WorldNews.Forum

जलवायु परिवर्तन का अनदेखा सच: क्यों बढ़ रही है दिन-रात की तापमान की 'अराजकता'?

By Shaurya Bhatia • December 20, 2025

जलवायु परिवर्तन का अनदेखा सच: क्यों बढ़ रही है दिन-रात की तापमान की 'अराजकता'?

दुनिया इस बात पर बहस कर रही है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण गर्मी कितनी बढ़ेगी। लेकिन नेचर (Nature) की एक नई रिपोर्ट हमें एक खतरनाक और कम चर्चित पहलू की ओर इशारा करती है: दिन-रात के तापमान में चरम भिन्नता। यह सिर्फ औसत तापमान बढ़ने की कहानी नहीं है; यह उस अराजकता की कहानी है जो हमारे कृषि चक्रों और दैनिक जीवन को अस्त-व्यस्त करने वाली है। हम वैश्विक तापमान वृद्धि पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लेकिन असल खतरा 'तापमान की अस्थिरता' है।

वह 'अराजकता' जिसे अनदेखा किया जा रहा है

वैज्ञानिक प्रमाण स्पष्ट हैं: भूमध्य रेखा के करीब के क्षेत्रों (मध्य-निम्न अक्षांश) में, दिन और रात के बीच तापमान का अंतर (Diurnal Temperature Range - DTR) नाटकीय रूप से बदल रहा है। इसका मतलब है कि एक ही दिन में, आपको भीषण गर्मी के तुरंत बाद अचानक ठंड का अनुभव हो सकता है। यह पैटर्न पारंपरिक जलवायु परिवर्तन मॉडलों में अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता था, जो मुख्य रूप से अधिकतम तापमान पर केंद्रित थे।

विश्लेषण: यह क्यों मायने रखता है?

यह अस्थिरता सिर्फ असुविधा नहीं है; यह आर्थिक विनाश का अग्रदूत है।

  1. कृषि पर दोहरा प्रहार: फसलें एक स्थिर मौसमी पैटर्न के लिए अनुकूलित होती हैं। जब रातें अप्रत्याशित रूप से ठंडी हो जाती हैं या दिन अचानक गर्म हो जाते हैं, तो पौधों की फूल आने की प्रक्रिया (Flowering) बाधित होती है। यह विशेष रूप से भारत जैसे मानसून-निर्भर कृषि प्रधान देशों के लिए घातक है। किसानों को फसल बीमा योजनाओं पर निर्भरता बढ़ानी होगी, जिससे सरकारी खजाने पर दबाव पड़ेगा।
  2. बुनियादी ढांचे की विफलता: सड़कें, पुल और बिजली ग्रिड दिन-रात के चरम तापमान परिवर्तनों को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं। सामग्री का विस्तार और संकुचन (Expansion and Contraction) तेजी से होता है, जिससे समय से पहले उनका क्षरण होता है। यह सिर्फ मरम्मत की लागत नहीं बढ़ाता, बल्कि महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को भी खतरे में डालता है।

विपरीत दृष्टिकोण: कौन जीत रहा है?

जब हर कोई विनाश की बात कर रहा है, तो हमें पूछना चाहिए: इस अस्थिरता से किसे लाभ हो रहा है? संक्षेप में, कोई नहीं। लेकिन कुछ उद्योग इस अस्थिरता का फायदा उठा रहे हैं। बीमा कंपनियाँ, जो जोखिम का आकलन करती हैं, अपने प्रीमियम बढ़ाएँगी, जिससे आम आदमी पर बोझ बढ़ेगा। इसके अलावा, अत्यधिक तापमान परिवर्तन से निपटने के लिए ऊर्जा की मांग (हीटिंग और कूलिंग दोनों के लिए) बढ़ जाती है, जिससे ऊर्जा कंपनियों को रिकॉर्ड लाभ होता है, भले ही वे नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश कर रहे हों या नहीं। यह एक ऐसा बाजार है जो संकट पर पनपता है।

हमें वैश्विक तापमान वृद्धि के बजाय 'तापमान के चरम उतार-चढ़ाव' को मुख्य चिंता का विषय बनाना होगा। यह एक ऐसा संकट है जिसके लिए हमारे स्वास्थ्य और आर्थिक प्रणालियाँ तैयार नहीं हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए, आप जलवायु विज्ञान पर प्रतिष्ठित स्रोतों जैसे नासा (NASA) के जलवायु डेटा को देख सकते हैं।

भविष्य का अनुमान: 'अनिश्चितता का युग'

मेरा बोल्ड अनुमान यह है कि अगले दशक के भीतर, कई मध्य-निम्न अक्षांशीय देशों में पारंपरिक मौसमी कैलेंडर (जैसे रबी और खरीफ फसलें) अप्रचलित हो जाएंगे। सरकारें मौसम पूर्वानुमान पर निर्भर रहने के बजाय, 'तापमान प्रबंधन' के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (जैसे बड़े भूमिगत शीतलन केंद्र या उन्नत जल प्रबंधन प्रणालियाँ) में निवेश करने के लिए मजबूर होंगी। यह एक महंगा, और संभवतः असफल, प्रयास होगा। जलवायु परिवर्तन अब एक 'धीमा संकट' नहीं है; यह 'अचानक झटके' का दौर है।

मुख्य निष्कर्ष (TL;DR)