हथियारों को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं करती है। स्पेस फोर्स इसे 'रक्षात्मक' उपाय बताकर सीमाएं पार करने की कोशिश कर रही है।

चीन इस पर कैसी प्रतिक्रिया देगा?

चीन इसे अपनी सुरक्षा पर सीधा हमला मानेगा और संभवतः अपने जमीनी-आधारित ASAT कार्यक्रमों और डार्क सैटेलाइट (Dark Satellites) तकनीकों में भारी निवेश करके जवाबी कार्रवाई करेगा।

इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा तकनीकी जोखिम क्या है?

सबसे बड़े जोखिमों में विकिरण से इलेक्ट्रॉनिक्स की सुरक्षा, सटीक ट्रैकिंग और लक्ष्यीकरण के लिए आवश्यक डेटा प्रोसेसिंग की गति, और अत्यधिक उच्च लागत शामिल है।