ओडिशा HC का फैसला: APAAR कार्ड सिर्फ शुरुआत है! जानिए कैसे सरकार आपकी हर हरकत पर रखेगी नज़र

छात्रों की 'निजता' पर आया ओडिशा HC का फैसला एक चेतावनी है। जानिए APAAR कार्ड से जुड़ी वो सच्चाई जो सरकार छिपा रही है।
मुख्य बिंदु
- •ओडिशा HC ने APAAR सहमति फॉर्म में सुधार के लिए केंद्र को दो महीने दिए हैं, जो छात्र डेटा सुरक्षा पर चिंताएं उजागर करता है।
- •APAAR का विस्तार भारत के केंद्रीकृत डिजिटल पहचान ढांचे का हिस्सा है, जिसका दीर्घकालिक निजता निहितार्थ है।
- •विश्लेषण बताता है कि सरकारें भविष्य में इस आईडी को लगभग अनिवार्य बनाने की कोशिश करेंगी, भले ही शुरुआती सहमति स्वैच्छिक हो।
- •असली खतरा यह है कि शिक्षा डेटा अन्य संवेदनशील डेटासेट से जुड़ सकता है, जिससे पूर्ण प्रोफाइलिंग संभव हो जाएगी।
हुक: क्या भारत में आपकी पहचान अब सिर्फ एक सरकारी कोड बनने जा रही है?
ओडिशा उच्च न्यायालय (Orissa HC) ने केंद्र सरकार को दो महीने के भीतर APAAR (एक राष्ट्र, एक छात्र आईडी) सहमति फॉर्म में संशोधन करने का आदेश देकर एक ऐसी बहस को हवा दे दी है जिसकी अनदेखी करना अब मुश्किल है। यह सिर्फ एक प्रशासनिक सुधार नहीं है; यह भारत की डिजिटल पहचान की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। मुख्य कीवर्ड - छात्र निजता, डिजिटल पहचान, और डेटा सुरक्षा - अब केवल अकादमिक चर्चाएँ नहीं रह गए हैं, बल्कि वे हर माता-पिता की चिंता बन गए हैं।
मांस का टुकड़ा: HC का आदेश और सहमति फॉर्म का खोखलापन
खबर यह है कि कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाई है क्योंकि APAAR के लिए छात्रों के डेटा संग्रह की सहमति प्रक्रिया (Consent Form) में पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं थे। यह दिखाता है कि सरकार ने कितनी जल्दबाजी में इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लागू करने की कोशिश की। डिजिटल पहचान की ओर यह कदम, जो 'वन नेशन, वन स्टूडेंट आईडी' का वादा करता है, सैद्धांतिक रूप से अच्छा लगता है—प्रशासनिक सुगमता, छात्रवृत्ति वितरण में आसानी। लेकिन असलियत में, यह एक विशाल, केंद्रीकृत डेटाबेस का निर्माण कर रहा है, जो भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे के लिए एक आकर्षक लक्ष्य है।
असली जीत किसकी?
इस फैसले से तात्कालिक राहत छात्रों और अभिभावकों को मिली है, जिन्होंने छात्र निजता के हनन की आशंका जताई थी। लेकिन असली विजेता वह कानूनी प्रणाली है जिसने सरकार की मनमानी पर ब्रेक लगाया। हार सरकार की हुई, जिसने डेटा संग्रह की नैतिकता को दरकिनार किया।
गहराई से विश्लेषण: 'एक राष्ट्र, एक पहचान' का छिपा हुआ एजेंडा
विपरीत दृष्टिकोण यह है कि APAAR सिर्फ शिक्षा मंत्रालय का प्रोजेक्ट नहीं है; यह भारत के डिजिटल पहचान पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार है। आधार (Aadhaar) ने वयस्कों के लिए यह आधारशिला रखी। अब APAAR बच्चों के लिए वही काम करेगा। लेकिन 18 साल से कम उम्र के बच्चों का डेटा अत्यधिक संवेदनशील होता है।
