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क्रिप्टो ATM: वह काला सच जिसे रिटेलर्स छिपा रहे हैं, जब स्कैमर्स कर रहे हैं करोड़ों की कमाई

By Aadhya Singh • December 20, 2025

क्रिप्टो ATM: वह काला सच जिसे रिटेलर्स छिपा रहे हैं, जब स्कैमर्स कर रहे हैं करोड़ों की कमाई

क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया हमेशा से ही एक दोधारी तलवार रही है। एक तरफ जहाँ यह वित्तीय स्वतंत्रता का वादा करती है, वहीं दूसरी तरफ यह अपराधियों के लिए एक नया स्वर्ग बन गई है। हाल ही में ICIJ की रिपोर्ट ने एक ऐसे ही गहरे गड्ढे को उजागर किया है: खुदरा स्टोर (रिटेलर्स) जो क्रिप्टो एटीएम लगाकर मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि इन्हीं मशीनों का इस्तेमाल करके बड़े पैमाने पर क्रिप्टो स्कैम हो रहे हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी समस्या नहीं है; यह पूंजीवाद की नैतिक विफलता का एक शर्मनाक प्रदर्शन है।

द अनस्पोकन ट्रुथ: सुविधा बनाम सुरक्षा

आम आदमी के लिए, क्रिप्टो एटीएम एक आसान रास्ता लगता है—नकद को तुरंत डिजिटल संपत्ति में बदलने का। लेकिन इस सुविधा के पीछे की स्याह सच्चाई यह है कि ये मशीनें लगभग पूरी तरह से अनियंत्रित होती हैं। अधिकांश पारंपरिक बैंकों के विपरीत, जहाँ बड़े लेन-देन पर सख्त जाँच होती है, क्रिप्टो एटीएम अक्सर न्यूनतम KYC (अपने ग्राहक को जानें) प्रक्रियाओं के साथ काम करते हैं।

असली विजेता कौन है? यह स्पष्ट है: स्कैमर और वे रिटेलर्स जो प्रति लेनदेन 10% से 20% तक का भारी कमीशन कमा रहे हैं। वे जानते हैं कि उनके ग्राहक, विशेष रूप से घोटाले के शिकार हुए बुजुर्ग या भोले-भाले लोग, तत्काल भुगतान करने के दबाव में हैं। रिटेलर्स इन मशीनों को 'निष्क्रिय आय' के स्रोत के रूप में देखते हैं, भले ही वे जानते हों कि ये मशीनें अक्सर धोखाधड़ी के अंतिम बिंदु (The Final Mile of Fraud) बन रही हैं। यह नैतिक रूप से दिवालियापन है। इन खुदरा विक्रेताओं को 'सुविधा प्रदाता' कहना बंद करें; वे अब डिजिटल अपराध के अनजाने में भागीदार हैं।

गहन विश्लेषण: यह क्यों मायने रखता है?

क्रिप्टोकरेंसी का मूल वादा विकेंद्रीकरण था—बैंकों और सरकारों को दरकिनार करना। लेकिन ये एटीएम उस वादे का मज़ाक उड़ाते हैं। वे केंद्रीकृत शक्ति को एक स्थानीय सुविधा स्टोर के मालिक के हाथ में सौंपते हैं, जो शायद ही कभी मनी लॉन्ड्रिंग या धोखाधड़ी को समझने के लिए प्रशिक्षित होता है।

यह घटना दर्शाती है कि कैसे एक विघटनकारी तकनीक (डिस्ट्रप्टिव टेक्नोलॉजी) को तेजी से अपनाने के लिए नियामक ढाँचा (Regulatory Framework) पीछे छूट जाता है। जब कोई बुजुर्ग व्यक्ति अपनी जीवन भर की बचत एक स्कैमर को भेजता है, और पैसा एक गैस स्टेशन के कोने में लगे एटीएम से गायब हो जाता है, तो यह सिर्फ व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है। यह उस पूरे क्रिप्टो इकोसिस्टम पर सवाल उठाता है जो 'अनामता' (Anonymity) को बढ़ावा देता है, जबकि वास्तविकता यह है कि यह केवल अपराधियों को गुमनामी प्रदान करता है। आप इन लेन-देन को ट्रैक कर सकते हैं, लेकिन जब तक रिटेलर्स कमीशन लेते रहेंगे, तब तक कोई भी इसे रोकने की परवाह नहीं करेगा। अधिक जानकारी के लिए, आप रॉयटर्स की वित्तीय रिपोर्टिंग देख सकते हैं।

भविष्य की भविष्यवाणी: हम कहाँ जा रहे हैं?

मेरी बोल्ड भविष्यवाणी यह है: नियामक कार्रवाई अपरिहार्य है, लेकिन यह रिटेलर्स को नहीं, बल्कि ऑपरेटरों को निशाना बनाएगी। सरकारें अंततः इन एटीएम ऑपरेटरों पर भारी जुर्माना लगाएंगी, जिससे छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए इन्हें रखना आर्थिक रूप से अव्यवहारिक हो जाएगा। हम अगले 18 महीनों में अमेरिका और यूरोप में कई प्रमुख क्रिप्टो एटीएम कंपनियों के दिवालिया होने या बड़े पैमाने पर विलय देखने की संभावना रखते हैं। हालाँकि, यह स्कैमर्स को नहीं रोकेगा; वे बस पीयर-टू-पीयर (P2P) ट्रांसफर या डार्कनेट चैनलों की ओर चले जाएँगे। स्थानीय स्तर पर, सुविधा स्टोरों पर दबाव बढ़ेगा कि वे इन मशीनों को हटा दें, शायद स्थानीय लाइसेंसिंग शुल्क लगाकर। अधिक जानने के लिए, वित्तीय विनियमन पर विकिपीडिया लेख देखें।

यह लड़ाई सुविधा बनाम जवाबदेही की है। और इस दौड़ में, आम आदमी हमेशा की तरह हार रहा है।