बेरोज़गारी दर में गिरावट: जश्न या धोखा?
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि नवंबर में देश की बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate) गिरकर 4.7% पर आ गई है, जो अप्रैल के बाद का सबसे निचला स्तर है। मीडिया इसे 'आर्थिक सुधार' की कहानी बता रहा है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के तौर पर, हमें पूछना होगा: **यह आंकड़ा किसे खुश कर रहा है और किसे चुप करा रहा है?**
सतह पर, यह एक शानदार उपलब्धि लगती है। लेकिन इस 4.7% के पीछे की कहानी उतनी चमकदार नहीं है जितनी दिखाई जा रही है। यह केवल उन लोगों की गिनती है जो सक्रिय रूप से नौकरी ढूंढ रहे हैं। असली सवाल यह है: क्या वे नौकरियां गुणवत्तापूर्ण हैं? और इससे भी महत्वपूर्ण, क्या वे नौकरियां वास्तव में मौजूद हैं, या लोग हताशा में 'काम की तलाश' छोड़ चुके हैं?
असली खेल: श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) का पतन
जिस चीज़ पर सरकार चुप्पी साध रही है, वह है श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate - LFPR)। जब LFPR गिरता है, तो इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग काम की तलाश करना ही छोड़ चुके हैं। वे हताश हो चुके हैं या उन्हें लगता है कि बाजार में उनके लिए कुछ नहीं है। जब कोई काम ढूंढना बंद कर देता है, तो वह आधिकारिक तौर पर 'बेरोज़गार' की श्रेणी से बाहर हो जाता है। यह जादू है, अर्थशास्त्र नहीं।
यह गिरावट बताती है कि हमारी अर्थव्यवस्था में औपचारिक रोज़गार (Formal Employment) की वृद्धि धीमी है। बड़े पैमाने पर जो रोज़गार बन रहे हैं, वे अस्थायी, कम वेतन वाले, या गिग इकॉनमी (Gig Economy) के अस्थिर हिस्से हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक धीमी गति का ज़हर है। उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के लिए आकर्षक करियर के अवसरों की कमी बनी हुई है।
विश्लेषण: कौन जीत रहा है, कौन हार रहा है?
- जीतने वाले: सरकार (आंकड़ों के आधार पर राजनीतिक लाभ) और वे कंपनियाँ जो कम वेतन पर बड़ी संख्या में अस्थायी श्रमिक पा रही हैं।
- हारने वाले: मध्यम वर्ग, उच्च शिक्षित युवा, और वे परिवार जो स्थायी आय की तलाश में हैं। वे बाजार से बाहर हो रहे हैं।
भविष्य की भविष्यवाणी: यह 'डेटा डाइवर्शन' कब तक चलेगा?
मेरा मानना है कि यह 4.7% का आंकड़ा अल्पकालिक है। जैसे ही आर्थिक चक्र में कोई मामूली गिरावट आएगी, हताश श्रमिक वापस बाजार में प्रवेश करेंगे, और बेरोज़गारी दर तेज़ी से बढ़ेगी। सरकार को अब 'नौकरी' की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना होगा, न कि केवल संख्या पर। यदि हम उच्च मूल्य वर्धित क्षेत्रों (High Value-Added Sectors) में निवेश नहीं करते हैं, तो यह अस्थायी राहत एक बड़े संकट का अग्रदूत बनेगी।
अगले 12 महीनों में, यदि LFPR स्थिर नहीं हुआ, तो हम देखेंगे कि उपभोक्ता खर्च (Consumer Spending) दबाव में आएगा, क्योंकि लोगों के पास भविष्य के लिए बचत करने लायक आय नहीं होगी। यह एक 'जॉबलेस ग्रोथ' का क्लासिक मामला है, जिसे आंकड़ों की हेराफेरी से छिपाया जा रहा है।
यह समय है कि हम सिर्फ़ सरकारी प्रेस रिलीज़ न पढ़ें, बल्कि जमीनी हकीकत को समझें। वास्तविक आर्थिक स्वास्थ्य जनसंख्या के काम करने की इच्छा और क्षमता पर निर्भर करता है, न कि उन लोगों पर जो उम्मीद छोड़ चुके हैं।