दो लाख स्टार्टअप्स: भारत का 'इंद्रजाल' या सिर्फ कागज़ी घोड़ा? असली विजेता कौन है?
भारत ने एक और मनोवैज्ञानिक बैरियर तोड़ दिया है: **दो लाख मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स**। यह आंकड़ा, जिसे अक्सर 'स्टार्टअप इंडिया' की सफलता का प्रमाण माना जाता है, सतही तौर पर शानदार दिखता है। लेकिन एक खोजी पत्रकार के रूप में, हमारा काम संख्याओं के पीछे छिपे सच को उजागर करना है। क्या ये दो लाख कंपनियाँ वास्तव में नवाचार (Innovation) की धुरी हैं, या ये केवल सरकारी प्रोत्साहन और टैक्स छूट का लाभ उठाने के लिए बनी कागज़ी संस्थाएं हैं?
यह लेख सिर्फ संख्या का जश्न नहीं मनाएगा; यह विश्लेषण करेगा कि इस 'स्टार्टअप बूम' का असली अर्थ क्या है, और इस पूरी कवायद के अनकहे शिकार कौन हैं।
द अनस्पोकन ट्रुथ: प्रोत्साहन का जाल
जब हम **भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम** की बात करते हैं, तो हमें समझना होगा कि इस पहचान का मुख्य आकर्षण क्या है: कर लाभ (Tax Benefits) और सरकारी समर्थन। कई कंपनियाँ, विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में, वास्तविक उत्पाद या स्केलेबल बिजनेस मॉडल बनाने के बजाय, 'मान्यता प्राप्त स्टार्टअप' का तमगा हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। यह एक प्रकार की 'सरकारी सब्सिडी-आधारित उद्यमशीलता' है। सवाल यह है: क्या ये कंपनियाँ वास्तव में रोजगार सृजित कर रही हैं, या ये केवल उन संस्थापकों को जीवित रख रही हैं जो बाजार की कठोर प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर सकते?
असली विजेता शायद वे नहीं हैं जिन्हें हम सोचते हैं। बड़े वेंचर कैपिटल फंड्स (VCs) और कुछ चुनिंदा 'यूनिकॉर्न्स' निश्चित रूप से जीत रहे हैं। लेकिन लाखों छोटे संस्थापकों के लिए, यह एक उच्च जोखिम वाला जुआ है। **स्टार्टअप फंडिंग** की स्थिति नाजुक है। जैसे ही सरकारी प्रोत्साहन की खिड़की बंद होती है, या फंडिंग का माहौल बदलता है, इन दो लाख में से कितनी कंपनियाँ जीवित रह पाएंगी? मेरा मानना है कि यह संख्या 80% तक कम हो सकती है, क्योंकि उनके पास टिकाऊ (Sustainable) राजस्व मॉडल का अभाव है। यह एक विशाल 'फंडिंग पर निर्भरता' का संकट है।
गहरा विश्लेषण: 'मेक इन इंडिया' बनाम 'पेपर इन इंडिया'
सरकार का इरादा स्पष्ट है: भारत को वैश्विक नवाचार केंद्र बनाना। लेकिन आंकड़ों की चमक के पीछे, 'उत्पादन' (Production) और 'सेवा' (Service) का अंतर धुंधला हो गया है। कई मान्यता प्राप्त संस्थाएं केवल 'सेवा प्रदाता' हैं, जो बड़े कॉर्पोरेट्स के लिए आउटसोर्सिंग का काम करती हैं, न कि मौलिक तकनीक विकसित करती हैं। अगर हम वैश्विक मानकों पर देखें, तो भारत अभी भी गहरी तकनीक (Deep Tech) और विनिर्माण (Manufacturing) नवाचार में पीछे है। यह बूम मुख्य रूप से फिनटेक (FinTech) और ई-कॉमर्स (E-commerce) के हल्के मॉडलों पर आधारित है। यह एक विशाल बाजार है, लेकिन यह आवश्यक रूप से एक गहरा तकनीकी आधार नहीं बनाता। इसे समझने के लिए, आप वैश्विक नवाचार सूचकांकों (जैसे WIPO Global Innovation Index) पर भारत की स्थिति देख सकते हैं।
भविष्य की भविष्यवाणी: द ग्रेट कंसोलिडेशन
अगले तीन वर्षों में, हम एक 'महान समेकन' (The Great Consolidation) देखेंगे। सरकार मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या पर ध्यान केंद्रित करना बंद कर देगी और वास्तविक राजस्व (Actual Revenue) और लाभप्रदता (Profitability) पर जोर देगी। जिन स्टार्टअप्स के पास ठोस **तकनीकी समाधान** नहीं हैं, वे बाजार से बाहर हो जाएंगे या बड़ी कंपनियों द्वारा सस्ते में अधिग्रहित (Acquired) कर लिए जाएंगे। यह छंटनी दर्दनाक होगी, लेकिन यह **भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम** के लिए आवश्यक भी है। केवल वे ही बचेंगे जो सब्सिडी के बिना भी मूल्य प्रदान कर सकते हैं। यह 'गुणवत्ता बनाम मात्रा' की लड़ाई होगी।
यह आंकड़ा एक चेतावनी है, जश्न नहीं। यह दर्शाता है कि हमने उद्यमशीलता के लिए जमीन तैयार कर दी है, लेकिन अब असली फसल काटने का समय है, और उस फसल में कई खरपतवार भी होंगे।