तिरुवनंतपुरम का वो आर्ट शो: क्या यह सिर्फ कला है, या जमीनी हकीकत से ध्यान भटकाने की साज़िश?
तिरुवनंतपुरम में सामाजिक मुद्दों पर कला प्रदर्शनी: सतह के नीचे छिपी सत्ता की राजनीति को समझिए।
मुख्य बिंदु
- •प्रदर्शनी सतही संवाद को बढ़ावा देती है, वास्तविक संरचनात्मक बदलाव को नहीं रोकती।
- •कला बाजार अक्सर असंतोष को नियंत्रित करने और उसे बेचने का एक साधन बन जाता है।
- •असली प्रभाव जमीनी स्तर पर कार्रवाई से आएगा, न कि केवल शहरी प्रदर्शनियों से।
- •यह आयोजन अभिजात्य वर्ग को अपनी 'नैतिक जिम्मेदारी' पूरी करने का भ्रम देता है।
कला की आड़ में राजनीति: एक अनदेखा सच
केरल के तिरुवनंतपुरम में आयोजित कला प्रदर्शनी, जो कथित तौर पर सामाजिक मुद्दों (Social Issues) पर केंद्रित है, सुर्खियों में है। सतह पर, यह प्रगतिशील विचारों और संवाद को बढ़ावा देने जैसा लगता है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, हमें पूछना होगा: क्या यह वास्तव में जमीनी हकीकत को बदलने का प्रयास है, या यह एक अत्यधिक प्रभावी 'ध्यान भटकाने वाला' उपकरण है? यह केवल कला नहीं है; यह सत्ता की गतिशीलता का एक सूक्ष्म प्रदर्शन है।
मुख्यधारा मीडिया इस आयोजन को 'संवाद का मंच' बताकर महिमामंडित कर रहा है। लेकिन असली सवाल यह है: ये प्रदर्शनियाँ किसके लिए हो रही हैं? क्या ये निचले तबके के लोगों के जीवन में बदलाव ला रही हैं, या ये केवल शहरी अभिजात वर्ग को अपनी 'जागरूकता' का प्रमाण पत्र देने का अवसर प्रदान कर रही हैं? सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करना आसान है जब आपकी दैनिक रोटी-रोजी सुरक्षित हो। असली चुनौती तब आती है जब कलाकार और आयोजक उन संरचनात्मक विफलताओं पर सवाल उठाते हैं जो इन मुद्दों को जन्म देती हैं।
गहराई से विश्लेषण: कला और पूंजी का गठजोड़
इस तरह के उच्च-प्रोफाइल प्रदर्शनियों का एक छिपा हुआ एजेंडा होता है। वे अक्सर एक सुरक्षित दायरे में रहकर असंतोष को नियंत्रित करने का काम करते हैं। एक ओर, वे सरकार या समाज पर कटाक्ष करते हैं; दूसरी ओर, वे कला बाजार के लिए एक आकर्षक वस्तु बन जाते हैं। यह एक विरोधाभास है: जिस व्यवस्था की आलोचना की जा रही है, वही व्यवस्था इन कलाकारों को मंच और धन प्रदान करती है। यह कला बाजार (Art Market) की एक क्लासिक चाल है—असली क्रांति को गैलरी की दीवारों तक सीमित कर देना।
भारत जैसे देश में, जहाँ वास्तविक गरीबी, स्वास्थ्य सेवा की कमी और शिक्षा का संकट विकराल रूप ले चुका है, एक कला प्रदर्शनी में घंटों बिताना एक विलासिता लगती है। क्या ये कलाकार उन लाखों लोगों के लिए कुछ कर रहे हैं जिनकी पीड़ा को वे अपनी कला में उतार रहे हैं? शायद नहीं। वे केवल अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता स्थापित कर रहे हैं। यह जागरूकता अभियान (Awareness Campaign) अक्सर केवल 'जागरूकता' बनकर रह जाता है, कार्रवाई में कभी परिवर्तित नहीं होता।
भविष्य की भविष्यवाणी: आगे क्या होगा?
मेरा अनुमान है कि इस तरह के प्रदर्शनियों की आवृत्ति बढ़ेगी, लेकिन उनका प्रभाव कम होता जाएगा। जैसे-जैसे वास्तविक संकट गहराएगा, जनता इन 'संवादों' से मोहभंग होना शुरू कर देगी। अगली बड़ी चीज़ होगी 'एक्शन-ओरिएंटेड आर्ट'—ऐसी कला जो सीधे सामुदायिक हस्तक्षेप या नीतिगत बदलाव के लिए दबाव डाले। यदि ये कलाकार केवल प्रदर्शनियों पर टिके रहते हैं, तो वे इतिहास में केवल उन लोगों के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने संकट के समय में आकर्षक तस्वीरें बनाईं, लेकिन बदलाव के लिए कुछ नहीं किया। यह घटना दिखाती है कि भारत में सामाजिक मुद्दों पर बातचीत अक्सर सतही बनी रहती है। (स्रोत: विश्व बैंक डेटा पर आधारित गरीबी विश्लेषण)।
कला और सत्ता का यह खेल तब तक जारी रहेगा जब तक दर्शक गैलरी से बाहर निकलकर वास्तविक दुनिया में सवाल पूछना शुरू नहीं करते।
गैलरी
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस तरह की कला प्रदर्शनियों का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
सतह पर, इनका उद्देश्य सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाना और संवाद शुरू करना होता है। हालाँकि, आलोचकों का मानना है कि ये अक्सर वास्तविक कार्रवाई से बचने और कला बाजार को बढ़ावा देने का एक तरीका होती हैं।
क्या केरल में सामाजिक मुद्दों पर कला का प्रदर्शन नया है?
केरल में कला और सामाजिक टिप्पणी का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शनियों की संख्या बढ़ी है, जो अक्सर राज्य की प्रगतिशील छवि को बल देती है।
कला और जमीनी हकीकत के बीच का अंतर क्या है?
जमीनी हकीकत का मतलब है उन लोगों के लिए तत्काल राहत और नीतिगत बदलाव लाना जो समस्याओं से सीधे जूझ रहे हैं। कला अक्सर इन समस्याओं को दर्शाती है, लेकिन समाधान प्रदान करने या कार्यान्वयन में सीधे शामिल नहीं होती।
भारत में 'सामाजिक मुद्दों' पर कला की भविष्य की दिशा क्या होगी?
भविष्य में, कला अधिक हस्तक्षेपवादी (Interventionist) और कार्रवाई-उन्मुख (Action-Oriented) होने की संभावना है, जो केवल दर्शाने के बजाय समाधानों को प्रेरित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।