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अफ्रीका का जलवायु संकट: कौन कमा रहा है अरबों? अनकहा सच!

By Aditya Patel • December 21, 2025

अफ्रीका का जलवायु संकट: कौन कमा रहा है अरबों? अनकहा सच!

जब दुनिया 'जलवायु परिवर्तन' (Climate Change) की बात करती है, तो ध्यान अक्सर पश्चिमी देशों के उत्सर्जन पर जाता है। लेकिन असली नाटक अफ्रीकी महाद्वीप पर घट रहा है। यह सिर्फ सूखा और बाढ़ की कहानी नहीं है; यह संसाधन नियंत्रण, ऋण जाल और नए प्रकार के उपनिवेशवाद की कहानी है। अफ्रीका, जो ऐतिहासिक रूप से सबसे कम कार्बन उत्सर्जित करता है, आज इस संकट का सबसे बड़ा शिकार है। लेकिन इस त्रासदी में, कुछ अदृश्य खिलाड़ी चुपचाप अपनी तिजोरियां भर रहे हैं।

दिखावटी दान और छिपा हुआ एजेंडा

CNBC अफ्रीका की रिपोर्टें अक्सर विकासशील देशों के लिए 'सहायता' और 'अनुकूलन वित्तपोषण' (Adaptation Finance) पर ध्यान केंद्रित करती हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत भयावह है। पश्चिमी देश और बहुपक्षीय संस्थान अरबों डॉलर की फंडिंग का वादा करते हैं, लेकिन यह पैसा अक्सर उन परियोजनाओं में जाता है जो अफ्रीकी संप्रभुता को कम करती हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु अनुकूलन के नाम पर दिए गए 'ऋण' असल में नए कर्ज हैं। अफ्रीका जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उधार ले रहा है, जबकि विकसित देशों को ऐतिहासिक रूप से उत्सर्जन के लिए भुगतान करना चाहिए। यह एक नैतिक विफलता है।

मुख्य कीवर्ड घनत्व जांच: जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर लगातार ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, लेकिन 'अफ्रीकी जलवायु संकट' (African Climate Crisis) की बारीकियों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

असली विजेता: ग्रीन एनर्जी लॉबी और कार्बन क्रेडिट माफिया

असली जीत उस लॉबी को हो रही है जो 'कार्बन ऑफसेटिंग' (Carbon Offsetting) के नाम पर अफ्रीका की विशाल भूमि को खरीद रही है। कार्बन क्रेडिट बाजार एक खरब डॉलर का उद्योग बनने की ओर अग्रसर है। कंपनियां अमेरिका या यूरोप में उत्सर्जन कम करने के बजाय, अफ्रीका के जंगलों को 'कार्बन सिंक' के रूप में प्रमाणित करवाकर क्रेडिट खरीद रही हैं।

यह क्यों महत्वपूर्ण है? इसका मतलब है कि स्थानीय समुदायों को उनकी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है ताकि विदेशी निगमों को उत्सर्जन का प्रमाण पत्र मिल सके। यह नया 'भूमि अधिग्रहण' है, जिसे 'हरित उपनिवेशवाद' (Green Colonialism) कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। रॉयटर्स की रिपोर्टें अक्सर इस जटिल वित्तीय तंत्र पर पर्दा डालती हैं।

गहराई से विश्लेषण: जल और खाद्य सुरक्षा का हथियार

अफ्रीका के लिए सबसे बड़ा खतरा सिर्फ तापमान बढ़ना नहीं है, बल्कि जल संसाधनों का नियंत्रण है। नील नदी, नाइजर नदी और कांगो बेसिन जैसी महत्वपूर्ण जल प्रणालियों पर बढ़ता दबाव क्षेत्रीय संघर्षों को जन्म देगा। जो देश इन संसाधनों को नियंत्रित करेंगे—चाहे वह बांधों के माध्यम से हो या सिंचाई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से—वे अफ्रीका की खाद्य सुरक्षा (Food Security) को नियंत्रित करेंगे। यह एक स्पष्ट भू-राजनीतिक लाभ है जो पश्चिमी शक्तियों और चीन जैसे उभरते खिलाड़ियों को मिलता है जो बुनियादी ढांचे में भारी निवेश कर रहे हैं।

अफ्रीकी जलवायु संकट अब केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं रहा; यह सत्ता का हस्तांतरण है।

आगे क्या होगा? भविष्य की भविष्यवाणी

अगले दशक में, हम देखेंगे कि अफ्रीका दो भागों में विभाजित हो जाएगा: 'ग्रीन इकोनॉमी ज़ोन' और 'क्लाइमेट फेलियर ज़ोन'। जिन देशों में बड़े पैमाने पर लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्व हैं (जो हरित ऊर्जा क्रांति के लिए आवश्यक हैं), वे पश्चिमी देशों और चीन के बीच एक नए शीत युद्ध का केंद्र बनेंगे। इन संसाधनों पर नियंत्रण के लिए स्थानीय सरकारों पर भारी दबाव डाला जाएगा, जिससे भ्रष्टाचार और अस्थिरता बढ़ेगी। जो देश इन संसाधनों पर संप्रभु नियंत्रण बनाए रखने में विफल रहेंगे, वे केवल पश्चिमी दान पर निर्भर रहेंगे, जिससे उनकी आर्थिक गुलामी मजबूत होगी।

अफ्रीका को अपनी जलवायु रणनीति को 'अनुकूलन' से बदलकर 'संप्रभुता और नियंत्रण' पर केंद्रित करना होगा। यह एक कठिन रास्ता है।