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होम/स्वास्थ्य और नीति विश्लेषणBy Arjun Mehta Shaurya Bhatia

मानसिक स्वास्थ्य का सच: WHO की 'समावेशन' रणनीति के पीछे छिपा असली खेल क्या है?

मानसिक स्वास्थ्य का सच: WHO की 'समावेशन' रणनीति के पीछे छिपा असली खेल क्या है?

WHO सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य की बात कर रहा है, पर क्या यह सिर्फ कागज़ी कार्रवाई है? जानिए 'मानसिक स्वास्थ्य सेवा' के भविष्य का स्याह पक्ष।

मुख्य बिंदु

  • WHO की सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य पहल विशेषज्ञता के क्षरण का जोखिम उठाती है।
  • यह नीति आर्थिक रूप से सरकारों को लाभ पहुँचा सकती है लेकिन मरीज़ों की गुणवत्तापूर्ण देखभाल को खतरे में डाल सकती है।
  • गंभीर मानसिक बीमारियों के लिए सामुदायिक मॉडल अपर्याप्त है; विशेषज्ञ संस्थानों की आवश्यकता बनी रहेगी।
  • असली समावेशन तभी होगा जब फंडिंग और प्रशिक्षित पेशेवर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराए जाएँगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

WHO की 'अलगाव से समावेशन' रणनीति का मुख्य उद्देश्य क्या है?

इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बड़े, अलग-थलग अस्पतालों से निकालकर स्थानीय समुदायों और घरों के करीब लाना है, ताकि सामाजिक समर्थन बढ़ सके और कलंक कम हो सके।

भारत में सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

सबसे बड़ी चुनौती प्रशिक्षित मानव संसाधन (मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक) की भारी कमी और गंभीर मामलों के लिए आवश्यक उच्च-स्तरीय दवाइयों तथा उपकरणों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना है।

क्या सामुदायिक देखभाल गंभीर मानसिक बीमारियों का इलाज कर सकती है?

सामुदायिक देखभाल हल्के से मध्यम मामलों के लिए प्रभावी हो सकती है, लेकिन सिज़ोफ्रेनिया या गंभीर बाइपोलर डिसऑर्डर जैसे मामलों के लिए निरंतर विशेषज्ञ चिकित्सा पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है, जो अक्सर सामुदायिक केंद्रों पर उपलब्ध नहीं होता।

मानसिक स्वास्थ्य पर वैश्विक खर्च क्यों अपर्याप्त है?

ऐतिहासिक रूप से, मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य जितना महत्व नहीं दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप फंडिंग कम रही है और यह अक्सर स्वास्थ्य बजट के 2% से भी कम रहता है, जैसा कि कई वैश्विक आंकड़ों से पता चलता है।