भारत में 'मेड इन इंडिया' गैजेट्स 2025: सरकार का सपना या उपभोक्ताओं का धोखा? अनकहा सच

2025 में 'मेड इन इंडिया गैजेट्स' की बाढ़ आने वाली है, लेकिन क्या यह आत्मनिर्भरता है या सिर्फ असेंबली लाइन का खेल? विश्लेषण यहाँ।
मुख्य बिंदु
- •वर्तमान 'मेड इन इंडिया' उत्पादन मुख्य रूप से असेंबली है, न कि मौलिक घटक निर्माण।
- •PLI योजना से MNCs को अधिक लाभ मिल रहा है, जबकि उपभोक्ता नवाचार में पिछड़ सकते हैं।
- •2026 तक गुणवत्ता संबंधी शिकायतें बढ़ सकती हैं क्योंकि ध्यान केवल स्थानीयकरण पर है, नवाचार पर नहीं।
- •असली सफलता चिप डिजाइन और फैब क्षमता विकसित करने में निहित है।
भारत में 'मेड इन इंडिया' गैजेट्स 2025: सरकार का सपना या उपभोक्ताओं का धोखा? अनकहा सच
हर तरफ शोर है: 'मेड इन इंडिया गैजेट्स 2025' एक नया तकनीकी युग शुरू करने वाले हैं। सरकार इसे आत्मनिर्भर भारत की जीत बता रही है, और मीडिया इसे राष्ट्रीय गौरव के रूप में पेश कर रहा है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, हमें रुककर पूछना होगा: क्या यह वास्तव में एक तकनीकी क्रांति है, या केवल चीन से आयातित कंपोनेंट्स को भारत में जोड़कर 'असेंबल इन इंडिया' का नया नामकरण किया गया है? यह कहानी केवल चिप्स और सर्किट बोर्ड की नहीं है; यह भू-राजनीति, छिपी हुई सब्सिडी और भारतीय उपभोक्ता के भविष्य की है।
असली खेल: 'असेंबल इन इंडिया' बनाम 'डिजाइन इन इंडिया'
जब हम 'मेड इन इंडिया' की बात करते हैं, तो हमें इसकी परिभाषा को समझना होगा। वर्तमान परिदृश्य में, अधिकांश तथाकथित 'भारतीय' स्मार्टफोन या लैपटॉप अभी भी डिस्प्ले, मेमोरी चिप्स और प्रोसेसर के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर हैं। असल चुनौती घटक निर्माण (Component Manufacturing) में है, न कि अंतिम उत्पाद को जोड़ने में। यह रणनीति, जिसे अक्सर 'PLI स्कीम' (Production Linked Incentive) के तहत बढ़ावा दिया जाता है, शुरुआती चरण के लिए अच्छी है। यह स्थानीय रोज़गार पैदा करती है और बुनियादी विनिर्माण क्षमता बनाती है। लेकिन असली जीत तब होगी जब भारत सेमीकंडक्टर फैब्स (Semiconductor Fabs) और उन्नत लिथोग्राफी में निवेश करेगा। तब तक, हम केवल एक कुशल असेंबली लाइन बने रहेंगे, जो वैश्विक दिग्गजों की कठपुतली है। यह 'तकनीकी संप्रभुता' नहीं है, यह 'विनिर्माण निर्भरता' का एक नया रूप है।
कौन जीतता है और कौन हारता है?
जीतने वाले स्पष्ट हैं: वे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) जिन्हें भारत में उत्पादन के लिए भारी कर प्रोत्साहन और सब्सिडी मिल रही है। वे सस्ते श्रम और सरकारी समर्थन का लाभ उठा रहे हैं, जबकि जोखिम सरकार उठा रही है। हारने वाले कौन हैं? भारतीय उपभोक्ता। उन्हें शायद थोड़े सस्ते उत्पाद मिलें, लेकिन नवाचार (Innovation) की कमी होगी। इसके अलावा, उच्च गुणवत्ता वाले 'मेक इन इंडिया' ब्रांडों को स्थापित होने में संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि वे MNCs के विशाल मार्केटिंग बजट का मुकाबला नहीं कर सकते। यह एक ऐसा बाजार तैयार कर रहा है जहाँ प्रतिस्पर्धा कम होगी और नियंत्रण कुछ चुनिंदा हाथों में सिमट जाएगा।
भविष्यवाणी: 2026 तक 'डिजिटल डिवाइड' और 'क्वालिटी क्राइसिस'
मेरा मानना है कि 2025 के अंत तक, हम एक 'क्वालिटी क्राइसिस' देखेंगे। शुरुआती उत्साह के बाद, उपभोक्ता पाएंगे कि 'मेड इन इंडिया' लेबल वाले उत्पाद उतने टिकाऊ या उन्नत नहीं हैं जितने उनके चीनी या कोरियाई समकक्ष। इसके समानांतर, एक 'डिजिटल डिवाइड' बढ़ेगा। अमीर वर्ग प्रीमियम वैश्विक ब्रांडों पर कायम रहेगा, जबकि आम जनता को सरकारी प्रोत्साहन के कारण थोड़े बेहतर दिखने वाले लेकिन तकनीकी रूप से सीमित स्थानीय उत्पादों को अपनाना पड़ेगा। असली सफलता तब होगी जब कोई भारतीय स्टार्टअप वैश्विक स्तर पर चिप डिजाइन करेगा—न कि केवल भारत के लिए फोन बनाएगा।
हमें यह समझना होगा कि वास्तविक तकनीकी शक्ति डिजाइन में निहित है, न कि केवल अंतिम उत्पाद पर मुहर लगाने में। भारत को अपनी महत्वाकांक्षाओं को 'असेंबली' से उठाकर 'आविष्कार' पर केंद्रित करना होगा।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या 'मेड इन इंडिया गैजेट्स 2025' वास्तव में चीन पर निर्भरता कम करेगा (What is the dependency of Made in India Gadgets 2025 on China)? (Keyword: भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स)
PLI स्कीम का मुख्य उद्देश्य क्या है और क्या यह सफल हो रही है? (Keyword: मेड इन इंडिया गैजेट्स)
क्या ये गैजेट्स वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होंगे? (Keyword: आत्मनिर्भर भारत)
भारत को वास्तविक तकनीकी संप्रभुता हासिल करने के लिए क्या करना होगा?
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