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होम/वित्त और अर्थशास्त्रBy Myra Khanna Anvi Khanna

बजट का अगला दांव: कौन से सरकारी बैंक डूबेंगे और किसे मिलेगी 'सोने की चाबी'? असली खेल समझें!

बजट का अगला दांव: कौन से सरकारी बैंक डूबेंगे और किसे मिलेगी 'सोने की चाबी'? असली खेल समझें!

सरकारी बैंकों (PSB) के सुधारों की अगली लहर आ रही है। जानिए कौन बचेगा और किसके विलय का खतरा है।

मुख्य बिंदु

  • बजट में सरकारी बैंकों के विलय का अगला चरण अपेक्षित है, जिसका लक्ष्य वैश्विक स्तर के 'सुपर-बैंक' बनाना है।
  • असली एजेंडा दक्षता से अधिक सत्ता का केंद्रीकरण है, जिससे कुछ बैंकों को सरकार का वित्तीय हथियार बनाया जा सके।
  • छोटे और कमजोर क्षेत्रीय पीएसबी विलय की प्रक्रिया में खत्म हो जाएंगे या निगल लिए जाएंगे।
  • भविष्य में, विशाल बैंक कॉर्पोरेट ऋण पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिससे छोटे व्यवसायों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ऋण मिलना कठिन हो सकता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सरकारी बैंकों (PSB) के सुधारों का मुख्य उद्देश्य क्या है?

मुख्य उद्देश्य बैंकों को पूंजीगत रूप से मजबूत बनाना, एनपीए के बोझ को कम करना और उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी 'मेगा-बैंक' बनाने के लिए उनका विलय करना है।

PSB सुधारों से किसे सबसे ज्यादा नुकसान होगा?

छोटे क्षेत्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, जिनकी पूंजी अपर्याप्त है और जिनका प्रबंधन कमजोर है, उन्हें विलय में सबसे ज्यादा नुकसान होगा और उनके अस्तित्व पर खतरा मंडराएगा।

क्या इन सुधारों के बाद बैंकों का निजीकरण हो सकता है?

हाँ, यह एक संभावित अगला कदम है। एक बार जब बैंक बड़े और स्थिर हो जाते हैं, तो सरकार के पास उन्हें निजी हाथों में बेचने का एक मजबूत तर्क होगा ताकि राजकोषीय घाटा कम किया जा सके।

PSB सुधारों का आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा?

अल्पकालिक स्थिरता मिलेगी, लेकिन बड़े बैंकों के केंद्रीकरण के कारण स्थानीय स्तर पर ऋण वितरण और मानवीय पहुंच (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) कम हो सकती है।