शिक्षा क्रांति या शक्ति का हस्तांतरण? राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के 5 साल का कठोर विश्लेषण
पांच साल पहले, भारत ने एक महत्वाकांक्षी वादा किया था: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020। इसे भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव बताया गया, जो रटने की संस्कृति को खत्म कर, रचनात्मकता और बहु-विषयक दृष्टिकोण को बढ़ावा देगी। लेकिन आज, जब हम NEP 2020 की पांचवीं वर्षगांठ के करीब हैं, तो सवाल यह उठता है: क्या यह वास्तव में आम छात्र के लिए गेम-चेंजर है, या यह केवल नौकरशाही की एक और बड़ी कवायद है? हमारा विश्लेषण बताता है कि असली खेल कहीं ज़्यादा जटिल है।
अनकहा सच: केंद्रीकरण बनाम विकेंद्रीकरण का भ्रम
NEP का मूल मंत्र विकेंद्रीकरण और स्थानीय भाषाओं पर जोर देना था। लेकिन ज़मीनी हकीकत देखें तो, एक बड़ा विरोधाभास उभरता है। नीति का निर्माण केंद्र में हुआ, और इसके कार्यान्वयन के लिए भारी फंडिंग और दिशानिर्देश भी केंद्र से आ रहे हैं। यह एक ऐसा विरोधाभास है जिस पर कम बात होती है। यदि शिक्षा वास्तव में स्थानीय होनी थी, तो राज्यों को अधिक स्वायत्तता क्यों नहीं मिली? असल में, यह नीति अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा के राष्ट्रीय नियंत्रण को मजबूत करने का एक तरीका हो सकती है, भले ही इसका उद्देश्य उल्टा बताया गया हो।
असली लाभार्थी कौन?
हर बड़ी नीति के विजेता और हारने वाले होते हैं। भारतीय शिक्षा प्रणाली में, हारने वाले वे छोटे निजी स्कूल हैं जिन्हें अचानक बुनियादी ढांचे और शिक्षक योग्यता के नए मानकों को पूरा करने का दबाव झेलना पड़ रहा है। जीतने वाले कौन हैं? वे बड़े कॉर्पोरेट संस्थान और एड-टेक कंपनियां हैं, जिन्हें NEP के तहत बहु-विषयक पाठ्यक्रमों और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए नए बाजार मिल रहे हैं। नीति 'शिक्षा' को एक उपभोक्ता उत्पाद में बदलने की ओर इशारा करती है, जहां गुणवत्ता का पैमाना अब सरकारी मानकों से तय होगा, न कि स्थानीय सामुदायिक जरूरतों से। यह शिक्षा सुधार का एक पूंजीवादी चेहरा है।
गहरा विश्लेषण: '21वीं सदी के कौशल' का आर्थिक एजेंडा
NEP 2020 का एक बड़ा आकर्षण है '21वीं सदी के कौशल' पर जोर देना। यह आकर्षक लगता है, लेकिन इसका आर्थिक निहितार्थ समझना ज़रूरी है। भारत को विश्व आपूर्ति श्रृंखला में एक 'कौशल केंद्र' के रूप में स्थापित करने की वैश्विक मांग के साथ यह नीति पूरी तरह संरेखित है। यह नीति छात्रों को अकादमिक ज्ञान से ज़्यादा रोज़गार-योग्य बनाने पर केंद्रित है। यह एक आर्थिक अनिवार्यता हो सकती है, लेकिन क्या हम ऐसे नागरिक तैयार कर रहे हैं जो केवल मशीन के पुर्ज़े हों, या विचारशील नागरिक? मौलिक विज्ञान और मानविकी की उपेक्षा का जोखिम बहुत बड़ा है।
भविष्य की भविष्यवाणी: 'दो स्तरीय' शिक्षा व्यवस्था का उदय
मेरा मानना है कि अगले पांच वर्षों में, NEP के कारण भारत में एक स्पष्ट 'दो-स्तरीय' शिक्षा प्रणाली का उदय होगा। एक तरफ, शीर्ष निजी संस्थान और IIT/IIM जैसे केंद्रीय संस्थान NEP के लचीलेपन का उपयोग करके विश्व स्तरीय, अत्यधिक विशिष्ट और महंगे कार्यक्रम चलाएंगे। दूसरी तरफ, सरकारी और छोटे निजी स्कूल उच्च विनियमन के बोझ तले दबे रहेंगे, जिससे गुणवत्ता में असमानता और बढ़ेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जिसे समानता के लिए लाया गया था, अनजाने में असमानता को संस्थागत रूप दे सकती है, जब तक कि फंडिंग मॉडल में भारी बदलाव न किया जाए।
आगे का रास्ता: केवल कागज़ नहीं, ज़मीनी बदलाव चाहिए
NEP एक बेहतरीन दस्तावेज़ है, लेकिन दस्तावेज़ और ज़मीनी हकीकत में भारी अंतर है। शिक्षकों के प्रशिक्षण, स्थानीय भाषा में गुणवत्तापूर्ण सामग्री निर्माण, और सबसे महत्वपूर्ण, कार्यान्वयन की निगरानी में भारी निवेश की आवश्यकता है। यदि सरकार इन संरचनात्मक चुनौतियों को नज़रअंदाज़ करती रही, तो NEP सिर्फ एक और उत्कृष्ट सरकारी रिपोर्ट बनकर रह जाएगी।
बाहरी संदर्भ: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा सुधारों की चुनौतियों को समझने के लिए OECD की रिपोर्टें प्रासंगिक हैं। (उदाहरण के लिए, OECD की शिक्षा रिपोर्ट)।