जो कोई नहीं बता रहा: यह डेटा केवल शैक्षणिक रिकॉर्ड तक सीमित नहीं रहेगा। अगर यह सिस्टम भविष्य में अन्य सरकारी सेवाओं (जैसे स्वास्थ्य रिकॉर्ड, वित्तीय लेनदेन) से जुड़ गया, जैसा कि अक्सर 'सिमलेस इंटीग्रेशन' के नाम पर होता है, तो यह भारत के नागरिकों की जीवन भर की गतिविधियों का एक पूर्ण डिजिटल प्रोफाइल बन जाएगा। यह प्रोफाइल किसी भी वाणिज्यिक संस्था या विदेशी शक्ति के लिए सोने की खान हो सकता है। वर्तमान सहमति फॉर्म केवल एक कानूनी औपचारिकता थी, जो नागरिकों की सहमति को जबरन हासिल करने का एक तरीका थी। हमें यह समझना होगा कि डेटा की सुरक्षा उसकी मात्रा पर निर्भर करती है—जितना अधिक डेटा, उतना बड़ा जोखिम।
भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरा विश्लेषण कहता है कि सरकार दो महीने में फॉर्म को संशोधित कर देगी, लेकिन यह केवल सतही बदलाव होंगे। वे 'डेटा मिनिमाइजेशन' (कम से कम डेटा संग्रह) के सिद्धांतों को लागू करने के बजाय, केवल भाषा को अधिक 'पारदर्शी' बना देंगे। असली खतरा यह है कि जैसे ही डिजिटल पहचान प्रणाली मजबूत होगी, सरकारें इसे धीरे-धीरे अनिवार्य बनाने लगेंगी। अगले पांच वर्षों में, हम देखेंगे कि बिना APAAR के कई सरकारी योजनाओं या यहाँ तक कि कुछ निजी स्कूलों में प्रवेश में बाधाएं आनी शुरू हो जाएंगी। यह एक सॉफ्ट मैंडेट (Soft Mandate) होगा, जो विरोध को असंभव बना देगा।
अभिभावकों को इस पर नज़र रखनी होगी कि क्या वास्तव में डेटा का उपयोग केवल शिक्षा के लिए हो रहा है, या यह एक व्यापक निगरानी तंत्र की नींव रख रहा है। आप इस पर अधिक जानकारी के लिए भारत की डेटा सुरक्षा कानूनों के विकास को देख सकते हैं [https://www.prsindia.org/bill-track/digital-personal-data-protection-act-2023] (उदाहरण के लिए)।
निष्कर्ष: सावधानी ही एकमात्र सुरक्षा है
ओडिशा HC का फैसला एक जीत है, लेकिन यह युद्ध का अंत नहीं है। यह केवल एक अस्थायी विराम है। जब तक सरकारें डेटा को एक संसाधन के रूप में देखना बंद नहीं करतीं और नागरिकों की निजता को उनका मौलिक अधिकार नहीं मानतीं, तब तक हर नई 'सुविधा' एक नए जोखिम के साथ आएगी।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
APAAR कार्ड क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
APAAR (एक राष्ट्र, एक छात्र आईडी) एक केंद्रीय रूप से जारी की गई पहचान संख्या है जिसका उद्देश्य सभी छात्रों के लिए एक मानकीकृत, पोर्टेबल रिकॉर्ड बनाना है, जिससे शैक्षणिक प्रमाणन और सरकारी योजनाओं का लाभ आसान हो सके।
ओडिशा HC ने केंद्र सरकार को क्या आदेश दिया?
ओडिशा उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को दो महीने के भीतर APAAR नामांकन के लिए उपयोग किए जा रहे सहमति फॉर्म को संशोधित करने का आदेश दिया है, क्योंकि वर्तमान फॉर्म में छात्रों की निजता की सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं थे।
छात्रों की निजता के संबंध में मुख्य चिंता क्या है?
मुख्य चिंता यह है कि APAAR के माध्यम से एकत्र किए गए व्यापक व्यक्तिगत डेटा को भविष्य में अन्य सरकारी या निजी डेटाबेस के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जिससे छात्रों की जीवन भर की गतिविधियों की निगरानी और प्रोफाइलिंग संभव हो सकती है।
क्या APAAR कार्ड बनवाना अनिवार्य है?
वर्तमान में, सरकार इसे स्वैच्छिक बता रही है। हालाँकि, भविष्य में प्रशासनिक सुविधाओं और शैक्षणिक लाभों के लिए इसका उपयोग अनिवार्य किया जा सकता है, जिससे 'सॉफ्ट मैंडेट' की स्थिति बन सकती है।