स्वास्थ्य क्षेत्र का स्याह सच: प्रगति के पीछे छिपी वो कड़वी हकीकत जिसे कोई नहीं बताएगा
भारत का स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य एक विरोधाभास है। एक तरफ, हम तकनीकी नवाचार और नई योजनाओं की खबरें सुनते हैं, वहीं दूसरी तरफ, जमीनी हकीकत ये है कि आम आदमी के लिए गुणवत्तापूर्ण इलाज अभी भी एक सपना है। इस वर्ष हमने प्रगति और बड़े झटकों, दोनों को देखा है। लेकिन असली सवाल यह है: इस उथल-पुथल में असली विजेता कौन है? और यह तथाकथित 'प्रगति' किसे लाभ पहुँचा रही है?
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प्रगति की चमक और जमीनी हकीकत का अंधकार
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने लाखों लोगों को कवर दिया है। यह निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन यह सिर्फ एक तरफा कहानी है। दूसरी तरफ, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में डॉक्टरों की भारी कमी, दवाओं की कालाबाजारी और ग्रामीण-शहरी स्वास्थ्य असमानता एक भयावह तस्वीर पेश करती है। यह वह 'सेटबैक' है जिसे अक्सर आंकड़ों की चमक में छिपा दिया जाता है। हमारा विश्लेषण बताता है कि फोकस 'उपचार' पर अधिक है, न कि 'रोकथाम' पर। यह एक महंगी गलती है।
असली विजेता? फार्मास्युटिकल लॉबी और बड़ी कॉर्पोरेट अस्पताल श्रृंखलाएं। वे सरकारी योजनाओं से मिलने वाले राजस्व और बढ़ते निजीकरण के लाभार्थी हैं। आम नागरिक? वे अभी भी 70% स्वास्थ्य खर्च अपनी जेब से दे रहे हैं। यह स्वास्थ्य इक्विटी (Health Equity) के मामले में एक बड़ी विफलता है।
विश्लेषण: नीतियों का भ्रम और निजीकरण का एजेंडा
हमने देखा कि कुछ राज्यों ने स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में निवेश किया, जबकि अन्य राजनीतिक खींचतान में उलझे रहे। यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य नीतियां अक्सर राजनीतिक इच्छाशक्ति का शिकार हो जाती हैं, न कि जन स्वास्थ्य की आवश्यकता का। सबसे बड़ा 'फ्लैशपॉइंट' यह है कि निजीकरण की लहर इतनी तेज़ है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था हाशिए पर जा रही है। सरकारें स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने के बजाय, निजी क्षेत्र को सब्सिडी और टैक्स छूट देकर खुश कर रही हैं। यह एक खतरनाक खेल है। जब स्वास्थ्य लाभ का निजीकरण होता है, तो पहुंच का लोकतंत्रीकरण (Democratization of Access) समाप्त हो जाता है।
उदाहरण के लिए, डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (ABDM) शानदार है, लेकिन यदि ग्रामीण भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता का स्तर नहीं सुधरेगा, तो यह केवल शहरी अभिजात वर्ग के लिए एक और फैंसी टूल बनकर रह जाएगा।
भविष्य की भविष्यवाणी: स्वास्थ्य का 'डबल-टियर' सिस्टम
आगे क्या? मेरी बोल्ड भविष्यवाणी यह है कि अगले पांच वर्षों में, भारत में स्वास्थ्य सेवा का एक कठोर 'डबल-टियर' सिस्टम स्थापित हो जाएगा। एक टियर उच्च-आय वर्ग के लिए विश्व स्तरीय, लेकिन अत्यधिक महंगा होगा। दूसरा टियर, सार्वजनिक क्षेत्र, केवल गंभीर आपात स्थितियों और बुनियादी टीकाकरण तक सीमित रहेगा, जो भारी भीड़ और अपर्याप्त संसाधनों से जूझता रहेगा।
भारत स्वास्थ्य संकट को हल करने के लिए हमें स्वास्थ्य पर GDP खर्च को कम से कम 3% तक बढ़ाना होगा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने के लिए कठोर कानूनी कदम उठाने होंगे। अन्यथा, हम केवल स्वास्थ्य के मोर्चे पर एक आर्थिक दुर्घटना की तैयारी कर रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नवीनतम रिपोर्टें देखें।
यह समय है कि हम मीडिया और सरकार द्वारा परोसे जा रहे मीठे झूठ पर विश्वास करना बंद करें और उस कठोर सच्चाई का सामना करें जो लाखों भारतीयों के जीवन को प्रभावित कर रही है।